BIG NEWS : कांग्रेस से बीजेपी में आईं पार्षद प्रियंका की सीट बदलेगी, भोपाल निगम की मीटिंग में बीजेपी पार्षदों के साथ बैठेंगी, पद से नहीं हटेगी, पढे़ खबर

June 28, 2024, 2:18 pm




भोपाल। कांग्रेस से बीजेपी में आई भोपाल के वार्ड-7 से पार्षद प्रियंका मिश्रा की सीट बदलेगी। अब वह बीजेपी पार्षदों के साथ उस लाइन में बैठेंगी, जहां महापौर और एमआईसी सदस्य बैठते हैं। नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने कहा- सांसद-विधायकों की तरह निगम में दल-बदल कानून लागू नहीं होता है। इसलिए प्रियंका को पार्षद पद से नहीं हटाया जाएगा। प्रियंका मिश्रा भाजपा के पूर्व विधायक रमेश शर्मा ’गुट्‌टू भैया’ की बेटी और पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष कैलाश मिश्रा की बहू हैं। दो साल पहले हुए नगर निगम चुनाव से प्रियंका कांग्रेस के टिकट पर वार्ड-7 की पार्षद चुनी गई थीं। दो महीने पहले मिश्रा बीजेपी में शामिल हो गई थीं। अब चूंकि, 2 जुलाई को निगम परिषद की मीटिंग होनी है। अध्यक्ष बोले- निगम में दल-बदल कानून लागू नहीं इस बारे में निगम अध्यक्ष सूर्यवंशी ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान पार्षद प्रियंका मिश्रा ने बीजेपी की सदस्यता ली थी। इसलिए अब वे बीजेपी पार्षद के रूप में मीटिंग में शामिल होंगी। नगर निगम में दल-बदल कानून लागू नहीं है। यह सांसद, विधायकों पर लागू रहता है। इसलिए प्रियंका बीजेपी पार्षदों के साथ बैठ सकती हैं। इससे पहले उन्हें लिखित में आवेदन देना होगा कि उन्हें बीजेपी पार्षदों के साथ बैठने की अनुमति दी जाए। अभी उनका आवेदन नहीं मिला है। निगम में कांग्रेस के अब 20 पार्षद दो साल पहले हुए नगर निगम के चुनाव में 85 में से 22 पार्षद कांग्रेस के जीते थे। सबसे ज्यादा बीजेपी के 58 और निर्दलीय 5 पार्षद थे। वार्ड नंबर-41 के कांग्रेस पार्षद मो. सरवर का पिछले साल जुलाई में निधन हो गया था। 6 महीने में हुए उप चुनाव में बीजेपी ने वार्ड से जीत हासिल कर ली थी। इससे कांग्रेस के 21 पार्षद बचे थे। इनमें से एक पार्षद प्रियंका भी बीजेपी में शामिल हो गई। ऐसे में अब निगम में बीजेपी के 20 पार्षद ही बचे हैं। परिषद की बैठक से पहले सर्वदलीय मीटिंग इधर, परिषद की बैठक से पहले अध्यक्ष सूर्यवंशी सर्वदलीय मीटिंग भी बुलाएंगे। जिसमें बजट के मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। एक-दो दिन में यह मीटिंग हो सकती है। क्या है दल-बदल कानून? 1967 में हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली। उसके बाद से राजनीति में आया राम गया राम की कहावत मशहूर हो गई। पद और पैसे के लालच में होने वाले दल-बदल को रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार 1985 में दल-बदल कानून लेकर आई। इसमें कहा गया कि अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वॉइन कर लेता है तो वो दल-बदल कानून के तहत सदन से उसकी सदस्यता जा सकती है। अगर कोई सदस्य सदन में किसी मुद्दे पर मतदान के समय अपनी पार्टी के व्हिप का पालन नहीं करता है, तब भी उसकी सदस्यता जा सकती है। हालांकि, यह नियम सिर्फ सांसद और विधायकों के लिए है। निगम के महापौर या पार्षद को भी दल-बदल के बावजूद अपने पद से इस्तीफा नहीं देना पड़ता, क्योंकि दल-बदल विरोधी कानून केवल लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा पर लागू होता है, नगरीय निकायों पर नहीं।

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