नीमच। विवेक सत्य अहिंसा अस्थाई अपरिग्रह निराशक्ति वैराग्य ममता आदि धार्मिक सिद्धांतों के उपदेशों को ध्यान में रखते हुए निष्ठा पूर्वक व्यापार करना चाहिए।अनीती से कमाया धन पाप कर्म बढ़ाता है।नीति से कमाया धन ही पुण्य प्रदान करता है।यदि हमने अनीति से कमाया धन दान किया तो वह वहां जाकर भी उनको भी नुकसान ही पहुंचाएगा लाभ नहीं करेगा।
यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आसक्ति के त्याग बिना आत्मा का कल्याण नहीं होता है।यज्ञ अहिंसा मय होना चाहिए तभी पाप कर्म की निर्जरा होगी अन्यथा पाप बढ़ सकता है। विवेक पूर्ण तरीके से दान नहीं करने पर पुण्य भी पाप में परिवर्तित हो जाता है। पशु पक्षियों को छत या ऊंचाई के स्थान पर ही दाना डालना चाहिए। गाय पशु या कुत्तों को मैदान में ही आहार दान करना चाहिए सड़क पर पशुओं को आहार नहीं खिलाना चाहिए इससे दुर्घटना का खतरा रहता है और दुर्घटना होने पर पुण्य पाप में बदल सकता है इसलिए सावधानी रखना चाहिए। पितरों के लिए आहार दान करते समय नीति और उपदेशों और सत्य का ध्यान रखना चाहिए। अनीति पूर्वक कमाया हुआ धन बुद्धि बदल देता है ।जैसा अन्न ग्रहण करेंगे वैसा ही हमारा मन होगा। इसलिए पवित्रता पूर्वक कार्य कर ही धन का उपार्जन करना चाहिए।प्राचिन कॉल में लोग मिट्टी के कच्चे मकान में रहते थे लेकिन उनके दिल पक्के होते थे ।आज लोग पक्के मकान में रहते हैं लेकिन उनके दिल कच्चे होते हैं। चिंतन का विषय है।हमारा युग किधर जा रहा है हमें विचार करना चाहिए। हम धर्म से विमुख क्यों हो रहे हैं इस पर हमें चिंतन करना चाहिए। धर्म की आचार संहिता का पालन सत्य अहिंसा के साथ करना चाहिए तभी उसका पुण्य लाभ मिल सकता है समयऔर काल के अनुसार धार्मिक परंपराओं में भी अनेक परिवर्तन होते आए हैं और आगे भी होते रहेंगे लेकिन हमें सत्य और अहिंसा को नहीं छोड़ना है तभी हमें पुण्य का फल मिलेगा और हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। धर्म तत्व में क्या निषेध है।इसको गहराई से समझना होगा तभी हम धर्म का पालन सही ढंग से कर सकते हैं अन्यथा हमारा कभी-कभी पुण्य भी पाप में बदल जाएगा इसकी सावधानी रखना चाहिए। भोजन परोसगारी करना भी एक प्रकार का पुण्य है। लेकिन यह विवेक पूर्वक होना चाहिए।शुद्ध और प्रामाणिक आहार दान करने से हमें पुण्य भी प्रमाणिक मिल सकता है।धार्मिक विवेक पूर्ण जीवन जीना चाहिए ।विवेक से चलना चाहिए विवेक से बोलना चाहिए विवेक से आहार करना और करवाना चाहिए तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है।यज्ञ वही सफल होता है जिसमें पशु बलि नहीं हो ,वनस्पति जगत का होम निषेध है। इस बात का ध्यान रखा जाए तभी यज्ञ सफल होता है।प्रत्येक यज्ञ में अहिंसा का पालन किया जाए तभी वह यज्ञ की सार्थक होता है।भगवान महावीर स्वामी ने तप जप संयम अहिंसा साधना को ही महान यज्ञ का स्वरूप बताया है और जो अहिंसा सत्य अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का पालन करता है।संयम की साधना करता है वही सच्चा ब्राह्मण बनता है।
साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि संसार में आत्मा का धर्म पुण्य कमाना होता है नौ प्रकार के पुण्य का वाचन किया जा रहा है। निर्धन गरीब असहायों को अन्न दान करते हैं तो आशीर्वाद का पुण्य कमा सकते हैं।हम जितना दान करते हैं उसका 10 गुना होकर हमें वापस मिलता है। जैसा अच्छा अन्न हम ग्रहण करना चाहते हैं। वैसा ही अन्न गरीबों और असहायों को करवाना चाहिए।यदि हम गरीबों को शुद्ध और पवित्र आहार करेंगे तो तभी हमें पुण्य मिल सकेगा। यदि हम वेस्ट अन्न का दान प्रदान करेंगे तो हमारा पुण्य वेस्ट हो जाएगा।यदि हमें पुण्य बेस्ट करना है तो दान भी बेस्ट करना होगा।
वीरेंद्र सिंह चौरड़िया ने पल दो पल का जीवन है धर्म ध्यान करते नहीं तो मृत्यु तो आनी है... स्तवन प्रस्तुत किया।
तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन ,शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई।इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।