डेस्क। राष्ट्रीय मानव अधिकार एवं भ्रष्टाचार निवारण (भारत) अयोध्या मंडल सचिव विश्वनाथ प्रसाद पांडेय ने भारत सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक पत्र लिखा हैं। पत्र के माध्यम से पांडेय ने नई अफीम नीति 2023-24 में अफीम किसानो की मांगों को सम्मिलित करने का निवेदन किया हैं।
पांडेय के द्वारा लिखे पत्र में कहा गया हैं कि हमारे कार्य क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले अफीम कृषकों का विनम्र निवेदन है कि आने वाले अफीम फसल वर्ष 2023-24 हेतु घोषित होने वाली अफीम नीति में गत वर्ष हुई त्रुटियों में सुधर एवं अन्य जायज मांगों को सम्मिलित करें।
फसल वर्ष 2017-18 से फसल वर्ष 2020-21 के मध्य कम मार्फिन औसत के कारण रोके गए ऐसे अफीम कास्त पट्टों को 2023-24 में जारी किया जाए, जिनका मार्फिन औसत 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर से अधिक है। क्योंकि अफीम फसल वर्ष 2022-23 में फसल वर्ष 2021-22 के ऐसे अफीम कृषकों को अफीम कास्त पट्टा जारी किया गया है जिनका मार्फिन औसत 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर से अधिक था। घोषित हुई अफीम नीति से स्पष्ट होता हैं कि इसमें जाने अनजाने में कुछ त्रुटि हुई हैं। जो निम्न प्रकार हैं-
फसल वर्ष 2017-18 में अफीम की खेती करके मार्फिन औसत 4.9 किग्रा प्रति हेक्टेयर से कम था ऐसे अफीम कास्त के पट्टे रोके गए थे।
फसल वर्ष 2018-19 में अफीम की खेती करके मार्फिन औसत 4.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर से कम मार्फिन वाले अफीम कास्त लाईसेंस रोके गए थे। जिन्हें बाद में 4 किग्रा प्रति हेक्टेयर औसत पर लाईसेंस जारी किया गया था।
फसल वर्ष 2019-20 के मार्फिन औसत 4.2 किग्रा प्रति हेक्टेयर था इसलिये इससे कम मार्फिन औसत देने वाले अफीम कास्त लाईसेंस रोके गये थे।
फसल वर्ष 2018-19 व फसल वर्ष 2019-20 में रोके गये अफीम कास्त लाईसेंसो को फसल वर्ष 2021-22 में छूट प्रदान करके 3.7 किग्रा प्रति हेक्टेयर मार्फिन औसत पर जारी कर दिये गये परन्तु फसल वर्ष 2017-18 के अफीम कृषकों को औसत में किसी प्रकार की छूट प्रदान नही की गयी।
फसल के 2022-23 में मार्फिन औसत 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर से अधिक पर सीपीएस पद्धति के अफीम कास्त पट्टे जारी किये गये है जो कि उपरोक्त पैरा 1 के उप पैरा क, ख, ग, के अफीम कृषकों के साथ आर्टिकल 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन करते हुए घोर अन्याय हुआ है कि 4.899 किग्रा प्रति हेक्टेयर मार्फिन औसत देने वाला कृषक रोका गया है और अफीम कास्त लाईसेंस से अभी तक वंचित है तथा 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर देने वाला अफीम कृषक अफीम की खेती कर रहे हैं। जो न्याय संगत नही है।
ऐसे अफीम कृषक जिन्होने फसल को 1998-99 से सन 2022-23 के मध्य लगातार 3 वर्षो अथवा चार वर्षो तक अफीम कास्त प्राकृतिक आपदाओं अथवा रोगों आदि के कारण क्षतिग्रस्त होने पर विभागीय निगरानी में अपनी अफीम फसल नष्ट कर दिए हैं फलस्वरूप अफीम कास्त लाईसेंस रोके गये है उन्हें फसल वर्ष सन 2023-24 में अफीम कास्त लाईसेंस सीपीएस पद्धति से खेती करने हेतु जारी किया जाए इसमें कृषकों का किसी प्रकार का दोष नही है क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं पर विजय पाना सम्भव नही है।
फसल वर्ष 1998-99 से 2022-23 तक अफीम मूल्य वृद्धि नहीं किया गया है जबकि फसल का लागत मूल्य (खाद, बीज, मजदूरी आदि) में 10 गुना की वृद्धि हुई है। अतः अफीम मूल्य कम से कम 10 गुना बढ़ाया जाए। सीपीएस पद्धति से की जा रही अफीम खेती से उत्पादित डोडो का मूल्य कम से कम 1000 रू प्रति किग्रा किया जाए।
पारम्परिक अफीम खेती अर्थात अफीम गम निकालने वाली पद्धति से की जानी वाली अफीम फसल छतिग्रस्त होने पर अफीम डोडो को नष्ट कराने के बजाय सरकार द्वारा डोडे क्रय करके सीपीएस पद्धति में उपयोग कर लिया जाए।
जिस अफीम में चीरा लगाकर अफीम निकाल ली जाती है ऐसे अफीम डोडो में मार्फिन की मात्रा बहुत ही कम लगभग 0.002 प्रतिशत ही रहती है। इसलिए ऐसे डोड़ो की खरीद परोख्त में फंसे कृषको पर एनडीपीएस एक्ट न लगाया जाए बल्कि आबकारी अधिनियम की धाराओं के तहत कार्यवाही की जाए क्योंकि ऐसे डोडों को नष्ट कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार के आबकारी विभाग को दी गई है।
सीपीएस पद्धति से होने वाली अफीम कास्त में भी पांच वर्षीय न्यूनतम औसत निश्चित किया जाए तथा उक्त पद्धति से की जा रही फसल क्षतिग्रस्त होने पर विभागीय अधिकारियों द्वारा जाँच करवा करके फसल में होने वाले नुकसान का आंकलन किये जाने की व्यवस्था बनाई जाए।
सीपीएस पद्धति से अफीम कास्त लाईसेंस वितरण के समय ही फसल कटाई से सम्बन्धित सम्पूर्ण सुपुर्दगी नियमावली अफीम कृषकों को उपलब्ध कराई जाए। अफीम फसल पकने के बाद अधिकारियों की टीमें बनाकर अफीम फसल की सुपुर्दगी देने से फसल कटाई में विलम्ब एवं नुकसान होता है और अफीम फसल में चीरा आदि की निगरानी हेतु अधिकारियों द्वारा औचक निरीक्षण किया जाए।
यदि अफीम कृषक का लाईसेंस मूल निवासी गांव में एलॉट हुआ है परन्तु उक्त कृषक के नाम मूल गाँव से सटे दूसरे राजस्व गाँव (लगभग 500 मी के अन्दर) भूमि है परन्तु आवास नही है ऐसे अफीम कृषकों को दूसरे उस गाँव में अफीम कास्त बोने की अनुमति प्रदान की जाए।
अफीम नीति बनाते समय कृषकों की भागीदारी सुनिश्चित किया जाए।