चीताखेड़ा। गांव के हनुमानजी मंदिर के पास स्थित अति प्राचीन मंदिर जोकि गुहिल युग के स्थापत्य कला का एक अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर गांव के पूर्व की ओर स्थित है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 18वीं शताब्दी में कराया गया। मंदिर का गर्भगृह 08 स्तम्भों पर आधारित है, जिसके चार स्तम्भों पर भारवाही कीचको का अंकन है। इसका वितान चतुष्कोणीय है। वितान में ही विकसित कमलदल का रेखांकन है। गर्भगृह में निर्मित लघु मंचिका पर उमा-महेश्वर, इन्द्र, चंवर धारिणी तीसरी भित्ति पर प्रतिमाए अंकित है। प्रवेश द्वार के ललाटबिम्ब पर योगनारायण पार्श्व में परिचारिकाओं तथा विष्णु के चौबीस अवतारों की प्रतिमाए शिल्पांकित है। प्रवेश द्वार के स्तम्भ पर दोनों ओर सप्तमातृकाओं में वैष्णवी, माहेश्वरी, ब्राह्मी, गंगा, यमुना, वायु, पुरुष, उमा-महेश्वर तथा बांसुरी वादक की आकृतियों का आलेखन है।
मंडप-
मंदिर का मंडप 08 स्तम्भों पर आधारित है। इसमें शिवद्वारपाल की आयुध विहीन प्रतिमा है। सभा मंडप तक पहुँचने के लिए 11 सोपान निर्मित किए गए है। बांयी ओर संवत 1108 का अभिलेख संलग्न है।
पुरातत्व विभाग के लिए महत्व रखने वाला मंदिर जिसे गांव में बड़ा देवड़ा के नाम से जाना जाता है की देखरेख का जिम्मा पुरातत्व विभाग करता है। लेकिन विभाग की अनदेखी के कारण मुर्तिया जीर्ण शीर्ण होती जा रही है। मंदिर परिसर में अतिक्रमण और गंदगी से भरा पड़ा रहता है।
जब मंदिर की दुर्दशा गांव के कुछ भक्तों ने देखी तो तुरंत मोर्चा संभाला और मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने के लिए दानदाताओं की समिति बनाकर मंदिर पर रंग रोगन करवाया। पुजारी कन्हैयालाल माली ने बताया कि पुरातत्व विभाग वाले कुछ साल पहले आए थे और जीर्णोद्धार के नाम पर कहीं-कहीं जगह रेती सीमेंट लगा कर चले गए। उसके बाद आज तक इस मंदिर की सुध लेने कोई नहीं आया। कुछ साल पहले मशहूर इतिहासकार डॉक्टर कैलाशचंद पांडे मंदसौर यहां आए और मंदिर के पुरातत्व की बातेंबातें बताई। मंदिर के पुजारी कन्हैयालाल माली ने विभाग से मांग की है कि मंदिर की खुली भूमि में बगीचा लगाया जाए जिससे मंदिर के आसपास फैली गंदगी भी खत्म होगी और मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों की को सुकून मिलेगा।
नवीनराज लोहार का कहना है कि मैं पूर्व में कई पुरातत्ववेता को यहां भुला चुका हूं और सभी पुरातत्ववेता का कहना है कि मंदिर में स्थापित मूर्तियां बहुत महत्वपूर्ण है और विशेष हैं, इनकी हिफाजत होना चाहिए।