नीमच। अंतरंग प्रेम भाव के लिए श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा कथा का स्थान होता है जिसने प्रभु को आश्रय बनाया वह संत बनता है। जिसने काम को आधार बनाया वह संसारी बनता है जिसके कर्म में राम है जो परमात्मा का चिंतन करता है। उसकी आत्मा का मोक्ष हो जाता है। यह बात पंकज कृष्ण महाराज ने कही। वे अंबेडकर कॉलोनी नीमच के नारायण गिरी बाबा मंदिर परिसर के सभागार में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि एकांत में एकाग्रचित होकर राधा का स्मरण करना चाहिए राधा नाम का जाप जीवन को नई राह दिखाता है। संकट में काम आए वही सच्चा मित्र होता है। श्री कृष्ण सुदामा की मित्रता का संसार में कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। धन, बल व समय सभी का त्याग कर देता है। वह सिर्फ प्रेम भाव का व्यवहार रखता है। जल से पतला ज्ञान और पाप भूमि से भारी होता है इसलिए सदैव पाप से बचना चाहिए। ज्ञान ग्रहण कर पुण्य कर्म करना चाहिए। रावण ज्ञानी विद्वान और शंकर भगवान का सबसे बड़ा भक्त था लेकिन अधर्म का पाप करने के कारण परमात्मा को धरती पर अवतार लेकर उसका संहार करना पड़ा था। क्रोध अग्नि से तेज होता है। उसे सदैव बचना चाहिए। पिछले सदैव क्रोध करने से बचना चाहिए और पुण्य और प्रेम के साथ आगे बढ़ना चाहिए कभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। कलंक काजल से भी काला होता है। इसलिए सदैव किसी पर भी कभी भी ऐसा झुठा कलंक नहीं लगाना चाहिए। कथा श्रवण के नियम होते हैं। कथा श्रवण के साथ किसी की भी निंदा नहीं करना चाहिए तभी उसका फल सार्थक रूप से मिलता है। संसार में कमाया धन यही रह जाएगा हमारे साथ सिर्फ पुण्य परमार्थ जाएगा। गुरु कृपा हो तो सब कुछ मिल सकता है। शिक्षा गुरु तो कोई भी बन सकता है लेकिन दीक्षा गुरु भगवत कृपा से ही पुण्य परमार्थ का पुरुषार्थ करें और हम किसी की भी बुराई को अपने गले तक ही रखें उसको दूसरों तक नहीं फैलाएं तो दुनिया में किसी प्रकार की लड़ाई झगड़े नहीं होंगे। पूजा अभिषेक में कच्चे दूध से वंश वृद्धि, दही से रोग दूर होते हैं। घी से आयु बढ़ती है। शहद से लक्ष्मी की कृपा बढ़ती है। शक्कर से दीर्घायु जीवन मिलता है। पंचामृत से मनोकामना पूर्ण होती है। चंदन से तेज योवन बढ़ता है। गंगाजल से पापों से मुक्ति मिलती है और विजया से मनवांछित फल मिलता है।
निरंतर प्रभु का स्मरण करने से जीवन में सफलता मिलती है। स्मरण मात्र से अंतरंग दोष नष्ट हो जाते हैं। शिव स्वयं भी राम स्मरण करते थे। प्रेम के साथ भगवान का नाम निकलता है उस पर 33 करोड़ देवता पुष्प वर्षा करते हैं। जब-जब धर्म की हानि होती है वहां महापुरुष अवतार लेते हैं। अहंकार काम क्रोध मोह टूटने से जीवन में सफलता मिलती है यदि हम सुख में राम का स्मरण करे तो दुख कभी नहीं आता है। धर्म के मार्ग पर चलने वाले का सदैव कल्याण होता है इसलिए बुराई से बचें और धर्म के मार्ग पर चलें अच्छे कार्य करने के बजाय उस उस में बाधक बनना अधर्म है।मनुष्य जीवन में यदि सफलता प्राप्त करनी है तो निंदा का अपराध करने से बचना चाहिए। हरी इच्छा को स्वीकार करना मनुष्य का कर्तव्य है। दुख से बड़ी प्रभु नाम की माला है। परमात्मा का स्मरण करेंगे तो दुख आता ही नहीं है। तन मन धन धर्म के साथ रहना चाहिए तभी जीवन सफल होता है। सोने चांदी से अधिक राम नाम का धन होता है इसलिए राम नाम का स्मरण करना चाहिए। मृत्यु के पश्चात व्यक्ति संसार से खाली हाथ ही जाता है साथ जाते हैं तो केवल उसके पुण्य कर्म ही साथ जाते हैं।जिंदगी एक किराए का मकान है इसे खाली कर सभी को जाना है। क्यों की व्यक्ति संसार से खाली हाथी वापस लौटता है। संसार में जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है।जिंदगी का कोई भरोसा नहीं कभी भी साथ छोड़ सकती है। जीव दया का पालन करना चाहिए। मांसाहार का त्याग करना चाहिए और जीवन में शाकाहार को अपनाना चाहिए तभी आत्मा का कल्याण हो सकता है। हो सके तो लहसन प्याज का भी त्याग करना चाहिए तभी आत्मा पवित्र हो सके। मदीरा विनाश का मार्ग है इससे सदैव बचना चाहिए। श्रीमद् भागवत कथा के मध्य महाराज श्री ने बलराम शेष अवतार, तक्षक नाग द्वारा राजा परीक्षित को सर्प डंस, गुरु संदीपनी, गर्गाचार्यजी, उग्रसेन महाराज, जामवंत श्री कृष्ण युद्ध, जामवंती एवं मणी, नरसिंह अवतार भक्त प्रहलाद, कबीर दास जी के दोहे आदि विषयों का वर्तमान परिपेक्ष्य में महत्व प्रतिपादित किया।
कथा में समाज सेवी योग गुरु भगवती प्रसाद कौशल, प्रभु लाल सोलंकी ने पुष्पमाला अर्पित कर श्रीमद् भागवत पोती का पूजन किया। कथा में बड़ी संख्या में गणमान्य लोग उपस्थित थे। महा आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया।
श्री कृष्ण सुदामा प्रसंग देख भाव विह्वल हुए श्रद्धालु-
श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा के मध्य पंकज कृष्ण महाराज ने कृष्ण सुदामा का प्रसंग बताया तो भक्ति पंडाल में उपस्थित श्रद्धालु जय जय श्री कृष्ण की जय घोष लगने लगे। कृष्ण द्वारा सुदामा के चरणों को अपने आंसुओं से धुलाएं तो सभी भाव विहल हो गए। कृष्ण का अभिनय कांची शिव ने, रुक्मणी का अभिनय अंशी यादव ने, सुदामा का अभिनय चेतन शिवा ने द्वारपाल का अभिनय हर्षित कानु अम्ब, भावेश चौहान ने, सखियां कृपा शिव, पीहू यादव ने प्रस्तुत किया।