भोपाल | शहर में 342 करोड़ रुपए से लगभग 400 किमी सीवर लाइन बिछाई गई है। हालत यह है कि बरसात होते ही चैंबर गंदा पानी उगलने लगते हैं। यह सीवेज चैंबर कहीं 8 से 10 इंच ऊपर हैं तो कहीं नीचे धंसे हुए हैं। नतीजा, नए एक्सीडेंट जोन बन गए हैं। सबसे बुरी स्थिति कोलार, सलैया, बावड़िया कला,चूना भट्टी व शाहपुरा जैसे इलाकों में है।
अमृत फेज-1 के तहत शहर के तालाबों और नदियों में जा रहे सीवेज को रोकने के लिए ये प्रोजेक्ट बनाया गया था। तीन अलग-अलग पार्ट में सीवरेज नेटवर्क का काम हुआ। पहले तीन साल तक तो सड़कों की खुदाई और उनके रेस्टोरेशन की खामियों के कारण लोग परेशान हुए, अब सीवर लाइनें और चैंबर परेशानी की वजह बन रहे हैं।
60 एमएलडी सीवेज खुले में बह रहा है
शहर में लगभग 100 एमएलडी पानी सप्लाई होता है, उसमें से 80 एमएलडी सीवेज में जाता है। लेकिन शहर में अधिकतम 20 एमएलडी सीवेज ही ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंच रहा है। यानी 60 एमएलडी सीवेज खुले में बह रहा है। यह नालों, तालाबों में बहते हुए बेतवा नदी में मिल रहा है।
यह हैं हालत: जमीन से ऊपर उठे हुए हैं चैंबर, रोज हो रहे एक्सीडेंट
बरसात होते ही चूना भट्टी मेन रोड और शाहपुरा सी सेक्टर के सामने से गुजरने वाली सड़क पर सीवेज का गंदा पानी बहना शुरू हो जाता है। यह स्थिति कोलार व सलैया क्षेत्र की काॅलोनियों के भीतर भी बन जाती है।
बावड़िया कला में मेन रोड पर मैरिज गार्डन के पास चैंबर जमीन से करीब 10 इंच ऊपर है। कोई मार्किंग भी नहीं है, नतीजा, रोजाना यहां एक्सीडेंट हो रहे हैं।
शाहपुरा में कुछ चैंबर जमीन के नीचे धंस गए हैं, अचानक से सड़क के नीचे हो जाने से यहां एक्सीडेंट की आशंका बनी रहती है।
सीवरेज नेटवर्क बिछाने के बावजूद अभी तक घरेलू कनेक्शन का काम नहीं हुआ है, नतीजा, कई काॅलोनियों में सीवेज खुले में बह रहा है। कोलार थाने के पीछे और ललिता नगर व आसपास की अन्य काॅलोनियों में यह स्थिति देखी जा सकती है।
समाधान- सड़क के लेवल पर होना चाहिए मेन होल
"सीवर लाइन में मेन होल का लेवल सड़क के लेवल पर होता है। यदि किसी वजह से चैंबर की हाइट अधिक आ रही है तो उसे सड़क के नीचे बनाया जाता है। मोटे तौर पर हर 30 मीटर की दूरी पर एक चैंबर होता है। यदि रोड क्रास आ जाए तो इससे कम दूरी पर चैंबर बनाया जाता है। यह चैंबर लाइन की क्लीनिंग के लिए होते हैं। जहां तक बरसात के दिनों में सीवेज चैंबर से गंदा पानी उगलने की बात है तो उसकी दो बड़ी वजह हैं।
पहला तो कई जगह चैंबर के ढक्कन टूटे हैं, जिनसे पानी भीतर-बाहर हो जाता है। दूसरा सीवर लाइन और चैंबर का साइज तय करते समय बरसात के पानी की भी गणना की जाती है। नई बिछाई गई सीवर लाइन में जिस तरह से परेशानी आ रही है, उससे लगता है कि नेटवर्क की डिजाइन में इन बातों का ध्यान नहीं रखा गया है। एक मुद्दा लाइन बिछाते समय ढलान का ध्यान नहीं रखने का भी है। ढलान इस तरह से तय होती है कि सीवेज का फ्लो 2 फीट प्रति सेकंड रहे।"
-बीके श्रीवास्तव, सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर पीएचई (70 के दशक में नए और पुराने शहर में सीवर नेटवर्क बिछाया)।
जिम्मेदार बोले- कनेक्शन करने के साथ शिकायतें भी दूर कर रहे हैं...
"शहर में सीवेज कनेक्शन का काम चल रहा है। कुछ जगहों पर सीवेज चैंबर मेन रोड पर ऊपर होने की शिकायत मिली है। इन्हें दुरुस्त करा रहे हैं। 400 किमी लाइन और भोपाल जैसे उतार-चढ़ाव वाले शहर में कुछ जगहों पर ढलान की दिक्कत हो सकती है। इसे भी ठीक कराया जाएगा। बरसात में आम लोगों को दिक्कत ना हो, इसके लिए अमले को सतर्क रहने को कहा गया है।"