चित्तौड़गढ़। भारतीय पञ्चांग का अंतिम माह फाल्गुन शुरू होते ही लोगों का मन हर्ष और उल्लास से भर जाता है। इसका पहला कारण होता है बसंती हवाओं के कारण मौसम सुहावना हो जाता है और दूसरा कारण होता है होली के त्योहार की तैयारियां। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तो होली का पर्व शुभ मुहूर्त में होलिका दहन के बाद मनाया जाता है, परन्तु देश के कई हिस्सों में होली से पहले ही लोग रंग खेलना शुरू कर देते हैं और होली के कई दिन बाद तक खेलते रहते हैं। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार इस साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 02 मार्च दिन गुरुवार को सुबह 06 बजकर 39 मिनट से शुरू हो रही है। इसका समापन अगले दिन यानी 03 मार्च दिन शुक्रवार को सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए इस साल रंगभरी एकादशी 03 मार्च दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है। रंगभरी एकादशी व्रत पारण का समय सुबह 06.48 सुबह से 09.09, 4 मार्च 2023 तक रहेगा।
डॉ तिवारी बताते है कि वैसे इस पर्व का लेना देना होली से नहीं है। दरअसल, रंगभरी एकादशी का पर्व भगवान शिव और पार्वती जी को समर्पित है। हालांकि, इस दिन को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है । रंगभरी एकादशी के दिन देवी पार्वती के गौने की रस्म निभाई गई थी और उन्हें शंकर जी विदा करा कर अपने साथ कैलाश ले आए थे। आंवला श्री हरी विष्णु भगवान को अति प्रिय है और इसलिए आंवला एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान विष्णु के कई प्रमुख वास स्थानों में से एक आंवले का पेड़ भी है। पुराणों के अनुसार इस दिन विधि पूर्वक विष्णु जी की पूजा करने से 1000 गायों के दान के बराबर फल प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, इस दिन व्रत और पूजा करने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है और सारे दोष भी दूर हो जाते हैं। रंगभरी एकादशी के बाद पूरे देश में होली का महोत्सव शुरू हो जाता है, जो रंग पंचमी तक चलता रहता है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव का कच्चे दूध से अभिषेक कर उन्हें बेलपत्र अर्पित करें। फिर मां पार्वती को श्रृंगार सहित सिंदूर अर्पित करें और फिर मां पार्वती को अर्पित की गई ये सामग्री किसी विवाहित महिला को दे दें। इस उपाय को करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और पति को लंबी आयु का वरदान मिलता है। धन धान्य की वृध्दि के साथ घर में सुख शांति आती है।