अकलेरा। सनखेडी गांव में चल रही श्री मद् भागवत् कथा के दूसरे दिन कथा वाचक संत बालयोगी महाराज ने बताया कि भागवत कथा हमारे अंतकरण को शुद्ध करती हैं। भगवान का अंतकरण भी शुद्ध होता है। इसलिए हमारा अंतकरण शुद्ध होगा तभी हमारा संबंध भगवान से हो सकता हैं। क्योंकि हमारे गुण भगवान के गुण से मिलेंगे। तब ही हम उसके लायक बन पायेंगे। बताया कि सीताजी सोने की लंका में रहने के बाद भी राम को नहीं भूली पर आज के इंसान के पास थोड़ा सा भी धन आ जाये तो वह राम को भूल जाता है।
भगवान राम ने वनवास के समय छोटे बडे सभी लोगों से प्रेम किया है। सबको गले लगाया है। उन्होंने छोटे बडे़ में भेदभाव नहीं किया है। इसी प्रकार महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने विदुर के घर कैले के छीलके खाये और सभी गोपियों से प्रेम किया है। भगवान किसी से जाती-पांती, छोटे-बड़े के हिसाब से प्रेम नहीं करते हैं।
बताया कि आज का इंसान छोटी मोटी समस्या आने से परेशान हो जाता है पर भगवान श्री कृष्ण के माता-पिता को देखो शादी करने तुरंत बाद जेल में डाल दिए और आठ संतान होने तक जेल में ही रहना पडा यह सब कर्मो का खेल है। रामायण में देखों राजा दशरथ को श्रवण कुमार के श्राप के कारण चार बैठें होने पर भी मृत्यु के समय एक भी बैठा पास नहीं था। इसलिए समझो यहां कोई-कोई किसी का नहीं है केवल धर्म ही आपको परेशानियों से बचा सकता हैं। अच्छे कर्म ही आपका अच्छा कर सकते हैं। आपकी दौलत, आपकी संतान, आपकी पत्नी कोई सुख नही देता है, सारा कर्मो का खेल है। यहां-यहां कोई किसी को सुख दुःख नहीं देता है। सब अपने अपने कर्मो के फल पाते हैं।
कथा के बीच गाये भजन सुख भी मुझे प्यारे है, दुख भी मुझे प्यारे है, छोडू में किसे भगवन दोनों ही तुम्हारे हे व मेरा अवगुण भरा शरीर कहो ना कैसे तारोगे, मेरा क्या बिगडेगा गीरधारी, जायेगी लाज तुम्हारी पर श्रोता भावविभोर हो गये। कथा के प्रारंभ में मुख्य जजमान पप्पूलाल मीना ने सपत्नीक भागवत् जी की पुजा आरती की।