इंदौर। मप्र हाई कोर्ट की इंदौर बेंच में 19 अगस्त को पहली बार दो अलग-अलग केसों की एक ही दिन पांच और तीन जस्टिस की अलग-अलग बेंच में सुनवाई होगी। पांच जजों की बेंच में चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा चार अन्य जस्टिस के साथ सुनवाई करेंगे।
यह बेंच नगर निगम द्वारा ठेकेदार को ब्लैक लिस्टेड करने और एग्रीमेंट खत्म करने के मामले की सुनवाई करेगी। इसी तरह तीन जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत बच्चों को अपील करने का अधिकार है या नहीं।
मंगलवार को चीफ जस्टिस की अगुआई में बनी पांच जस्टिस बेंच में जस्टिस विवेक रुसिया, न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल, न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर और जस्टिस विनय सराफ शामिल होंगे। इसी तरह चीफ जस्टिस की अगुआई में बनने वाली तीन जस्टिस की बेंट में जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस विनय सराफ शामिल होंगे। मंगलवार को सुनवाई अधूरी रहने पर अगले दिन बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।
मध्यस्थता परिषद के अधिकारों पर होगी बहस
दरअसल नगर निगम ने एक ठेकेदार का ठेका 30 अक्टूबर 2020 को निरस्त करते हुए उसे तीन वर्ष के लिए ब्लैक लिस्टेड कर दिया था। ठेकेदार ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले में तकनीकी पक्ष यह था कि कंपनी का ठेका निरस्त करने पर कंपनी को अधिकार है कि वह मामला मध्यस्थता परिषद में रखे, लेकिन अगर कंपनी को ब्लैक लिस्टेड कर दिया है तो उसे अपील कहां करनी होगी। तीन जजों की बेंच ने पूर्व में आदेश जारी किया था कि अगर किसी कंपनी को ब्लैक लिस्टेड किया जाता है तो उसकी हानि की गणना रुपयों में करते हुए उसके खिलाफ मध्यस्थता न्यायाधिकरण के तहत केस दायर करते हुए राहत ली जा सकती है। इस मामले में डबल बेंच ने हानि की गणना रुपयों में करने को सही नहीं माना और तीन जजों की बेंच के आदेश पर असहमति जताई थी।
अपर कलेक्टर का आदेश सही है या नहीं, होगी सुनवाई
दूसरा मामला वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के एक-एक केस का है। एडवोकेट अभिनव धानोड़कर बताया कि शीलनाथ कैंप कुलकर्णी भट्टा इंदौर में निवासी शांतिबाई ने एसडीएम कोर्ट में वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत केस दायर किया था। आरोप था कि उनकी बेटी ने उनके घर पर कब्जा कर लिया है। एसडीएम कोर्ट ने बेटी को 30 दिनों में घर खाली करने का आदेश दिया था।
इस बीच बेटी ने अपर कलेक्टर के समक्ष अपील कर दी। अपर कलेक्टर ने सुनवाई करते हुए एसडीएम के आदेश को गलत बताते हुए इसे निरस्त कर दिया। इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर हुई। इसमें सवाल उठा कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 16 के तहत केबल बुजुर्गों को ही अपने खिलाफ फैसला होने पर अपील करने का अधिकार है। हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने इस मामले को चीफ जस्टिस को भेजा था।