नीमच। यदि हम संसार के स्वार्थ की दृष्टि से कोई भी निर्णय लेंगे तो पाप कर्म बढ़ेगाऔर यदि हम परमात्मा की वाणी की दृष्टि से उनके धार्मिक धर्मशास्त्र के उपदेशों को ध्यान में रखते हुए सोचेंगे तो पुण्य कर्म बढ़ेगा।आत्मा के अलावा पराएं को अपना माना तो कर्म सत्ता सजा देती है। आत्मा के अलावा जीव पराया धन लेने का कार्य करेगा तो चोरी का अपराध होगा और कर्म सत्ता सजा देती है। आत्मा के अलावा बाहर निकलना है। सब दुखों का मूल कारण है। हम शरीर की चिंता करेंगे तो दुखी होंगे ।आत्मा में विचरण करेंगे तो सच्चा सुख मिलेगा। भौतिक संसार को त्यागे बिना आत्मा का कल्याण नहीं होता है
यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही।
वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में जाजू बिलिं्डग के समीप पुस्तक बाजार स्थित नूतन जैनआराधना भवनघ् में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संसार में रहते हुए यदि हम संसार की दृष्टि से सोचेंगे यह मेरा घर, मेरा परिवार, मेरी पत्नी ,मेरी संपत्ति में, मै की भावना रखेंगे तो संसार में दुख ही मिलेगा यह सब दुख का कारण है और यदि हमने यह मकान ,यह संपत्ति, यह परिवार सब परमात्मा का है ऐसा सोचा तो हमें सच्चा सुख मिलेगा।इसे हमने अपना नहीं मानकर त्याग दिया और त्याग में ही संतोष का सच्चा सुख मिलता है।जो संसार को अपना मानता है वह दुखी होता है जो संसार को त्याग देता है वह सच्चा सुखी होता है।दूसरों की आशा करना दुख का कारण है। स्वयं की आशा करना आत्मा में विचरण करना ही सच्चा सुख का कारण होता है। धर्म ज्ञान को चबाऐंगे नहीं तो पचेगा नहीं। जब तक धर्म ज्ञान को आत्मसात नहीं करेंगे तब तक आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता। यदि शरीर को स्वस्थ रखना है तो कम खाना चाहिए। भोजन करते समय किसी भी प्रकार की बातचीत नहीं करना एवं टीवी आदि नहीं देखना चाहिए तभी भोजन हमें शक्ति प्रदान कर सकता है। यदि हम परमात्मा की वाणी को आत्म चिंतन कर जीवन में आत्मसात करेंगे तो संसार की कोई भी कठिन से कठिन बड़ी से बड़ी दुर्घटना घटना हमें दुःखी नहीं कर सकती है। पाप से सदैव दूर रहना चाहिए। पाप को रोकना मर्यादा में रहना चाहिए जो धर्म के नियम में रहेगा उसका पुण्य सदैव बढ़ता रहेगा और पाप को दुर रखें। छोटे से छोटा नियम और पंचखाण का संकल्प भी आत्मा को उद्धार करने वाला हो सकता है। चक्रवर्ती राजा भी तपस्या और उपवास भक्ति करते थे और उन्होंने भी मोक्ष का रास्ता प्राप्त किया था। वर्षी तब की तपस्या का फल सबसे बड़ा होता है।वर्षितप के प्रभाव से परिवार में घर में सुख शांति का अनुभव होता है। जीव दया की भावना पवित्र होनी चाहिए ।इसे हमें जीवन पर्यंत पालन करना चाहिए।पंचखान का संकल्प पाप का दरवाजा बंद कर देता है इसलिए सदैव पुण्य और भलाई के काम करते रहना चाहिए तो जीवन का कल्याण हो सकता है।
श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद ,जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया,जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने।धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।