चित्तौड़गढ़। ईश्वरीय विश्वविद्यालय के इतिहास में 18 जनवरी 1969 को जो एक विशेष वृतांत हुआ उस दिन ईश्वरीय विश्वविद्यालय के साकार संस्थापक पिताश्री अर्थात प्रजापिता ब्रह्मा का सूक्ष्मा लोका रोहन हुआ। वे विजय अवस्था में तो थे ही अब स्थूल देह से मुक्त होकर दिव्य सूक्ष्म प्रकाश माली अव्यक्त ब्रह्मा रूप से संसार की आध्यात्मिक सेवा में तीव्र गति से प्रवृति हुए वे जीवन में धनी दानी ज्ञानी थे। उनका जीवन लोक कल्याण की सेवार्थ था वह जीवन में ज्ञान गुण पवित्रता और योग की संपूर्ण अवस्था को प्राप्त हुए उन्होंने साकार रूप में जो कर्तव्य की वे हम सभी के लिए आदर्श बन गए। यह विचार ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्र प्रताप नगर पर राजयोगिनी आशा दीदी जी ने बताया की 18 जनवरी विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने ब्रह्मा बाबा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया पिताश्री जी का जीवन बहुत उच्च था। वे हीरो के व्यापारी थे जब कोई व्यक्ति मां तो उन्हें देखता था तो उन्हें ऐसा महसूस होता था कि वह निश्चय ही एक अनुपम व्यक्ति है। उनके ऊंचे और स्वस्थ शरीर उनके भव्य माथे और उनकी पैनी मर्म बेदी आंखों को देखकर सभी लोग प्रभावित हो जाते थे 90 वर्ष की आयु में भी उनका चेहरा सिकुड़ा नहीं था उनकी आंखे इतनी स्वस्थ थी कि उन्होंने कभी चश्मा नहीं लगाया। उनकी वाणी मीठी थी और साथ ही गंभीर भी उनके मुख्य मंडल पर हमेशा मुस्कुराहट खेलती रहती थी। बाबा को कभी भी किसी ने जोर से हंसते हुए नहीं देखा ना कभी उदास देखा वे अत्यधिक व्यस्त रहने के बावजूद भी वे कभी थके हुए नहीं दिखाई देते थे और हर समय शिव बाबा के याद में सदा मस्त व्यस्त रहते थे। उनके हृदय में मानव जाति के प्रति अपरंपार प्रेम था वर्तमान पतित युग में बाबा ने आध्यात्मिकता का स्तर बहुत ऊंचा उठाया। उन्होंने बताया की ब्रह्मा बाबा ने इस पतित विश्व को पवित्र विश्व में रूपांतरित करने का विशाल कार्य अपने कंधों पर लिया और एक सच्चे कर्म योगी का जीवन बिताया उन में छिपे रत्नों को परखने की जितनी प्रतिभा थी उतनी किसी में नहीं थी जो भी व्यक्ति उनके संपर्क में आता था उसे भी ऊंचा उठा देते थे। उनकी रूहानियत और उन का रुमाल हमारे लिए एक सुखद अनुभव होता था और प्रेरणा का स्त्रोत बना उनकी ज्ञान में गहरी पहुंच और योग में सर्वाेच्च तपस्या दिव्य गुणों की ऊंचाई पवित्रता की पूर्ण पराकाष्ठा मधुरता और महानता हमारे लिए आदर्श बन गई। अतः जैसे ही पुराने वर्ष का अंत होने लगता है और नए वर्ष का प्रारंभ होता है। तब हमें पिताश्री जी के जीवन से दिव्यता लेकर उसे अपने अपने जीवन में समाने की अपने पुराने संस्कारों को पूर्णतया बदलने की और सातों प्रधान अवस्था में स्थित होने की तथा विश्व को पवित्र बनो और योगी बनो का संदेश देने की एक कदम में प्रेरणा मिलती है । सदा उनकी विशेषताओं को देखते विशेष आत्मा बना देते थे। ब्रह्मा बाबा का जीवन चरित्र हम सभी के लिए अनुकरणीय हैं। बीके मधु दीदी ने मेडिटेशन के माध्यम से परमात्मा को याद कैसे करें यह विधि बताई और अनीता दीदी ने सभी को प्रसाद बांटा।