NEWS : परमात्मा की भक्ति से दुःख दुर्भाग्य दूर हो जाते हैं- आचार्य श्री रामेश, अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव 10 को बालक बालिका आवासीय शिविर 10 से, पढ़े रेखा खाबिया की खबर
चित्तौड़गढ़। युग निर्माता आचार्य श्री रामेश एवं बहुश्रुत वाचनाचार्य उपाध्याय प्रवर श्री राजेश मुनि जी म सा आदि ठाणा का शान्ति भवन सेंती से जैन स्थानक मीरानगर में जयकारों के साथ भव्य मंगल प्रवेश हुआ। धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए महान आध्यात्म योगी आचार्यश्री रामेश ने अपने दिव्य प्रवचन में कहा कि विमलनाथ भगवान के दर्शन दुःख और दुर्भाग्य को दूर करने वाले होते हैं। जो दुःख हमें मिलता है वह हम स्वयं ही पैदा करते हैं। अकुशल मन के द्वारा हमने दुःख को पैदा किया। पाप कर्मों को बांधते समय हमें अन्दर से बहुत हर्ष होता है परन्तु जब वह कर्म उदय में आता है तो हमें बहुत पछतावा होता है कि हमसे यह क्या हो गया। दुनिया में रहने वाले अधिकांश लोग दुःख का संग्रह करते हैं। पाप करते समय अंदर से आवाज आती है कि यह सही नहीं है परन्तु किसी के कहने पर हम खुद के मन की बात को दबा देते हैं। इसी को अकुशल मन कहा गया है। हमारे मन के मालिक हमें होना चाहिये लेकिन मन के मालिक नहीं होने से मन अशांत रहता है। बहुत ज्यादा शांत नहीं रहता। यदि हमारी चर्याएं साधु के अनुकूल नहीं होगी तो साधु की उपासना हम कैसे करेंगे। मरने के बाद भी शांत हो जाते हैं लेकिन जीवन के दौरान शांत होना चाहिये। सामायिक साधना करने की प्रेरणा आचार्य भगवन ने दी। प्रवचन सभा को सम्बोधित करते हुए आदित्य मुनि जी म सा ने कहा कि जो गुरू में परमात्मा नहीं देख सकता वो परमात्मा में भी परमात्मा नहीं देख सकता। जिन लोगों को हम अपना आदर्श मानते हैं हम उनकी तरह ही बन जाते हैं। जो दिखता है वह बिकता है। उसमें हमारे देखने का नजरिया कैसा है यह विचार करना होगा। महापुरूषों के दर्शन मात्र से अश्रुत कर्म नष्ट हो जाया करते हैं। आज हमारी संस्कृति समाप्त हो रही है, विकृति शुरू हो रही है। इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। शासन दीपिका महासती श्री समता श्री जी म सा, श्री अरूणाश्री जी म सा आदि साध्वी मण्डल ने गुरू भक्ति गीत प्रस्तुत किया। श्री लाघव मुनि जी म सा ने कहा कि भाव अगर अच्छे नहीं होंगे तो गुरू की भक्ति नहीं होगी। भाव नहीं बिगड़ना चाहिये। भाव बिगड़ गया तो भव बिगड़ जायेंगे। किसी भी व्यक्ति के प्रति नफरत के भाव व दुर्भाव न हों। धर्मसभा का संयोजन करते हुए पारस बाबेल व महेश नाहटा ने त्यागी महापुरूषों के जीवन से प्रेरणा लेकर जीवन सजाने का आग्रह किया। शीलव्रत के प्रत्याख्यान रतनलाल बोहरा, झवरीलाल नाहर एवं महेन्द्र बोहरा ने लिये। आजीवन रात्रि भोजन के त्याग अशोक कोठारी, अशोक नाहर आदि ने लिये। एक वर्ष तक एकासना बियासना तप करने का नियम करणमल अलावत ने लिया। रामपुर, देशनोक, कपासन, बेगूं, भदेसर, उदयपुर, रतलाम, बीकानेर आदि कई क्षेत्रों के श्रद्धालुओं ने गुरूदर्शन का लाभ लिया। वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ व साधुमार्गी जैन संघ व सकल जैन समाज ने महापुरूषों के सानिध्य का लाभ लिया। दोपहर में महापुरूषों के सानिध्य में आगम वांचनी, ज्ञान चर्चा, जिज्ञासा समाधान आदि कार्यक्रम सम्पन्न हुए। चित्तौड़ में आचार्यश्री का सन् 2004 में चातुर्मास हुआ। दक्षिण भारत, तमिलनाडू, कनार्टक, आन्ध्रप्रेदश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आसाम, महाराष्ट्र, गुजरात, मालवा की धरती को पावन करते हुए आपका 20 वर्षों बाद शिष्यमण्डली सहित लगभग 70 साधु-साध्वी जी म सा का चित्तौड़ में पदार्पण हुआ है। रविवार का प्रवचन किलारोड़ गांधीनगर स्थित नानेश रामेश ज्ञान विद्यापीठ (समता भवन) में सम्भावित है जहां आचार्यश्री के सानिध्य में 10 मई को अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव का आयोजन होगा। सम्पूर्ण भारतवर्ष के लगभग 108 तपस्वीयों के पारणे होंगे। इसके साथ ही 10 से 26 मई तक 9 वर्ष से अधिका आयु के बालक बालिकाओं का विशाल आवासीय शिविर आयोजित होगा जिसमें अब तक 2000 से अधिक रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं। संघ की तीनों इकाईयां समता युवा संघ, समता महिला मण्डल और समता बहुमण्डल ने अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन करना प्रारम्भ कर दिया है।