चित्तौड़गढ। बिरला कॉर्पाेरेशन लिमिटेड ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट के लिए पब्लिक रिलेशंस सोसाइटी ऑफ इंडिया नेशनल अवॉर्ड द्वितीय पुरूस्कार जीता है। यह अवॉर्ड डॉ भीमराव अंबेडकर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर, जनपथ, नई दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल पब्लिक रिलेशंस फेस्टिवल में कंपनी के प्रतिनिधियों को सौंपा गया। वार्षिक रिपोर्ट की वारली-कला थीम वाले कॉन्सेप्ट को व्यापक रूप से सराहा गया है। वारली कला भारत की चित्रकला की सबसे पुरानी विधाओं में से एक है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह 10वीं शताब्दी ई पू की है। उत्तरी सह्याद्रि रेंज के जनजातीय लोगों द्वारा पारंपरिक रूप से प्रचलित यह कला प्रकृति के तत्वों और मिट्टी के रंगों को जियोमेट्रिक्ल अरेंजमेंट के साथ जोड़ती है। वारली वास्तव में महाराष्ट्र और भारत की महान विरासतों में से एक है। पारंपरिक शैली को ध्यान में रखते हुए, वारली चित्र अनौपचारिक और खूबसूरत होते हैं, जबकि इनमें सौम्यता की ताकत का तत्व होता है।एमडी और सीईओ, बिरला कॉर्पाेरेशन लिमिटेड संदीप घोष, ने कहा कि इस बार कंपनी को महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के मुकुटबन में हमारे नवीनतम ग्रीन-फील्ड इंटीग्रेटेड सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग प्लांट के नजरिए से पेश करने का प्रयास किया गया, जिसकी वार्षिक स्थापित क्षमता 3.9 मिलियन टन है और इसे 2,744 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया। चूंकि मुकुटबन महाराष्ट्र में है इसलिए हमने महाराष्ट्रीयन कला विरासत को दर्शाते हुए वारली कला मार्ग को चुना है। बिरला कॉर्पाेरेशन लिमिटेड की जनकल्याण और सीएसआर गतिविधियों के परिणामस्वरूप, वारली कला की अंतर्निहित भावना सामने आई है। वास्तव में, फ्रंट कवर और दूसरे कवर से लेकर कॉर्पाेरेट सूचना पृष्ठों तक सभी चित्र, वारली कला के ढांचे के भीतर, सस्टेनेबिलिटी के प्रति कंपनी की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। हमने अपना जूट डिवीजन प्रस्तुत किया है, जो एक बार फिर पर्यावरण संतुलन के संरक्षण के लिए हमारी प्रतिबद्धता है, जिसमें जूट की खेती, कटाई, कताई और बुनाई को दर्शाने वाली वारली कला की मूर्तियों और डिजाइनों का उपयोग किया गया है।