नीमच। सुदामा संतोषी और स्वाभिमानी थे। उनके पास संतोष का धन था।जो संसार में किसी और के पास नहीं था। सुदामा ने जीवन पर्यंत गरीबी सही लेकिन कभी अपना स्वाभिमान छोड़कर श्री कृष्ण से कुछ नहीं मांगा। श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता का संसार में कोई दूसरा उदाहरण नहीं है।
यह बात भागवतचार्य पंडित भीमाशंकर शास्त्री ने कही । वे श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा महोत्सव आयोजन समिति के तत्वावधान दिवंगत पूर्व जनपद उपाध्यक्ष राजाराम पाटीदार की चतुर्थ पुण्य स्मृति में गामी परिवार भेरु बावजी देवरा परिसर रामनगर में श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा महोत्सव में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संकल्प में विकल्प नहीं ढूंढना चाहिए। नहीं तो हमारा कल्याण नहीं हो सकता है। ईस्ट देवता एक हो लेकिन अन्य देवताओं का भी सम्मान करना चाहिए। सुदामा की सखा भक्ती आज भी आदर्श भक्ती है । श्री कृष्ण स्वयं भेष बदलकर सुदामा के यहां भीख मांगने गए थे। सुदामा गरीब कैसे हो सकता है। सुदामा ने श्री कृष्ण को दरिर्द होने से बचाने के लिए स्वयं श्रापित चने खा लिए और कृष्ण को दरिद्र होने से बचाया था। जिसके पास प्रभु भक्ति का खजाना होता है वह धनी होता है। सपना बड़े देखना चाहिए ताकि सपना पूरा करने में परिश्रम करना पड़े।तो जीवन में सफलता अवश्य मिलती है।इंसान यदि निरंतर परिश्रम करें तो सफलता मिल सकती है।मंदिर में गेहूं पात्र में डालना चाहिए पैरों में नहीं आना चाहिए। संत तुकाराम, संत नामदेव, मीरा, शबरी ने संकल्प लिया था तो उनको भगवान मिल गए थे। पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण नहीं करना चाहिए ।श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा पश्चिमी संस्कृति को रोकने का सशक्त माध्यम है। जन्मदिन पर केक काटना ,मोमबत्ती बुझाना अंधेरे की संस्कृति है। जन्मदिन गौ सेवा कर मनाना चाहिए। किसी को जन्मदिन की बधाई 100 वर्ष जीवन जीने के शुभकामना देना चाहिए। श्री कृष्ण केवट के रूप में नदी पार कराने आए थे। सुदामा ने पहचान लिया था। सारा संसार बदल गया था लेकिन सुदामा नहीं बदले थे। यह दुनिया एक रंगमंच है। भगवान ने सभी को अपना अपना अभिनय प्रदान किया है।यदि हम परमात्मा की शरण में चले जाए तो परमात्मा हमें जिस प्रकार चलाए उस प्रकार चले तो हमारा कल्याण हो सकता है।परिश्रम से ज्यादा फल मिले तो इसका फल परमात्मा को देना चाहिए स्वयं को नहीं। आंखों व वाणी में आदर सम्मान का भाव हो तो दुश्मन भी सम्मान करता है। श्री कृष्ण ने सुदामा के दो मुट्ठी चावल खा लिये थे। तीसरी मुट्ठी चावल खाने वाले थे कि रुक्मणी ने हाथ पकड़ लिया और कहा कि 2 लोकों को दान कर दिया । अपने लिए क्या रखोगे। पड़ोसी की सहायता करना चाहिए । कभी भी संतों का अनादर नहीं करना चाहिए। भागवत गीता ग्रंथ नहीं श्री कृष्ण का वांग्मय स्वरूप है। श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा श्रवण करने से अकाल मृत्यु मरने वाली आत्मा का कल्याण हो जाता है। श्री कृष्ण ने अपना तेज श्रीमद्भागवत को प्रदान कर दिया था। कथा श्रवण के बाद जीवन में परिवर्तन आना चाहिए।
जगह-जगह गौशालाएं खुल रही है। तीर्थों में दर्शन के लिए भीड़ बढ़ रही है।यह कलियुग में सतयुग का प्रमाण है। गोमती चक्र से गौ माता नजर की बाधा दूर होती है। महाराज श्री ने कहा कि कोई शब्द बुरा लगा हो तो क्षमा कर देना।नोट वोट और सपोर्ट नहीं चाहिए मुझे समाज में व्याप्त बुराई की खोट चाहिए। संकल्प और नियम संयम का पालन करें परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है।
महाराज श्री ने श्री कृष्ण सुदामा चरित्र, गोमती चक्र, श्री कृष्ण के यदु वंश का विनाश आदि धार्मिक प्रसंग का वर्तमान परिपेक्ष में महत्व पारित किया।
भागवत पौथी पुजन महाआरती में जावद जनपद के पूर्व अध्यक्ष सत्यनारायण पाटीदार,गोपाल पाटीदार मुकनपुरा, कवि अभय जैन, एस.पी.व्यास आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे। इस अवसर पर कभी अभय जैन, गोविंद सिंह सांडा ,शांतिलाल पाटीदार मांडा ने भी विचार व्यक्त किए
कार्यक्रम शुभारंभ पर विद्वान पंडितों द्वारा हनुमान चालीसा का पाठ निरंतर किया जा रहा है। आना हो गणराज हरि भागवत सत्संग में भजन संकीर्तन से हुआ।
महाआरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ भेरुजी के देवरे पर पूजा अर्चना आरती के साथ हुआ। श्रीमती निर्मला देवी धर्मपत्नी स्वर्गीय राजाराम पाटीदार, जोगेश पाटीदार ने बताया कि श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा का विश्राम हवन यज्ञ में पूर्णाहुति के साथ किया गया। धर्म सभा में एकाग्रता पूर्वक भागवत श्रवण करने वाले श्रद्धालु भक्तों को तुलसी पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।इस अवसर पर आयोजन समिति द्वारा भागवताचार्य भीमाशंकर शास्त्री एवं सहयोगी संगीत कलाकारों की टीम विद्वान पंडितों का शाल श्रीफल से सम्मानकर आशीर्वाद ग्रहण किया गया।इस अवसर पर कृष्णाष्टकम स्तुति का सामुहिक वाचन किया गया। विद्वान पंडितों द्वारा मंत्रों का उच्चारण किया। श्रीमद् भागवत हवन यज्ञ में श्रीमती सुशीला प्रेमसुखपाटीदार,
सम्पत बाई जानकीलाल पाटीदार ने वेदिक मंत्रो उच्चारण किया। महाआरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया। कार्यक्रम का संचालन देवीलाल मुच्छारा, अरविंद पाटीदार ने किया।तथा आभार शिक्षक बालमुकुंद पाटीदार ने व्यक्त किया।
श्री कृष्ण -सुदामा मिलन का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विहल हुए-
श्रीमद्भागवत के मध्य भागवताचार्य पंडित श्री शास्त्री ने जब श्री कृष्ण -सुदामा का प्रसंग बताया तो भक्ति पांडाल मे ,जय जय श्री कृष्णा सुदामा की जय घोष लगी और बता मेरे यार सुदामा रे ...अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो दर पर सुदामा गरीब आ गया ...की स्वर लहरीयां बिखरने लगी।जब श्री कृष्ण ने आंसुओं से सुदामा के चरण धुलाएं तो यह भाव भी विहल दृश्य एवं श्री कृष्ण सुदामा मिलन प्रसंग श्रवण करने से सभी श्रद्धालु भक्तों की आंखें नम हो गई थी ।
--
वॉइस ऑफ़ एमपी की मुहीम- बेज़ुबान पक्षियों के लिए दान करें सकोरे या फिर अपने मकान की छत पर रखे सकोरे, भीषण गर्मी में सुने इनकी फ़रियाद।