सरवानिया महाराज । जिले मे मध्यान्ह भोजन योजना की स्थिति खराब है। सरकार ने इस योजना को इसलिए चला रखा है ताकि स्कूलों मे आंगनवाडिय़ों मे बच्चों को पुरक पोषण मिल सके । जो बच्चे सुबह भोजन कर के आये उनको भूख लगे तो तथा वो बच्चे भी जो भोजन नहीं करके आये उनको भूख लगे तो मध्यान्ह भोजन कर सके। योजना का एक उद्देश्य ये भी है कि बच्चों मे सामाजिक समरसता का विकास हो सके लेकिन सरकार की ये सरकारी योजना आये दिन कटघरे मे आती रहती है। जिमेवारी वाले अधिकारियों ने समुह संचालको को योजना मे लुट की खूली छुट दे रखी है। हालत ऐसी है कि बच्चों का पुरक पौषण से विकास हुआ या नहीं ये तो बाद की बात है लेकिन मध्यान्ह भोजन ठेकेदार का जरूर विकास हो गया है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति गांवों के सरकारी स्कूल और आंगनवाडिय़ों मे है। आंगनवाड़ी के सु-चालाक गांव गोठड़ो के सेठ बन गये है । मीड डे मील कि बदौलत उनके यंहा हाथी झुलने जैसे हालत बन गये है वो हर तरह से लेस हो गये घोड़ा गाड़ी चतुरंगिनी सेना सब साथ लेकर चल रहे है। विकास उनके कदम चुम रहा है। हमारे क्षेत्र मे एक किलो तेल सत्तर बच्चे और एक सप्ताह ये भोजन का रेशा निकला था एक स्कूल का तो वहां एक जनपद सदस्य ने लंबी लड़ाई लड़ी तब जाकर अधिकारियों के कान पर जूं रेगी , समुह बदलना पड़ा। लेकिन गांव मे कहावत है वाज कराड़ी है और वोज वैंसो । कभी भोजन मे किड़े , तो कभी कंकड़ और पानी मे दाल और तो और बच्चों को ही बर्तन मांझने पड़ते है। कई जगह सुबह आठ बजे बना खाना दोपहर को दो बजे खाने को मजबूर बच्चे।
संकुल मे करीब तीस स्कूल मध्यान्ह भोजन वाले , दाल के साथ पतली हालत-
सरवानिया महाराज संकुल केंद्र के अधीन तीस स्कूल ऐसे है जंहा मध्यान्ह काल मे दोपहर 1.30 बजे बाद स्कुली बच्च्चों को मध्याहन भोजन दिया जाता है। लेकिन लगभग जगह ना तो गुणवत्ता का ध्यान है नाही तय मीनू का , रोज रोटी सब्जी देकर काम चल रहा है कभी कभार दिखावे के नाम पर जरूर मापदंड का पालन होता है। एक अधिकारी ने बताया की हम भी सतत मानिटरिंग करते है कि तय मापदंडो पर मीनू अनुसार भोजन मिल रहा या नहीं पर क्या करें कार्यवाही करते है तो ये लोग सत्तारूढ़ दल का रुतबा दिखाते , दुसरा जंहा की शिकायत आती है हम कार्यवाही करते है तो नेताओं के फोन आने शुरू होजाते है।पहले एक शिकायत आई थी 70 बच्चे और एक किलो तेल और एक सप्ताह तो हमने मध्यान्ह भोजन समुह बदलकर जो पहले भोजन बनाती थी उसी को दे दिया। उसके बावजूद मध्यान्ह भोजन खराब गुणवत्ता का या मीनू अनुसार है या नहीं इसके लिए संबधित स्कूल के प्रधान अध्यापक जिम्मेदार है। उनकी ड्यूटी अधिक इसलिए की वो संबंधित शाला के प्रधान है।
मिलिभगत का सिंडिकेट , सु-चालाको की बंदी के आगे धराशायी व्यवस्था-
मध्यान्ह भोजन योजना बनाते समय सरकार ने बहुत ध्यान रखा की ये योजना भ्रष्टाचार की भेंट नहीं चढ़ें लेकिन इस योजना के जिला स्तर के जिम्मेदारो की अनदेखी और ब्लॉक लेवल के अधिकारियों की मिलिभगत से इसमें भी भ्रष्टाचार का रास्ता निकल आया। योजना के सु- चालाक जो राजनीतिक लोगों की पनाह मे रहकर राजनीतिक पद प्रतिष्ठा का चोला ओढ़कर अधिकारियों को नमकीन , दुध पाक , चिवड़ा , मुंगदाल , हलवा , श्रीखंड लेजाकर अधिकारियों की टेबल तक उपलब्ध करा कर भले ही शाला मे कम बच्चों ने भोजन किया हो लेकिन ये निचले स्तर के इन अधिकारियों को रिशवत का गोला खिलाकर अधिक बच्चों की उपस्थिति दर्ज करादेते है यही भ्रष्टाचार है जो महीने के आखिरी मे बड़ा आंकड़ा बन जाता है। मोटे मोटे बिल लाखों का बजट। ये सु- चालाक इसके बदले मे पच्चोत्तर प्रतिशत भ्रष्टाचार का चट कर जाते है बाकी पच्चीस प्रतिशत बतौर बंदी अधिकारियों की टेबल तक पहुंच जाता है।