चित्तौड़गढ़। शुद्धता मानव जीवन की जागृति है। बाहरी शुद्धता पर तो समझदार लोगों का ध्यान है ही और ज्ञानी लोग खानपान की शुद्धता पर ध्यान देते हैं, पर योगी आत्माएं मानसिक शुद्धता पर भी ध्यान देती है। जहां अशुद्धता है वहां बदबू है मक्खी भी अशुद्ध स्थान व अशुद्ध वस्तुओं पर आती है जो किसी को प्रिय नहीं लगती। व्यक्ति हो वस्तु हो स्थान हो या वायुमंडल सबको शुद्धता प्रिय लगती है। ऐसे ही हम सब मिलकर जब मानसिक शुद्धता पर ध्यान देंगे तो स्वयं को व सर्व को प्रिय लगेंगे।
यह विचार ब्रह्माकुमारी प्रताप नगर सेवा केंद्र पर प्रातः काल में राजयोगिनी ब्रम्हाकुमारी आशा दीदी जी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि शुद्धता आत्मा की पहचान है। उसके विचार शांत वाणी मधुर व्यवहार सरल और कर्म में सर्व का सहयोगी हितकारी सेवा भाव वाला होगा। कभी मन को साफ करने का विचार किया, जो मन को साफ करना सीख गया, जीवन जीना सीख गया, उसका जीवन सरल हो जाता है। मन शक्तिशाली हो जाता है जब हम मन की सफाई करते या सर्विस करते हैं तो हमारी कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। हमारा मन काम की बात ही सोचता है फालतू की नहीं । जीवन में धैर्य से कर्म करने का संस्कार बन जाता है और हमारी वाणी में मधुरता आती है चेहरे पर प्रसन्नता स्वत: ही आने लगती है।
आशा दीदी ने आगे कहा कि मन की सफाई की विधि है कि हम स्वयं से स्वयं बात करें और अपने मन को समझाएं। यदि हमें किसी ने कुछ बोल दिया अपमान कर दिया सम्मान नहीं दिया और वह चुभ गया मुझे अच्छा नहीं लगा और यह बात बार-बार मन में घूमती है और मुझे अशांत कर देती है। ऐसे विचारों से अपने मन को फ्री रखें क्योंकि यह मन तो हमारा मित्र है मन ही हमारा शत्रु है। यदि हम मन में सुंदर विचार करते हैं सुखद विचार करते हैं सभी मनुष्यों के लिए शुभ भावना शुभकामना रखते हैं तो हम कभी भी शिकायत नहीं कर सकते और सदा प्रसन्न रह सकते हैं। शुभ भावना रखकर स्नेह व्यवहार से संबंधों में प्यार हो जाता है। परिवार को और संगठन को चलाने के लिए मन में शक्तिशाली शुद्ध विचारों का होना बहुत जरूरी है। यही जीवन जीने की कला है। इन गुणों से संपन्न करके परमात्मा ने हम सब आत्माओं को सृष्टि पर भेजा था तब यह भारत स्वर्ग कहलाता था आओ हम सब मिलकर पुनः आध्यात्मिकता केबल से सुखद सुखमय संसार बनाएं।