एमपी की सियासत विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र नित नयी करवट ले रही है। एक तरफ बीजेपी है जो हिंदुत्व के आसरे अपनी चुनावी तैयारी कर रही है और उसके पास इस समय हिंदुत्व के ब्रांड बने पंडित धीरेन्द्र शास्त्री बागेश्वर धाम है, जिनके एक के बाद एक आयोजन शिवराज सरकार में मंत्री और विधायक करवा रहे हैं। ऐसा ही एक आयोजन 7, 8 और 9 जून को सुवासरा विधानसभा के गाँव खेजडिया बालाजी में होने जा रहा है, जिसके आयोजक प्रदेश सरकार के मंत्री हरदीप सिंह डंग है। वे 6 जून को हेलीकॉप्टर लेकर उनको लेने जाएंगे। इन आयोजनों से साफ़ है कि बीजेपी हिंदुत्व के आसरे चुनाव की वैतरणी को एक बार फिर पार करने के मूड में है।
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस किसानों की समस्याओं और करप्शन पर चुनाव लड़ने के लिए मैदान सजा रही है। उसी के मद्देनज़र कमलनाथ 6 जून को मंदसौर के पिपलिया मंडी आ रहे हैं। वहां वे किसान आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों से मिलेंगे और उसके बाद आमसभा को सम्बोधित करेंगे। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने अपने चुनावी रण की शुरुआत पिपलिया मंडी से की थी। जहां राहुल गांधी आये थे और उसके बाद सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुयी थी, लेकिन ऑपरेशन लोटस ने फिर सत्ता से बाहर कर दिया। एक बार फिर कांग्रेस अपनी चुनावी लड़ाई किसानो के मुद्दों पर जीतना चाहती है और उसी का शंखनाद कमलनाथ करने वाले हैं।
इसी बीच आज संयुक्त अफीम किसान मोर्चा ने एक ज्ञापन देकर अपने तेवर भी दिखा दिए और उन्होंने साफ तौर पर यह एलान कर दिया कि वे सीपीएस के प्रसंस्करण का काम निजी हाथो में सौंपने के लिए तैयार नहीं है। आज दिए ज्ञापन में किसान संगठनों ने कहा की केंद्र सरकार सीपीएस प्रसंस्करण के लिए निजी क्षेत्र में प्लांट लगाने जा रही है उसकी बजाय सरकार खुद प्लान लगाए। गौरतलब है कि गत दिवस केंद्र सरकार ने एक सूचना जारी करते हुए कहा था कि नीमच के 75 किलोमीटर के रेडियस में सीपीएस प्रसंस्करण का प्लान डलना है, उसके लिए टेंडर बुलवाये जाएंगे। इसमें सूत्रों से जो जानकारी सामने आयी वह यह की यह प्लान सन फार्मा नामक दवा कम्पनी डाल सकती है, जिसमें एक बड़े भजपा नेता की भागीदारी हो सकती है। बस इसी बात को लेकर अब किसानों ने मोर्चा खोल दिया है।
मालवा और मेवाड़ की राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही अफीम किसान तय करते हैं और इस समय सीपीएस पद्धति में जारी किये अफीम के पट्टों से अफीम किसान नाराज़ है और वे परम्परागत तरीके से ही अफीम की खेती करना चाहते हैं। आज दिए ज्ञापन में इन किसान संगठनों ने यह साफ़ कर दिया कि वे सीपीएस को और बर्दाश्त नहीं करेंगे। इससे साफ़ है कि चुनावी वर्ष 2023 और 24 में बीजेपी के लिए अफीम किसान मुश्किल बन सकते हैं।
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