शाजापुर। जिले के पोलायकलां तहसील के समीपस्थ ग्राम पोलाय खुर्द में अनोखे तरह से होली मनाई जाती है। इसे आस्था कहे या अंधविश्वास यहां तो क्षेत्र के नागरिकों की आस्था पर निर्भर करता है। परंतु आज भी यहां पर वर्षों पुरानी परंपरा को आज के आधुनिक युग मे भी ग्रामीणों के द्वारा निभाया जा रहा हैं। यहां धुलेंडी की रात्रि मे 9 बजे होली के दहकते अंगारो से नंगे पैर होकर गुजरते है ग्रामीण।
अनोखी होली
देश के अलग-अलग हिस्सों में होली का त्योहार मान्यताओं और परंपराओं का समागम है.। होली कहीं फूलों से तो कहीं पर लोग रंग गुलाल लगाकर तो कही लट्ठ बरसातें हुए होली खेलते हैं।.लेकिन आपने कभी आग के जलते अंगारों पर चलकर होली खेले जाने के बारे में नहीं सुना होगा।ओर. इस पर यकीन कर पाना आपके लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है।. लेकिन पोलायकलां तहसील के गांव पोलाय खुर्द में होली के दिन गल महादेव के मंदिर प्रांगण में धधकते अंगारों पर चलने की परंपरा है। ऐसी ग्रामीणों की आस्था और मान्यता है कि यहां पर धधकते हुए अंगारों पर चलने से गल महादेव भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं। इस अनोखे आयोजन में पूर्व मेला विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त माखन सिंह चौहान शामिल हुए प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार सहित कई जनप्रतिनिधि शामिल हुए।
अंधविश्वास कहे या आस्था, ग्रामीणों का मानना है कि बाबा आपदा और विमारियों से दूर रहते हैं। पोलाय खुर्द गांव के ग्रामीणों का कहना है कि होली के दिन अंगारों पर चलने की परंपरा उनके गांव में कई वर्षों से चली आ रही है. गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक नंगे पैर धधकते अंगारों पर ऐसे चलते हैं, मानो सामान्य जमीन पर चल रहे हों ऐसा करने से बाबा गल महादेव उनके. गांव को आपदा और खुद को बीमारियों और संकटों से दूर रखते हैं ग्रामीण इस परंपरा को कई वर्षों से निभाते चले आ रहे हैं, ग्रामीणों का दावा है कि इतने गरम अंगारों पर चलने के बाद भी न तो उनके पैरों में छाले पड़ते हैं और न ही किसी तरह की तकलीफ होती है। ग्रामीणों ने बताया कि आयोजन शाम 9 बजे मंदिर प्रांगण में प्रारंभ होता है। जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। जो गल महादेव की विशेष पूजा अर्चना के बाद में पालस की लकडी में आग लगाकर के अंगारे बनाए जाते हैं इसके बाद जलते हुए अंगारों से नंगे पैर ग्रामीणों के निकलने का सिलसिला शुरू होता है।. जो करीब 30 मिनिट तक चलता है इस दौरान गल महादेव के यहां पर जो भी भक्त मन्नत मांगता है। बाबा भक्तों की मन्नत एक वर्ष में पूरी करते हैं। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा उनके गांव में कब शुरू हुई, इस बात की कोई सटीक जानकारी तो उनके पास नहीं है।. लेकिन बुजुर्ग ग्रामीणों के अनुसार यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है।. इसलिए बुजुर्गों के कहने पर हर वर्ष गांव में यह परंपरा होली पर निभाई जाती है। क्योंकि पोलाय खुर्द संतो की तपस्या स्थली रही यहां सज्जन नाथ जैसे संत की समाधि स्थित है। वर्षों से चली आ रही परंपरा को आज भी लोग यहां निभा रहे हैं। होली के दिन यहां मेले के साथ चूल का आयोजन किया जाता है। जिन अंगारों से ग्रामीण निकलते हैं।