चित्तौड़गढ़। उत्तरी अमेरिका में रहने वाले रैड इंडियन तथा वासुकी जनजाति के लोग, दक्षिणी अमेरिका स्थित एंडीज की पर्वतमालाओं में मिले दस हज़ार वर्ष पुराने हवन कुंड, अफ़्रीका में मिले राजा भरत के द्वारा दिए गए स्वर्णदान के उल्लेख, साइबेरिया क्षेत्र में लकड़ी पर खुदी अष्टाध्यायी तथा प्राचीन ऑस्ट्रेलिया में यज्ञ के प्रति अनुराग का इतिहास, यह सिद्ध करता है कि मानव सृष्टि के आदि से 3 हज़ार वर्ष पहले तक विश्व के हर कोने में केवल वैदिक संस्कृति अर्थात् आर्यों की ही सभ्यता विद्यमान थी।
उक्त विचार अमेरिका स्थित भारतीय राजदूतावास वाशिंगटन डीसी में प्रथम सांस्कृतिक राजनयिक एवं भारतीय संस्कृति शिक्षक रहे डॉ. मोक्षराज ने पद्मिनी आर्ष कन्या गुरुकुल प्रतापनगर, चित्तौड़गढ़ में आयोजित ऋग्वेद पारायण यज्ञ के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि आर्यों के शासन में प्रकृति पशु पक्षियों का संरक्षण एवं ज्ञान विज्ञान उच्च स्तर का था । अतरू विश्व में पुनः शांति, सद्भाव एवं धरती की रक्षा के लिए संसार में बिखरे हुए सांस्कृतिक मोतियों को पुनः एक माला में पिरोना होगा।
डॉ. मोक्षराज ने बताया कि 700 वर्ष पहले तक अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, बर्मा, बांग्लादेश, ईरान, बलूचिस्तान आदि भारत की सांस्कृतिक परिधि में ही सम्मिलित थे, जिसके कारण यहाँ रहने वाले जन समुदाय की प्रमुख धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं में कोई भेद नहीं था। उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान स्थित मुंजवान पर्वत पर मनुष्य की आयु को बढ़ाने वाली सोमलता औषधि प्रचुर मात्रा में मिलती थी, जिसकी सम्पूर्ण प्रयोग विधि भारतीय यज्ञ एवं आयुर्वेद शास्त्रों में वर्णित है, किंतु राष्ट्रों की दीवारों तथा तेज़ी से आए सांस्कृतिक परिवर्तन ने उस विज्ञान को ही नष्ट कर दिया है ।
पद्मिनी आर्ष कन्या गुरुकुल के अधिष्ठाता वैदिक मिशन ट्रस्ट मुंबई के अध्यक्ष, डॉ. सोमदेव शास्त्री ने बताया कि गुरुकुल में 10 दिसंबर से 18 दिसंबर तक ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद पारायण यज्ञ किया जा रहा है । उद्घाटन सत्र में गुरुकुल पौंधा, देहरादून के आचार्य धनंजय शास्त्री, आर्य प्रतिनिधि सभा राजस्थान के मंत्री जीव वर्धन शास्त्री, वेद प्रचार रथ के संचालक स्वामी चेतनानंद सरस्वती, आचार्य भगवान सहाय, हरिदेव शर्मा, श्री निवास आर्य, गुड़गाँव, मुकुल शर्मा दिल्ली, मुकेश माहेश्वरी एवं गुरुकुल की ब्रह्मचारिणियॉं उपस्थित थी।
यज्ञ के प्रमुख यजमान डॉ. सोमदेव शास्त्री, सुदक्षिणा शास्त्री तथा आर्ष कन्या गुरुकुल संचालन समिति के अध्यक्ष देवेंद्र शेखावत कोषाध्यक्ष कुंजीलाल पाटीदार तथा वेदपाठी ब्रह्मचारी आकाश, विनीत, ईश्वर एवं रवि थे।