चित्तौड़गढ़। ओजस्वी वक्ता दिवाकर ज्योति जय श्री म सा ने आज पर्यूषण महापर्व के तीसरे दिन खातर महल में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैसे संस्कार हमारे में होते हैं वैसे ही संस्कार हमारी अगली पीढ़ी में आते हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण महाराज का जीवन वृतांत सुनाते हुए कहा कि कृष्ण महाराज प्रतिदिन अपनी माताओं को प्रणाम करने जाते थे किंतु आज हमारी पीढ़ी के कितने लोग प्रतिदिन अपनी माता-पिता को प्रणाम करते हैं यह विचारणीय प्रश्न है। यह निश्चित रूप से हमारे संस्कारों का निरंतर होते पतन का सूचक है। महासती जय श्री जी ने कहा कि किसी भी माता की आंखों में दो ही बार आंसू आते हैं। प्रथम बार तब जब उसका पुत्र बहू को घर में लेकर आता है। ये आंसू खुशी के आंसू होते हैं और दूसरी बार माता के तब आंसू आते हैं जब लड़का बहू को लेकर घर से अलग हो जाता है। तो वह दुख के आंसू होते हैं।
उन्होंने कहा कि सुख के आंसू ठंडे होते हैं और दुख के आंसू गर्म होते हैं। एक बार श्रीकृष्ण महाराज ने देवकी मां के आंखों में आसूं देखकर कारण पूछा तो देवकी मां ने कहा कि मैं सात पुत्रों को जन्म देकर भी उनके लालन पालन और मातृत्व लाभ से वंचित रही। इसलिए मेरा एक पुत्र हो जिसका पालन पोषण कर सकूं यह इच्छा सुनकर कृष्ण महाराज ने इस इच्छा की पूर्ति के लिए तेला तप की आराधना की और तेला तप की आराधना पूर्ण होने पर देव उपस्थित हुए और कृष्ण महाराज से कहा कि आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी और देवकी माता एक पुत्र की मां बनेगी और आपके एक छोटा भाई उत्पन्न होगा। लेकिन वह पुत्र यौवन अवस्था प्राप्त कर संयम को अंगीकार करेगा,यथा समय देवकी माता ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम गजसुकुमाल रखा गया। पुत्र के कुछ बड़ा होने पर देवकी माता अपने पुत्र को लेकर श्री अरिष्ठ नेमी भगवान की वाणी को सुनने धर्म सभा में पहुंची, भगवान की वाणी सुनकर गजसुकुमाल को वैराग्य उत्पन्न हो गया, और वह दीक्षा ग्रहण करने के भाव प्रकट करने लगे, परिवार वालों के कई बार समझाने पर भी जब उनके भाव नहीं बदले तो परिवार वालों ने दीक्षा ग्रहण करने की आज्ञा प्रदान की और परिवार वालों की आज्ञा से गजसूकुमाल ने दीक्षा ग्रहण की और अपने सभी कर्मों को खपाकर मोक्ष प्राप्त किया।
श्रमण संघ सहमंत्री सुधीर जैन ने बताया कि धर्मसभा के प्रारंभ में साध्वी समीक्षा श्री जी ने अंतगड़ दशांक सूत्र का मूल पाठ किया।
धर्म सभा में राजश्री जी म सा ने परिवार विषय पर हृदयस्पर्शी उदबोधन प्रदान किया। हर व्यक्ति का जन्म परिवार में ही होता है और परिवार एक वट वृक्ष है और व्यक्ति की चाहत भी रहती है कि उसकी मृत्यु भी परिवार वालों के बीच में ही हो। घर और मकान पत्थर ,चुने ईट से बनता है किंतु परिवार आपसी प्रेम ,भाईचारा एवं
अपनत्व से बनता है।सप्ताह में वार सात होते हैं पर यह सात वार तभी सफल होते हैं जब आठवां वार परिवार भी साथ में होता है। धन दौलत और ताकत परिवार के फूल हैं किंतु प्रेम और सद्भाव परिवार की जड़ है।"अपने वे नहीं होते जो तस्वीर में साथ खड़े होते हैं,अपने तो वो होते हैं जो तकलीफ में साथ खड़े होते हैं।" परिवार की जो व्यवस्था भारत में है वैसी व्यवस्था दुनिया के किसी देश में नहीं है। घर के किस कोने में मंदिर बनाया जाए इसके लिए व्यक्ति वास्तु शास्त्रियों से सलाह लेता है किंतु घर को मंदिर कैसे बनाया जाए उस ओर व्यक्ति को ध्यान देने की जरूरत है।
सबसे बड़ा योग सुख दुख में सहयोग है। उन्होंने कहा कि बिना हक का लेने से महाभारत हो जाती है और अपने हक का भी छोड़ देने का मन बनाने से रामायण हो जाती है।
आज धर्म सभा में निंबाहेड़ा, नीमच ,नागदा ,जावरा आदि स्थानों से दर्शनार्थी पहुंचे थे।
धर्म सभा का संचालन सुनील बोहरा ने किया और बताया कि शुक्रवार को 200 से अधिक आराधकों की तेला तप की तपस्या पूर्ण होगी। शनिवार को सभी के सामूहिक पारणे की व्यवस्था खातर महल में ही रखी गई है। रविवार को दया दिवस का आयोजन रखा गया है।