मोरवन। बड़े मंदिर प्रांगण मोरवन में चल रही भागवत कथा के दूसरे दिन झाड़िश्वर धाम सरकार वृंदावन से पधारे श्री विष्णु शरण जी महाराज ने कहा कि संत का कभी अपमान नहीं करना चाहिए और संत कहीं भी दिखे तो उन्हें दंडवत प्रणाम करना चाहिए, संत साक्षात परमेश्वर है।
महाराज ने आगे कहा कि भागवत कथा श्रवण मात्र से सही पाप से मुक्ति मिल जाती है। मनुष्य को समाज में अच्छे कर्म करना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि कर्म ही प्रधान है बिना कर्म कुछ संभव नहीं होता है। जो मनुष्य अच्छा कर्म करता है उसे उसे अच्छा फल मिलता है व जो बुरे कर्म करता है उसे बुरा फल मिलता है। महाराज जी ने आगे कहा कि हिमालय राज की कन्या पार्वती बड़ी होने लगती हैं। पार्वती ने मन में प्रण लिया की वह शिव को पति के रूप में प्राप्त करेंगी। देवता भी शिव को मनाते हैं कि वह पार्वती से विवाह कर लें लेकिन शिव इसके लिए तैयार नहीं हुए। माता पार्वती शिव को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या करती हैं। भगवान शिव प्रसन्न हो विवाह के लिए तैयार हो जाते हैं। देवताओं, भूत, पिशाचों को लेकर तन में भस्म लगाए शिव बारात लेकर हिमालयराज के यहां पहुंचते हैं। माता मैना दूल्हे का भेष देखकर डर जाती हैं और पार्वती का विवाह करने से मना कर देती हैं। सभी ने समझाया कि शिव कोई साधरण नहीं हैं, वह तो देवों के देव हैं। उन्होंने बताया कि मां पार्वती और भगवान शिव का विवाह होता है और देवता पुष्पों की वर्षा करते हैं।
आगे महाराज जी ने ध्रुव चरित्र का बड़े सुंदर ढंग से वर्णन किया कथा में भोलेनाथ की जीवंत झांकी देख भक्त बहुत प्रसन्न हुए। साथ ही सज रहे भोले बाबा निराले दूल्हे में जैसे भजन सुनकर पूरा पंडाल भक्ति में हो गया। दूसरे दिन की कथा सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग बड़े मंदिर प्रांगण पहुंचे। साथ ही आज के जजमान कैलाश टांक ने भागवती जी की आरती की। आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया।