दूदरसी। गांव धनेरिया कलां में 10 मई से प्रारंभ हुई श्री मद्भागवत गीता का आज 16 मई को विश्राम हो गया है। आज मंगलवार को भागवताचार्य ने श्री कृष्ण सुदामा मिलन का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया कि किस तरह दीन हीन सुदामा रोज़ पांच घर से भिक्षा मांगकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता है कभी कभी तो भिक्षा नहीं मिलने से पूरा परिवार भूखे ही सो जाता था। अपनी पत्नी के कहने पर सुदामा अपने बचपन के बाल सखा श्री कृष्ण से मिलने द्वारका पुरी पहूंचे। जब कृष्ण को पता चला कि मेरे परममित्र सुदामा आए हैं तो सुध-बुध भूल गए और नंगें पांव दौड़े और सुदामा को गले लगाया और महल में ले गए। उन्हें अपने सिंहासन पर बिठाया और अपने अश्रुओं की धारा से सुदामा के पांव धोए । सुदामा के दो मुट्ठी चावल खाकर श्री कृष्ण ने उन्हें दो लोक का स्वामी बना दिया और उनकी झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर दिया।
इस अवसर पर गुरूजी ने यह भजन प्रस्तुत किया अरे द्वार पालों कन्हैया से कह दो दर पर सुदामा गरीब आ गया है जिस पर पूरा पांडाल झूम उठा।
गुरूजी ने मायासुर नामक दैत्य का भी सुंदर वर्णन किया कि इस दैत्य को मारकर कृष्ण ने सोलह हजार एक सौ आठ कन्याओं को उसके बंदीगृह से छुड़ाया तो सभी कहने लगी कि हमसे विवाह करो नहीं तो हम अपनी जान दे देंगे, क्योंकि अब हमसे कौन शादी करेगा तो श्री कृष्ण ने उन सभी से विवाह किया। अंत में भागवत पोथी की आरती कर भगवान को भोग लगाकर सभी श्रोताओं को नुक्ती का पांचामृत का प्रसाद बांटा गया।
आज की कथा में जिला पंचायत सदस्य लक्ष्मी नारायण धाकड़ ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कर पुण्य प्राप्त किया। आज का प्रसाद जनपद पंचायत नीमच के पूर्व उपाध्यक्ष दिपक नागदा एवं रामलाल जी अहीर की ओर से वितरित किया गया।अंत में भागवत पोथी को कैलाश अहीर चौधरी एवं उनकी पत्नी ने अपने सिर पर धारण कर भागवताचार्य के विश्राम कक्ष तक पहुंचाया उनके साथ नंदलाल बोस कैलाश नागदा कमलेश नागदा दिलीप नागदा जगदीश नागदा सहित अनेक महिलाएं मंगलगीत गाती हुई साथ चलरही थी और पोथी को गुरु जी के कक्ष पर ले गए तत्पश्चात गुरूजी और उनके काफिले को मथुरा के लिए रवाना किया।