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May 27, 2023, 8:38 pm
EXCLUSIVE REPORT : अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ अकेला खड़ा नीमच, शहर में कहीं नहीं दिखेगी इसकी विशेषता, नेताओं में दूरदर्शिता की रही कमी, पढ़े डेस्क इंचार्ज कमलेश मांगरिया की खबर

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नीमच। किसी भी शहर में प्रवेश मार्ग पर लगे स्वागत द्वार आपको यह बता देंगे की जिस शहर में आप जा रहे है उसकी विशेषता क्या है। आप लोग कई यात्राओं पर गए होंगे। बस, ट्रैन या निजी वाहन से यात्रा करते वक्त जब भी हम किसी शहर से गुजरते है तो उस शहर में प्रवेश करने से पूर्व ही उस शहर की विशेषता स्वागत द्वार या साइड में लगे बोर्ड पर लिखी हुई दिखाई दे जाती है। जिससे हमें यह पता चल जाता है कि अमुक राजा ने इस शहर को बसाया था, या इस शहर में यह बड़ा धार्मिक स्थान है, या यहाँ पर ये बड़ा उद्योग है, या इस शहर की ये ऐतिहासिक विरासत है। 

आपको ज्यादा दूर नहीं ले चलते है। अपने शहर के 200 किमी की परिधि को ही देख ले तो हमें ज्ञात होगा कि हमारे शहर के बाद हम किसी भी शहर या नगर में जाए तो वहां के स्वागत द्वार पर हमें उस शहर की विरासत का पता चल जाता है। नीमच से अगर मनासा जाए तो लिखा मिलेगा मंदिरो की नगरी में आपका स्वागत है। कुकड़ेश्वर जाए तो लिखा मिलेगा भगवान सहस्रमुखेश्वर की नगरी में आपका स्वागत है। रामपुरा जाए तो ज्ञात होगा कि हम राजा रामा भील की नगरी में प्रवेश कर रहे है। नीमच के समीप राजस्थान के छोटीसादड़ी जाए तो पता चलेगा की हम स्वर्ण नगरी में आए है। मंदसौर जाए तो लिखा मिलेगा कि भगवान पशुपतिनाथ महादेव की नगर में आपका स्वागत है। 

अमूमन ऐसा कोई शहर नहीं होगा जिसका उसकी विरासत का बखान शहर के द्वारा नहीं किया गया हो। लेकिन नीमच शहर के लिए ऐसा कुछ नहीं है। जबकि नीमच का इतिहास तो अपनी कहानी कुछ अलग ही कहता है। अंग्रेजो द्वारा छावनी के रूप में बसाया ये शहर जो केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की जन्मस्थली है, आज उसी उपलब्धि को लेकर अनभिज्ञ है। शहर में सिर्फ सीआरपीएफ एरिये को छोड़ दे तो आपको ऐसा कहीं नहीं लगेगा की नीमच में सीआरपीएफ की स्थापना हुई थी। जबकि इससे जुड़े महू और नसीराबाद को देख लीजिए जो जनसँख्या के मामले में नीमच से छोटे होते हुए भी अपनी विरासत को चौराहे चौराहे पर संजोए हुए है। 

नीमच की दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि है भारत सरकार के उपक्रम ओपियम फैक्टरी की। जो भारत देश में चुनिंदा जगह पर ही है। नीमच जिला अफीम उत्पादक जिला होने के बावजूद भी कहीं भी इस बड़ी उपलब्धि का एहसास नहीं करा पाया है। कम से कम एक चौराहे पर तो अफीम के डोडे की आकृति का स्टेचू बना मिलता। लेकिन ऐसा कहीं नहीं हुआ। 

तीसरी नीमच की सबसे बड़ी विशेषता है कि मालवा की वैष्णोदेवी नाम से प्रसिद्द महामाया भादवा माता का मंदिर शहर से कुछ ही किमी की दुरी पर स्थित है। जहां देश के कोने कोने से भक्त अपनी मुरादों को लेकर माता के दरबार में शीश झुकाने आते है। यह मंदिर अपनी चमत्कारी शक्तियों की वजह से देश भर में प्रसिद्द है। लेकिन बाहर से आने वाले किसी भी अनजान व्यक्ति को यह एहसास नहीं होगा की आप महामाया भादवा माताजी के शहर में आए है। 

ये सारी खामिया पूर्व से लगाकर वर्तमान जनप्रतिनिधियों तक की है। अगर ये लोग चाहते तो नीमच की इन तीनो विशेषताओं को लेकर कहीं तो एक भी बोर्ड या चौराहा बना देते। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अपनी वास्तविक पहचान को लेकर नीमच वाकई में गुमनाम खड़ा है।
इस मुद्दे को लेकर वॉइस ऑफ़ एमपी ने पूर्व जनप्रतिनिधियों और वर्तमान जनप्रतिनिधियों से बात की। जनप्रतिनिधियों की बातों से लगा की कहीं न कहीं दूरदर्शिता की कमी रह गई। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही दलों ने नीमच पर राज किया लेकिन किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। 
 
विधायक दिलीप सिंह परिहार ने प्रस्तावित शहर के फोरलेन मार्ग पर स्वागत द्वार पर शहर की उपलब्धि लिखवाने की बात कही। वहीं नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष ने इस मुद्दे को सही मानते हुए बताया कि मै नपा को अवगत करवाऊंगा और शहर के हर प्रवेश मार्ग पर नीमच की अलग अलग विशेषताओं को इंगित करवाने की बात कहूंगा। 

वहीं पूर्व विधायक सम्पत स्वरूप जाजू ने इस मुद्दे के लिए वॉइस ऑफ़ एमपी को धन्यवाद दिया और कहा कि नीमच के जनप्रतिनिधियो को इस ओर ध्यान देना चाहिए। साथ ही उन्होंने नीमच के फूटबाल खेल को लेकर प्रसिद्धि के लिए भी एक स्टेच्यू लगाने की बात कही। वहीं पूर्व विधायक नंदकिशोर पटेल ने कहा कि कमी रह गई है। अगर प्रतिनिधि ध्यान नहीं दे रहे है तो जिला प्रशासन को इस ओर ध्यान देकर एक पहल करनी चाहिए। 

समाजसेवी किशोर जेवरिया ने कहा कि नीमच के  पहले और अभी के प्रतिनिधियों की दूरदर्शी सोच की कमी है। जो हमें इस मुद्दे पर साफ दिखाई दे रही है। नीमच में प्रतिक चिन्ह लगाना तो दूर यहाँ से सीआरपीएफ के स्थापना दिवस कार्यक्रम को ही दिल्ली शिप्ट कर दिया। 

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