उज्जैन। कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती है। इस बार नवमी तिथि 21 नवंबर मंगलवार को मनाई गई। इस दिन आंवला के पेड़ का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि आंवले की पूजन करने से स्वास्थ्य, सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी से पूर्णिमा तक त्रिदेव आंवले के वृक्ष पर निवास करते है।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि आंवला नवमी मंगलवार को मनाई गई। इस बार नवमी तिथि के दिन रवि योग और हर्षण योग होने के साथ ही पंचक है। इस दिन आंवले के वृक्ष के पूजन का विधान बताया गया है। सुबह से ही महिलाएं आंवले के वृक्ष के पूजन के बाद मंदिरों में भी पूजन करने पहुंची।
फ्रीगंज क्षेत्र में स्थित अखंड ज्योत हनुमान मंदिर के पुजारी संदीप शर्मा ने बताया कार्तिक के महिने में प्रमुख त्यौहार आते है। एक दिन आंवला नवमी का भी आता है। इस दिन इसका नाम प्रदक्षिणा नवमी भी है। आंवले के मूल में भगवान का वास होता है। जब पार्वती के श्राप से सभी देवता वृक्ष रूप को प्राप्त हुए तो सरस्वती जी का वास आंवले की जड़ में माना जाता है। भगवान नारायण आंवले के वृक्ष में सपरिवार विद्यमान रहते है।
आंवला नवमी आंवले की पूजा करना उसकी प्रदक्षिणा करना श्रेष्ठ रहता है। कोई जाप किया जाए, पूजा की जाए, दान करे या तर्पण करे उसका अंनत फल प्राप्त होता है। आंवला नवमी के दिन किया गया पुण्य खत्म नहीं होता है। महिलाएं आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध, जल, पुष्प और चावल चढ़ा कर घी का दीपक जलाती है। मिठाई का प्रसाद अर्पित कर वृक्ष पर पीला धागा बांधकर 7, 11, 21 बार परिक्रमा कर स्वास्थ्य, सुख, अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करती है।