नीमच। रात्रि भोजन त्याग आत्मा को पवित्र करने का सशक्त माध्यम है। रात्रि भोजन करने से हिंसा होती है। पाप कर्मों का कारण बनती है। सूर्य की रोशनी में किया गया भोजन शुद्ध होता है। मच्छर नहीं होते हैं और जीव हिंसा भी नहीं होती है और पाप कर्म भी नहीं बढ़ता है।सूर्यास्त और भोजन चिकित्सा वैज्ञानिकों की दृष्टि में भी सही मापदंड होता है क्योंकि भोजन यदि 6 बजे करते हैं तो सोने से पहले जो समय मिलता है उस समय में पेयजल ग्रहण कर सकते हैं।इस विधि के कारण शरीर में पाचन क्रिया सही रहती है। रोग नहीं होते हैं और शरीर स्वस्थ रहता है। सूर्यास्त के बाद अंधेरे मेंभोजन ग्रहण करना विष के समान होता है। क्योंकि अंधेरे में मच्छर भी भोजन में गिर सकते हैं। इसलिए सदैव सूर्यास्त पूर्व ही भोजन करना चाहिए उससे पुण्य कर्म बढ़ता है। सूर्यास्त बाद भोजन करने से जीव हिंसा भी होती है और पाप कर्म भी बढ़ता है।यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि ऋषि मुनि द्वारा तपस्या कर सच्चे और दोष रहित उपदेश का मार्गदर्शन दिया उन्हीं को स्वीकार कर पालन करना चाहिए तभी आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। परमात्मा की वाणी में जो सत्य उपदेश है उसे ही स्वीकार करना चाहिए। वेदों में रात्रि भोजन को नर्क का द्वार बताया गया है। कुछ निहित स्वार्थी लोगों ने रोजगार के लिए अर्थ का अनर्थ कर दिया गया है। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुभव के अनुसार उपदेश तो सही दिए हैं लेकिन कुछ लोगों ने अपनी सुविधा अनुसार अर्थ का अनर्थ कर दिया और परंपराओं में परिवर्तन कर दिया। हमारी श्रद्धा संयम नियम के विपरीत गलत है तो वह पाप बढ़ाने वाली हो सकती है इसलिए पुण्य कर्म हो वही श्रद्धा और विश्वास का पालन करना चाहिए।और विश्वास संसार में सबसे बड़ी वस्तु है कभी-कभी बुद्धिमान की गलती कर सकते हैं इसलिए सत्यता की जांच किए बिना किसी भी उपदेश का पालन नहीं करना चाहिए। जीव दया का पालन नहीं हो तो वह गलत तत्व अंधश्रद्धा मिथ्या तत्व होती है । जीव दया के उपदेशों का पालन करना चाहिए। राम ने संयम में जीवन का पालन किया है तो वह महापुरुष आदर के योग्य है।श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला।पूज्य आचार्य भगवंत का आचार्य पदवी के बाद प्रथम चातुर्मास नीमच में हो रहा है। उपवास, एकासना, बियासना, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद ,जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया,जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।