खरगोन। स्थानीय गुरुद्वारा साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश पूरब हर्षाेल्लास के साथ मनाया गया श्री गुरुसिंघ सभा के प्रधान सरदार हरचरण सिंह भाटिया ने बताया कि प्रकाश पूरब के अवसर पर शुक्रवार रात्रि एवं शनिवार सुबह गुरमत समागम का आयोजन हुआ जिसमें दरबार साहिब अमृतसर से आए हजूरी रागी भाई सुखजीत सिंहजी, सभा के हजूरी रागी ज्ञानी पवन सिंहजी, एवं परमीत सिंह भाटिया ने अपनी ओजस्वी वाणी से संगत को निहाल किया।
भाई सुखजीत सिंह जी द्वारा गायन किए गुरबाणी शब्दों राम राम बोल खोजते बडभागी, रत्ना रतन पदारथ बहू सागर भरेआ राम, मेरे साहिबा कौन जाने गुण तेरे, गुरु रामदास राखो सरनाई, बानी गुरु गुरु है बानी विच बानी अमृतसारे, धुर की बाणी आई तिन सगली चिंत मिटाई से ऐसा प्रतीत हो रहा था की संगत दरबार साहिब अमृतसर में ही गुरबाणी श्रवण कर रही है।
सभा के सेक्रेटरी सरदार कमलजीत सिंह गांधी ने बताया कि सिक्खों के पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जुन देवजी ने सन 1604 ईस्वी में आज ही के दिन श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन करवा के मानवता को पावन ग्रंथ बख्शीश किया श्री गुरुग्रन्थ साहिब जी में मात्र सिख गुरुओं के उपदेश ही नहीं वरन् 30 अन्य सन्तो और अलंग धर्म के मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है। इसमे जहां जयदेवजी और परमानंदजी जैसे ब्राह्मण भक्तों की वाणी है, वहीं जाति-पांति के आत्महंता भेदभाव से ग्रस्त तत्कालीन हिंदु समाज में हेय समझे जाने वाली जातियों के प्रतिनिधि दिव्य आत्माओं जैसे कबीर, रविदास, नामदेव, सैण जी, सघना जी, छीवाजी, धन्ना की वाणी भी सम्मिलित है। पांचों वक्त नमाज पढ़ने में विश्वास रखने वाले शेख फरीद के श्लोक भी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। अपनी भाषायी अभिव्यक्ति, दार्शनिकता, संदेश की दृष्टि से गुरु ग्रन्थ साहिब अद्वितीय हैं।
स्त्री सत्संग जत्थे कि प्रधान माता त्रिलोचन कौर चावला, मीत प्रधान रानू सैनी ने बताया कि प्रकाश पर्व के अवसर पर श्री अखंड पाठ साहिब की समाप्ति के पश्चात समूह जत्थे के द्वारा ष्सरबत के भलेष् के लिए किए गए 44 सहज पाठ साहिब पाठों का समापन किया उपरांत कीर्तन दीवान सजाया गया जिसमें झमाझम बरसते पानी में गुरुद्वारा साहब में गुरबाणी की अमृत रूपी वर्षा से उपस्थित समूह संगत गुरु भक्ति में लीन हो गई।
कीर्तन दरबार की समाप्ति के पश्चात गुरु के अटूट लंगर का आयोजन हुआ जिसमें समाज जनों एवं शहर के गणमान्य नागरिकों ने उपस्थित होकर गुरु प्रसादी ग्रहण की लंगर की सेवा स्त्री सत्संग जत्थे द्वारा की गई।