भोपाल। माता-पिता के पारस्परिक झगड़े, दुर्व्यवहार के कारण भी बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मां-बाप का कलह-पूर्ण जीवन, चारित्रिक दोष, बच्चों को अपराधी बनाने का महत्वपूर्ण कारण है। पारिवारिक उथल-पुथल, कलह, दुर्व्यवहार आदि भी बच्चों के मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालते हैं और वे गलत मार्ग अपनाते हैं। ऐसे ही कुछ बच्चे शहर के बाल संप्रेषण गृह में भी हैं, जिन्हें सुधारने या उनका जीवन बदलने के लिए उन्हें लाया जाता है। जिसके लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, जो आज रंग भी ला रहे हैं। शहर के बाल संप्रेषण गृह के पांच बच्चे इसका उदाहरण हैं, जो शतरंज का सहारा लेकर अपना जीवन बदल रहे हैं। उन्होंने इस खेल में वैश्विक स्तर पर अपनी मेधा का डंका बजा दिया। विश्व शतरंज संघ की ओर से आयोजित तीसरी फिडे अंतरमहाद्वीप आनलाइन शतरंज प्रतियोगिता में 50 देशों की टीमों को हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया है। उन्होंने फाइनल में गत विजेता सर्बिया को हराकर यह उपलब्धि हासिल की। उन्होंने इस प्रतियोगिता में यूथ इंडिया बी टीम का प्रतिनिधित्व किया। इस कैटेगरी में पहली बार भारत की टीम ने इंडियन आयल कारपोरेशन के संयोजन से भागीदारी की थी और पहली ही बार में खिताब भी जीत लिया। उनकी इस जीत पर किशोर न्याय (जुवेनाइल जस्टिस) बोर्ड की प्रधान न्यायाधीश श्रुति जैन, सदस्य डा. कृपाशंकर चौबे समेत अन्य लोगों ने बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
इन बच्चों को नया जीवन देने वाले प्रशिक्षक दीपक कुमार बासू ने बताया कि मनोवैज्ञानिक आधार पर मानसिक अस्थिरता, हीनभावना तथा बुद्धि की कमी भी बाल अपराध का कारण है। जिन परिवारों में पारिवारिक अशान्ति तथा कलह का वातावरण रहता है, उन परिवारों में बच्चा यह तय नहीं कर पाता है कि उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए। यह स्थिति बच्चे को अपराधी बना देती है। इसे रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय शतरंज संघ (फिडे) शतरंज के जरिए उनका जीवन बदलने की कोशिश कर रहा है। जिसमें बाल अपचारियों के लिए शतरंज की प्रतियोगिता कराई जाती है। जिसमें दुनिया भर के बाल अपचारी हिस्सा लेते हैं। भोपाल के बाल संप्रेषण गृह में रहने वाले इन बच्चों ने देश के लिए स्वर्ण पदक जीतकर अपना जीवन बदल दिया है।
पहचान छुपाने बच्चों को पहनाया मास्क
भारतीय टीम के प्रशिक्षक निखलेश जैन ने बताया कि इन बच्चों को दो माह का प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें पूरे देशभर से 40 बच्चों को चयनित कर उनका कैंप लगाया, जहां उन्हें शतरंज की शिक्षा और कंप्यूटर चलाना सिखाया। अंत में पांच बच्चों की टीम बनाई गई, जिसमें भोपाल के बाल संप्रेषण गृह के बच्चे पांच चयनित हुए। बच्चों की पहचान छुपाने के लिए उन्हें मास्क पहनाया गया। उनकी प्रतियोगिता आनलाइन कराई गई। जिसमें दुनिया के 118 देशों की टीमों ने हिस्सा लिया। यह प्रतियोगता 16 दिनों तक चली।