नीमच। संसार में मनुष्य जब पाप कर्म करता है तो हंसता है लेकिन जब पाप कर्म की सजा मिलती है तो वह रोता है और दुखी होता है ।धर्मशास्त्र यह कहते हैं कि जो कर्मों में किया है वही फल सजा के रूप में मिलता है। पाप कर्म की सजा से तो तीर्थंकर महावीर स्वामी भी नहीं बच पाए। इसलिए यदि हमें पाप कर्म के फल जो दुखों के रूप में मिलते हैं उसको यदि हंसते-हंसते सहन करेंगे तो वह कम हो जाएंगे। सदैव अच्छे कर्म करें किसी का बुरा नहीं करें सदैव भलाई के कार्य करें तो फल भी सदैव पुण्य अच्छा ही होगा।
यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन पर दिवाकर जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित धर्म सभा के बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि भूल वश कोई पाप हो जाए तो उसे पाप का प्रायश्चित सच्चे मन से किया जाए तो उस पाप कर्म की सजा कम हो सकती है। साधु संत कर्म को भोंगते हुए नया कर्म नहीं बंधने नहीं देते हैं इस बात का पूरी सावधानी रखते हैं। दुःख मिलने पर साधु संत यह सोचते हैं कि यह कर्म हमारे पूर्व जन्म का फल है इसलिए वह दुःखी नहीं होते हैं।संसार में रहते हुए यदि हमने जंगल में अकेले भी पाप किया है तो वह पाप छुप नहीं सकता उसकी सजा अवश्य मिलती है और वह पाप एक दिन अवश्य उजागर होता है इसलिए सदैव पुण्य भलाई के कम करें पाप से सदैव बचना चाहिए।भलाई करेंगे तो हमारा भी भला होगा
बुराई करेंगे तो हमें भी बुराई की सजा मिलेगी।पुण्य कर्म के बिना आत्मा को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है। ज्ञान का अंश मात्र पुण्य भी मोक्ष मार्ग दिखा सकता है।साधु को आहार दान करते समय पैरों में जुते चप्पल नहीं पहने इस बात का ध्यान रखना चाहिए। साधु को आहार किस प्रकार दान देते हैं इसका विधिवत प्रशिक्षण लेना चाहिए और उसका पालन करना चाहिए नहीं तो आहार दान का पुण्य कभी पाप में भी बदल सकता है इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए।साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि संसार परिवर्तनशील है प्रत्येक मनुष्य नश्वर क्षणिक है।मनुष्य बाजार से वस्तु खरीदते समय प्रसन्न होता है लेकिन जब वह टूट जाती है खराब हो जाती है तो मन से दुखी होता है। भौतिक पदार्थ दुख देने वाले ही हैं वह सुख कभी नहीं दे सकते हैं ।सच्चा सुख तपस्या उपवास और भक्ति करने के साथआत्मा में विचरण करने से ही मिल सकता है।मनुष्य संसार में रहते हुए सुख प्राप्त करने के लिए गाड़ी बंगला सब कुछ प्राप्त कर लेता है अधिक धन होने पर वह पत्नी परिवार गाड़ी सभी का बीमा करवा लेता है जब उसे व्यक्ति से पूछा जाता है कि आपने अपनी आत्मा के लिए क्या किया है तब वह कहता है कि मेने अपनी आत्मा लिए कुछ नहीं किया इसलिए साधु संत के पास जाकर गुरु आज्ञा में रहते हुए अपनी आत्मा के कल्याण के लिए जीवन पर्यंत धार्मिक तपस्या भक्ति के पंचखान का नियम लेना चाहिए ताकि बचा हुआ जीवन अच्छा बीते और आत्मा का कल्याण हो सके। मनुष्य जीवन के एक पल का भी भरोसा नहीं है कि अगले पल वह रहेगा या नहीं इसलिए मनुष्य को सदैव हर पल धर्म भक्ति तपस्या का कर्म करते रहना चाहिए ताकि कभी मृत्यु भी आ जाए तो वह पुण्य फल साथ रहे और मोक्ष गति मिल सके।
तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन ,शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई। इस अवसर पर बुधवार सुबह 11 बजे मेमोरी टेस्ट ज्ञान बढ़ाओ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया इसमें सभी समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। विजेताओं को सम्मानित किया जाएगा।
जैन दिवाकर प्रश्न मंच प्रतियोगिता आज-
जैन दिवाकर महिला मंडल नीमच छावनी की अध्यक्ष रानी राणा,सचिव सीमा चोपड़ा, कोषाध्यक्ष सुरेखा चंडालिया ने बताया कि गुरु चौथमल जी महाराज साहब जैन दिवाकर के 146 वें जयंती महोत्सव के पावन उपलक्ष्य एवं कार्यक्रम की श्रृंखला में आज गुरुवार 23 नवंबर को दोपहर 1 बजे जैन दिवाकर प्रश्न मंच एवं धार्मिक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएगी।
24 नवंबर शुक्रवार को दोपहर 1 बजे शांति पाठ का जाप, शनिवार 25 नवंबर को शासकीय अस्पताल में प्रातः 9ः बजे फल फ्रूट बिस्किट एवं गायों का हरा चारा वितरण कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। रविवार 26 नवंबर को सुबह 9 बजे जैन दिवाकर का चालीसा पाठ आयोजित किया जाएगा। दो भाग्यशाली विजेताओं के ड्रॉ खोलकर सम्मानित किया जाएगा। ड्रॉ के धर्म लाभार्थी संगीता राजेंद्र जरौली तथा मंजू सावर लाल कांठेड़ परिवार होंगे। दोपहर 1 बजे बच्चों की धार्मिक फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता 11 वर्ष से ऊपर वर्ग की आयोजित की जाएगी। दोपहर 2 बजे हॉस्पिटल में फल वितरण कार्यक्रम भी आयोजित किया जाएगा।
27 नवंबर को सुबह 9 बजे लोका शाह जयंती एवं विदाई समारोह आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।