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June 24, 2024, 11:05 am
NEWS : जो जीव मात्र को परमात्मा की भक्ति का ध्यान करा दें वहीं नारद हैं, व्यंकटेश बालाजी दिव्य धाम अलवर के स्वामी सुदर्शनाचार्य ने कहा, पढ़े रेखा खाबिया की खबर

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चित्तौड़गढ़। व्यंकटेश बालाजी दिव्य धाम अलवर के स्वामी सुदर्शनाचार्य ने महर्षि नारद की महिमा का बखान करते हुए कहा कि जो जीव मात्र को परमात्मा की भक्ति का ध्यान करा दे तथा स्वयं को अपना बोध करा दे वे ही नारद हैं। स्वामी सुदर्शनाचार्य रविवार को 19 वें कल्याण महाकुंभ के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीमद नारदीय महापुराण की कथा का रसामृतपान करा रहे थे। पुराणों के तीर्थ स्थल नेमीशारण्य के अनुरूप कथा पाण्डाल को भी नेमीशारण्य का रूप दिया गया हैं। जहां व्यासपीठ से स्वामी जी ने कहा कि जिनका आना और जाना कभी रद्द नहीं होता वे ही नारद हैं। 
उन्होंने कहा कि महर्षि नारद अन्तर ब्रह्माण्डीय संवाददाता के साथ ही भक्त और भगवान के सेतू स्वरूप में सर्वमान्य हैं। उन्होंने कहा कि ब्रह्माण्ड के बारे में जानने वालों ने महर्षि नारद का विशिष्ट स्थान रहा हैं। जिन्होंने समूचे ब्रह्माण्ड में मर्यादा को स्थापित करते हुए हमेशा अपने शिष्यों को वरियता प्रदान की हैं। स्वामी जी ने 14 माह भागवतों का उल्लेख करते हुए कहा कि परमात्मा की नाम स्वर्ण मात्र से भक्ति मार्ग प्रशस्त हो जाता हैं तथा प्रथम माह भागवत के रूप में भक्त प्रहलाद रहें, जिन्हें देवर्षिय श्री नारद ने अपना शिष्य बनाकर उन्हें परमात्मा से एकाकार करने का अनुकरणीय कार्य किया हैं। संसार में दो प्रकार के तपस्वी रहे हैं। जिनमें से मूनि और ऋषि दो परंपराएं मानी जाती हैं। उन्होंने कहा कि पुराणों के रचनाकार महर्षि वेद व्यास मूनि श्रंखला में माने जाते हैं। वहीं सूत जी भी मूनि कहलाएं हैं, जबकि देवर्षिय नारद ऋषि और मूनि दोनों के प्रयाय हैं। उन्होंने बताया कि जिन्होंने मंत्रों का साक्षातकार किया वे ऋषि कहलाएं और जिन्होंने धर्म ग्रंथों  एवं शास्त्रों का मनन किया वे मूनि कहलाएं। मूनियों ने शास्त्रों का सरलीकरण करते हुए पुराण के रूप में प्रकट किया। स्वामी जी ने बताया कि भक्ति पथ के आचार्य देवर्षिय नारद की प्रेरणा से महर्षि वाल्मिकी ने वाल्मिकी रामायण की रचना की। वहीं महर्षि वेद व्यास ने अपनी लेखनी के अंतिम पुराण के रूप में श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना की। उन्होंने कहा कि नारद जी की कृपा से ही भक्त ध्रुव को भगवान श्री हरि की गोद मिली। वहीं भक्त प्रहलाद की भक्ति से नृसिंह अवतार का प्राकट्य हुआ। उन्होंने बताया कि नारद स्वयं कहने को तो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं, लेकिन माना ये जाता हैं कि वे स्वयं नारायण के अंशावतार हैं। उन्होंने बताया कि नारदीय महापुराण में 25 हजार श्लोक बताए जाते हैं, लेकिन लुप्त होती वैदिक संस्कृति के फलस्वरूप वर्तमान सुश्रुत परंपरा से 18 हजार 534 श्लोक उपलब्ध हैं। उन्होंने बताया कि हमारी प्राचीन भारतीय सनातन संस्कृति 1 अरब 95 लाख वर्ष पुराणी हैं। जिसे वैज्ञानिकों ने भी अपनी शोध में स्वीकार किया हैं। उन्होंने बताया कि पुराणों की श्रंखला में नारदीय महापुराण का छठा स्थान हैं। कथा के प्रारंभ में स्वामी जी ने मंदिर परिसर में ठाकुर श्री के दर्शन कर पूजा अर्चना करते हुए सभी के लिए मंगल कामना की। वहीं वेदपीठ के पदाधिकारियों, न्यासियों एवं कल्याण भक्तों द्वारा व्यासपीठ का पूजन किया गया। संचालन अनिल सोमाणी ने किया।

रत्न जड़ित श्रंगार और फूलों की झांकी ने भक्तों का मन मोह लिया
कल्याण महाकुंभ के द्वितीय दिवस रविवार को कल्याण नगरी के राजाधिराज ठाकुर श्री कल्लाजी सहित पंच देवों का रत्न जड़ित मनभावन श्रंगार और सतरंगी फूलों की झांकी ने भक्तों का मन मोह लिया। अपने आराध्य के अनुपम दर्शन और मन मोहिनी छवि को देखकर हर कोई कल्याण भक्त अपलक दर्शन करते हुए स्वयं धन्य कर रहा था। इस अवसर पर ठाकुर श्री को सुखे मेवों का छप्पनभोग धराया गया। जिसकी झांकी के फलस्वरूप वेदपीठ का मनोहारी दृश्य देखते ही बनता था।

कुश्ती में स्वर्ण पदक प्राप्त प्रदीप का किया सम्मान
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के बी ए योग प्रथम वर्ष के छात्र प्रदीप को फरवरी माह में नागालैंड के कोहिमा शहर में आयोजित खेलों इंडिया राष्ट्रीय प्रतियोगिता के 65 किलो वर्ग में स्वर्ण पदक प्राप्त करने पर उनकी विशिष्ट उपलब्धि के लिए कल्याण महाकुंभ के प्रथम दिवस व्यासपीठ से स्वामी सुदर्शनाचार्य एवं वेदपीठ के पदाधिकारियों द्वारा 10 हजार रूपए की नगद राशि और स्वर्ण पदक से सम्मानित करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। इससे पूर्व भी प्रदीप चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में 130 विश्वविद्यालय की अंतर जोनल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त कर चुके हैं।

श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय में लोकपाल कार्यरत
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो ताराशंकर के अनुसार यूजीसी एवं उच्च शिक्षा आयोग तथा राजस्थान सरकार के दिशा निर्देशों की पालना के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसी क्रम में विश्वविद्यालय में लोकपाल पद पर जगतगुरू रामानन्दाचार्य एवं राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो विनोद शास्त्री इस विश्वविद्यालय के लोकपाल के रूप में गत जनवरी माह से ही कार्यरत हैं। इस संबंध में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा उच्च शिक्षा आयोग राज्य सरकार को पूर्व में ही सूचित किया जा चुका हैं। तथापि अपरिहार्य कारणों से इस विश्वविद्यालय में लोकपाल की नियुक्ति को लेकर, जो कमी दर्शायी गई हैं, जबकि लोकपाल की नियुक्ति छह माह पूर्व में ही कर दी गई थी।

खूब जमा सामूहिक सुंदरकाण्ड
कल्याण महाकुंभ के प्रथम दिवस रात्रि में नेमीशारण्य कथा मंडप में नगर के कथा मंडलों द्वारा आयोजित सामूहिक सुंदरकांड पाठ खूब जमा। जिसमें सुंदरकांड की चौपाहियों और दोहों का समवेद स्वर पूरे पांडाल में राम भक्ति की सरिता प्रवाहित कर रहा था।

अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलन आज
नवदश कल्याण महाकुंभ के तृतीय दिवस की रात्रि कवि सम्मेलन के नाम होगी। नेमीशारण्य कथा मंडप में आयोजित अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलन के सूत्रधार कवि विनोद सोनी ने बताया कि कवि सम्मेलन के दौरान शशिकांत यादव, ओरिया से अजय अंजाम, जयपुर से उमेश उत्साही, भोपाल से संजयसिंह, ललितपुर से पंकज पंडित, इंदौर से प्रद्युम्न शर्मा, बांसवाड़ा से रोहिणी पंडिया, कल्याण नगरी से जया धनगर तथा राजसमंद से गौरव पालीवाल के साथ ही अन्य कवि एवं रचनाकार अपनी रचनाएं प्रस्तुत करेंगे।

शौर्य और सनातन संस्कृति का पर्याय रही शोभायात्रा
पुरातन भारतीय परंपरा में शौर्य और संस्कृति का सदैव सम्मान रहा हैं, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के दौर में यह परंपरा लुप्त होती जा रही हैं, जबकि कल्याण नगरी में विगत दो दशक से ठाकुर श्री कल्लाजी की प्रेरणा से प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला कल्याण महाकुंभ हमारी संस्कृति को पुनर्जीवित करने का स्तुत्य प्रयास कर रहा हैं। इसी कड़ी में 19 वें कल्याण महाकुंभ की शोभायात्रा में शौर्य एवं सनातन संस्कृति अनुठा दिगदर्शन हजारों लोगों के लिए न केवल आकर्षण केन्द्र रहा बल्कि हमारी प्राचीन संस्कृति और शौर्य का शेभायात्रा पर्याय रहीं। जिसमें केसरिया बाना पहने हजारों युवक-युवतियां हाथों में तलवार, फरसे लिए वीर-वीरागनाएं, बटुक के साथ ही अश्वारोही वीर वीरांगनाओं और झांकियों में शक्ति के विभिन्न स्वरूपों के साथ राष्ट्र रक्षा के प्रहरियों की झांकियों ने शौर्य का परिचय दिया, तो जीवंत देवी देवताओं की झांकियों तथा परंपरा का निर्वाह करने वाले प्रदर्शन ने हमारी संस्कृति को जीवत प्रकट कर भावी पीढ़ी को प्रेरणा लेने का अवसर दिया।

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