REPORT : यदि आपको शूगर की बिमारी है तो यह खबर ज़रूर पढ़े, ख्यातनाम चिकित्सक डॉ.विपुल गर्ग की यह रिपोर्ट कर देंगी सारा डर दूर
मधुमेह या डायबिटीज या शुगर की बीमारी मधुमेह या शुगर की बीमारी या डायबिटीज मलाइट्स में हमारे शरीर में इंसुलिन का उत्पादन नहीं होने, DM प्रकार 1 अथवा कम होने या ग्लूकोज को ग्रहण करने के लिए रिसेप्टरों की संख्या या क्रिया कम होने के कारण होती है DM प्रकार 2 । डायबिटीज होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है, पेट भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है और ग्लूकोज रक्त नलिकाओं में जाता रहता है किंतु अधिकांश ग्लूकोज वहीं रक्त नलिकाओं में ही बना रहता है और रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है, यही उच्च रक्त शुगर ( हाइपरग्लाइसीमिया ) कहलाता है ।
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उच्च रक्त शुगर अधिक समय के बाद जहरीला हो जाता है । साथ ही, इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल वसा आदि भी असामान्य हो जाते हैं । रक्त नलिकाओं की बीमारी से ह्रदय रोग( हार्टअटैक ) विशेष रूप से साइलेंट हार्ट अटैक और लकवा ( स्ट्रोक ) हो सकता है । इन मरीजों में आंखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, ह्रदय के खराब होने से गंभीर रोगों का खतरा बढ़ जाता है । स्नायु की समस्याओं से पैरों अथवा शरीर के अन्य भागों की संवेदना चली जाती है जिससे पैरों में घावों का पता नहीं चलता तथा घाव भरने में समय लगता है तथा शरीर का संतुलन बिगड़ने की भी संभावना रहती है । आंखों में रक्त नलिकाओं की खराबी ( रेटिनोपैथी ), कालापानी ( ग्लूकोमा ) और मोतियाबिंद हो सकते हैं । गुर्दे रक्त की सफाई करना बंद कर देते हैं । उच्च रक्तचाप से ह्रदय को रक्त पंप करने में कठिनाई होती है । इन लोगों का खून तथा पेशाब की जांच व अन्य जाचों के माध्यम से शुरुआत में ही निदान व उचित उपचार किया जा सकता है ।
लक्षण :
*हमेशा भूख महसूस करना
* बार बार पेशाब आना ( रात में भी )
* प्यास अधिक लगना
* त्वचा में खुजली होना
* थकान और कमजोरी महसूस करना
* वजन कम होना
* घाव भरने या फफोले ठीक होने में समय लगना
* त्वचा में संक्रमण होना
* पैरों का सुन्न होना
उपरोक्त के साथ यदि त्वचा के रंग, कांति, या मोटाई में परिवर्तन, उर्मूल, योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा उंगलियों के बीच खुजलाहट, जिससे फफूंदी संक्रमण की संभावना का संकेत मिलता हो तो रोगी को चिकित्सक से शीघ्र संपर्क करना चाहिए ।
मधुमेह के प्रकार : DM प्रकार 1 ( Insulin dependant या इंसुलिन आश्रित ) इसमें इंसुलिन नामक हार्मोन नहीं बन पाता है और रोगी को नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं । यह रोग प्रायः किशोरावस्था में पाया जाता है । DM प्रकार 2 ( Insulin independent या इंसुलिन अन आश्रित ) लगभग 90% रोगी इसी प्रकार के होते हैं । इस रोग में इंसुलिन बनता तो है परंतु कम मात्रा में या अपना असर खो देता है, जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर अनियंत्रित हो जाता है । यह रोग पारिवारिक हो सकता है । यह वयस्कों तथा मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमा लेता है । अधिकतर रोगी अपना वजन घटाकर, नियमित आहार पर ध्यान देकर तथा दवा अथवा इंसुलिन लेकर इस पर काबू पा सकते हैं । दवा अथवा इंसुलिन लेने वाले रोगियों में शुगर कम होने को हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं । इसके लक्षणों में भूख लगना, पसीना या चक्कर आना, शरीर में झुनझुनी कंपकंपाहट या बेहोशी आदि होते हैं । इसका मुख्य कारण दवा अथवा भोजन की अनियमितताएं होती हैं । IGT प्रकार ( इंपेयर्ड ग्लूकोस टोलरेंस ) में रोगी को 75 ग्राम ग्लूकोस पिलाने पर, रक्त में ग्लूकोज का स्तर, सामान्य तथा मधुमेह रोगी के बीच का हो तो ऐसे रोगियों में डायबिटीज भविष्य में होने की संभावना को कहते हैं ।
इसे मुख्यतः व्यायाम तथा खानपान के परहेज़द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । जेस्टेशनल डायबिटीज गर्भावस्था के दौरान होने वाला प्रकार है जिसे मुख्यतः इंसुलिन के उपयोग द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है । बचाव व उपचार : नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य सफाई और संभावित इंसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयां ( डॉक्टर के सुझाव के अनुसार ) के सेवन से मधुमेह को ठीक तो नहीं किया जा सकता परंतु इसे जीवन भर सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है । यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि दवाइयां व इंसुलिन, आहार- संतुलन और व्यायाम के विकल्प नहीं है, इन्हें भी जारी रखना चाहिए । व्यायाम से रक्त शुगर स्तर कम होता है । प्रति घंटा 6 किलोमीटर चलने पर 30 मिनट में 135 कैलोरी समाप्त होती है । अधिक गर्म पानी से न नहाऐं और नहाने के बाद शरीर को अच्छे से पोंछे । त्वचा अत्यधिक सुखी भी ना होने दें । पर्याप्त तरल पदार्थों को लें, जिससे त्वचा पानीदार बनी रहे । पर्याप्त रोशनी में प्रतिदिन पैरों की व त्वचा की नजदीकी जांच करें । देखें, कि कहीं कटाव, कड़ापन, फफोले, लाल धब्बे और सूजन तो नहीं है । मामूली घावों पर भी विशेष ध्यान दें, ताकि संक्रमण से बचा जा सके । केवल डॉक्टरी सलाह के आधार पर ही प्रतिरोधी क्रीम का उपयोग करें ।
आहार : शक्कर तथा शक्कर से बनी वस्तुओं से परहेज करें । गरिष्ठ तला हुआ भोजन कम मात्रा में लें । फास्ट फूड तथा बेक्ड प्रोडक्ट्स जैसे केक, पेस्ट्री, पुडिंग, चॉकलेट, पिज़्ज़ा, बर्गर, मैदे की ब्रेड, पाव इत्यादि से बचें । साबुत अनाज, स्किम्ड या डबल टोंड मलाई रहित वसा रहित दूध, पनीर व रेशे युक्त सलाद का सेवन करें । कम मात्रा में किंतु थोड़ी थोड़ी देर में खाद्य पदार्थों का सेवन करें । स्वच्छ खाएं, स्वच्छ रहें, स्वस्थ रहें