नीमच । जिस व्यक्ति ने माता पिता की सेवा की उसका यह लोक ही नहीं परलोक भी सुधर जाता है और उसकी संतान भी सुसंस्कृत होकर धर्म के मार्ग पर चलेगी।यह बात गांव दूदरसी में आयोजित श्री मद्भागवत कथा महापुराण के कथा विश्राम के अंतिम दिन प्रख्यात कथाकार आचार्य श्री पंडित गोपाल कृष्ण नागर शक्कर खेड़ी जिला मंदसौर ने कथा का का रसपान कराते हुए उपस्थित श्रोताओं को कही।
पंडित नागर ने कहा कि बाणासुर नामक दैत्य के बंदीगृह से भगवान श्री कृष्ण ने एक हजार अठ्ठयोतर बंदिनियो को छुड़ाया और जीवन धन्य किया। भगवान श्री कृष्ण और सुदामा मिलन का सजीव चित्रण प्रस्तुत कर सभी श्रोताओं को अश्रुपूरित कर दिया।
इस अवसर पर पंडित नागर ने अरे द्वार पालों कन्हैया से कह दो नामक भक्तिमय संगीत की धुन पर यह भजन प्रस्तुत किया तो पूरा पांडाल नृत्य करता हुआ नजर आया। आपने जयद्रथ का वध का भी सुंदर वर्णन किया। आपने बताया कि महाभारत छल और कपट से लडा था। भीष्म पितामह, कर्ण और द्रोणाचार्य को छल और कपट से ही मारा भले ही इन लोगों की आस्था हस्तिनापुर से जुड़ी थी किन्तु इन्होने अधर्मी दुर्योधन का साथ दिया और पांडव धर्म के मार्ग पर थे इसलिए श्री कृष्ण ने छल से उनका वध किया वरना उन महापुरुषों के सामने पांडवों की हार निश्चित थी।
आचार्य नागर ने राजा परीक्षित की तक्षक नाग के डसने की बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति दी कि कैसे राजा परीक्षित ने एक महात्मा के समाधी रत होते हुए मरा हुआ सांप गले में डाल दिया था और उन महात्मा के पुत्र ने उन्हें श्राप दिया था कि जा तुझे 7 वें दिन तक्षकनाग डसेगा और तेरी मृत्यु हो जाएगी। तब परिक्षित सुखदेव मुनि की शरण में गया और मुनी ने उनसे सात दिन तक श्री मद्भागवत गीता का पाठ निरंतर करने को कहा कि इसी से तुझे मोक्ष प्राप्त होगा। परिक्षित ने श्री मद्भागवत गीता के तपोबल से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ और उसी भक्ति बल द्वारा अपना प्राण तक्षक नाग के डसने से पूर्व ही त्याग दिया।
पंडित नागर ने कहा कि जो मनुष्य श्री मद्भागवत गीता का पाठ करता है या कहीं भी भागवत कथा होती है वहां सच्चे मन से कथा श्रवण करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और काल उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। अंत में महाआरती कर सभी उपस्थित धर्म प्रेमी जनता को प्रसाद वितरित किया। आयोजन समिति द्वारा आचार्य का सम्मान किया गया और इन सात दिनों में अपना अमूल्य समय निकाल कर योगदान देने वालों का सम्मान भी किया गया।
इस भागवत कथा में निरंतर अपनी सेवाएं देने वाले पूर्व सरपंच लक्ष्मी नारायण पाटीदार, गजेन्द्र पाटीदार, श्यामसुख पाटीदार, किशनलाल धनगर, बंशीलाल धनगर, बलवंत सिंह सिसौदिया, मांगीलाल विश्वकर्मा, रमेश प्रजापति का सर्वाधिक योगदान रहा और इनके साथ योगदान देने वाले शंभुलाल मेघवाल, जीवराज पाटीदार, ऊंंकारलाल जमादार, कैलाश परिहार, शिव पुरी, राजेश पुरी, सुरेश दास बैरागी, हरलाल बावरी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।