सरवानिया महाराज। तीन भाईयों के बिच मे एक बहन नहीं थी तो तुलसी को माना भाईयों ने बड़ी बहन तो माता पिता ने कन्या मान पुत्र के विवाह से पहले माली समाज मंदिर के भगवान चारभुजानाथ के साथ कन्या दान कर हाथ पिले करने की ठानी।
प्रसंगवश जिक्र है कि शहर के माली मोहल्ला निवासी स्वर्गीय रामलाल जी माली के छोटे पुत्र एवं राधेश्याम माली के अनुज शंभूलाल धर्म पत्नी चंदादेवी माली के पुत्र अनिल माली का विवाह 14 अप्रैल को होना निश्चित है। शंभूलाल माली के घर पर पत्नी श्रीमती चंदादेवी माली के पेट से परमात्मा की कृपा से तीन पुत्रों का जन्म हुआ लेकिन कन्या ने यहां जन्म नहीं लिया जिसके चलते मन में घर में बेटी का नहीं होना पीड़ा दायक लग रहा था। एक सालना एक टीस मन को बार बार कचोट रही थी की आखिर क्यों हमारे घर कन्या का जन्म नहीं हुआ। इस टीस और सालना को पूरा करने के लिए जब बड़े पुत्र अनिल माली के विवाह की मंगल बेलाएं आई तो परिजनों ने माता तुलसी को अपने घर की बड़ी कन्या मानकर श्री चारभुजानाथ भगवान ( माली समाज )के साथ कन्यादान करने का मानस बनाया और आज माता तुलसी और भगवान चारभुजा नाथ का विवाह संपन्न होगा। विवाह रस्म से पहले परंपरा अनुसार माता तुलसी की बिंदोली बुधवार को प्रातः काल शहर मैं निकली उसके बाद आज भगवान चारभुजानाथ माली समाज मंदिर सरवानिया महाराज तुलसी को ब्याहने दूल्हा बनकर निकले। आगे आगे बेंड बाजे पीछे कलश उठाए माताएं बहने और उससे पीछे भगवान श्री चारभुजा नाथ का वरघोड़ा शहर के प्रमुख मार्गों से निकला। इस दौरान शहर के बड़े मंदिर श्री चारभुजानाथ मंदिर ( आम गांव )पर मंदिर मण्डल अध्यक्ष सुरेश जाट ने दुल्हा बने भगवान चारभुजानाथ को श्रीफल व 101रुपये भेंटकर खौर भरी । इस अवसर पर वरिष्ठ ओम प्रकाश पाटीदार ,उदयराम वशिठा , दिनेश लाला टेलर ,मंदिर पुजारी ईश्वरदास बैरागी , सनन सेन , विष्णु राठौर , दिनेश सालवी सहित दुल्हे बने भगवान के सेवक गोवर्धनदास बैरागी व अनेक लोग उपस्थित थे। भगवान की बिंदोली मे माली समाज के बड़ी संख्या में महिलाएं पुरुष युवक उपस्थित रहे।
वृंदा ही माता तुलसी है , हरी विष्णु को अतिप्रिय है ।
राक्षस कन्या वृंदा को दिऐ एक आर्शीवाद स्वरूप में भगवान विष्णु को शालिग्राम अवतार लेकर वृंदा यानी माता तुलसी के साथ विवाह करना पड़ा था। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी को देव जागने के साथ ही भगवान श्री हरि विष्णु सबसे पहले तुलसी विवाह करते हैं ।यह विवाह इसलिए किया जाता है कि राक्षस कुल में पैदा हुई वृंदा भगवान की अनन्य भक्त थी और उसके साथ एक आशीर्वाद के अनुसार भगवान भगवान श्री हरि विष्णु को शालिग्राम अवतार लेकर तुलसी विवाह करना पड़ा । ऐसी मान्यता है कि जिन घरों में बेटियों का जन्म नहीं हुआ और वह परिवार माता तुलसी को पुत्री मानकर भगवान के साथ उसका विवाह संपन्न कराते हैं तो उन्हें कन्या के दान जैसा फल प्राप्त होता है।