KHABAR : पियुष चंद्र विजय मुनि महाराज ने कहा- धर्म तत्व के ज्ञान बिना जीवन सफल नहीं हो सकता है, चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में प्रतिदिन उमड़ रही है समाजजनों की भीड़, पढ़े खबर
नीमच। तत्वज्ञान द्वारा व्यक्ति धर्म कर्म को सरलता से समझ लेता है। हम बच्चों को डिग्री की शिक्षा दिलाते हैं तो वह रोजगार प्राप्त करेगा और भूखा नहीं भूखा नहीं रहेगा। लेकिन यदि धर्म ध्यान का संस्कार नहीं होगा तो उसकी आत्मा कल्याण नहीं होगा। धर्म तत्वज्ञान हो तो बच्चा धर्म ज्ञान के हर क्षेत्र में आगे बढ़ेगा। धर्म ज्ञान बिना आत्मा का नहीं हो सकता है।
यह बात गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद् विजय श्री ऋषभ चंद्र सुरीश्वर जी महाराज साहब के शिष्य रत्न वरिष्ठ मुनिराज पियुष चंद्र विजय मुनि जी महाराज ने कही। वे श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्रीसंघ नीमच के तत्वावधान में मिडिल स्कूल मैदान के पास जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि धर्म तत्व के ज्ञान से चरित्र में निर्मलता आती है और केवल ज्ञान प्राप्त हो जाता है। धर्म ज्ञान की अपेक्षा नहीं हो इसका हमें ध्यान रखना चाहिए। डिग्री धारी बच्चा जिन शासन की सेवा में पिछड़ जाता है तो हमें विचार करना चाहिए ऐसा नहीं होना चाहिए। ज्ञानी बच्चा धर्म कार्य में सदैव आगे रहता है। धर्म के बिना अपना कल्याण नहीं होता है। समयक दर्शन बिना भी मोक्ष नहीं मिलता है। मकान बदलने के लिए तो तैयारी करते होती है फिर आपने आत्म कल्याण के लिए तैयारी क्यों नहीं होती है। चिंतन का विषय है। धर्म समभाव आता है। संत का जीवन पवित्र होता है। संत पानी के समान निर्मल होना चाहिए। जहां जाए उसके साथ घुल मिल जाए सभी को सुखी जीवन का आशीर्वाद प्रदान करें।
संत के जीवन में आशा नहीं तो दुख भी नहीं होता है। मनुष्य के जीवन में आशा है तो दुख भी मिलता रहता है। आशा रखेंगे तो निराशा मिलेगी। संत पवित्र आहार का ध्यान रखते हैं। मानव जीवन के कल्याण के लिए संत अनुसरण करना आवश्यक है। साधु संत मान-अपमान की चिंता नहीं करते हैं जैसा अन्न खाते हैं वैसा मन होता है। उनका मन विचलित क्यों नहीं होता है इस पर हमें चिंतन करना चाहिए। हम सामायिक तपस्या करें तो उसमें भी हमारा मन विचलित नहीं होना चाहिए। मन में भाव बिगड़े तो किसी को भी देखकर सदैव मुस्कुराना चाहिए। प्रेम पूर्वक मित्रता करनी चाहिए मन में भाव बदलने के कारण खोजना चाहिए। आत्ममंथन करना चाहिए पड़ोसी के प्रति मन में अच्छे विचार होना चाहिए। गाय बैल घरों में शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक होते हैं। शिक्षा बदले विचार बदल गए आज गाय के उपयोग को हम सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं। प्राचीन काल में वह गौमुत्र के छिड़काव से दुकान मकान मंदिर आदि को पवित्र किया जाता था। लेकिन आज हम उस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं चिंता का विषय है। गोमूत्र से रोग ठीक हो जाते थे। गोमूत्र से सकारात्मक ऊर्जा आती है और नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। गाय के गोमूत्र और गोबर को पवित्र माना जाता है।
इस अवसर पर मुनिराज श्रीजिन चंद्र विजय मुनिराज, जनक चंद्र विजय जी महाराज का सानिध्य मिला। धर्म सभा विश्राम पर नवकार मंत्र पाठ माल्यार्पण के धर्म नवकार महामंत्र का जाप किया गया। गुरु गौतम स्वामी, राजेंद्र सूरी ,नवकार मंत्र की आरती श्रद्धालुओं द्वारा की गई जिसमें समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया ।इस अवसर पर श्रीसंघ के अध्यक्ष अनिल नागौरी सचिव मनीष कोठारी ने बताया कि सिद्धि तप की आराधना 20 जुलाई से निरन्तर हो रही है। जैन भवन में प्रतिदिन सुबह 9-15 से 10-15 बजे तक चातुर्मास के उपलक्ष में अमृत प्रवचन एवं विभिन्न धार्मिक सांस्कृतिक तपस्या के कार्यक्रम आयोजित होंगे। श्री संघ के सभी सदस्य से आव्हान है कि चातुर्मास में आयोजित समस्त कार्यक्रमों में समय पर पधार कर जिनशासन की शोभा बढाएं।