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March 3, 2024, 2:17 pm
BIG NEWS : आज UP में यादव महाकुंभ में शामिल होंगे सीएम मोहन यादव, लखनऊ में लगे ‘यादव चला मोहन के साथ’ वाले बैनर पोस्टर, अखिलेश के किले में सेंधमारी, मोहन के कंधों पर आई बड़ी जिम्मेदारी, पढे़ खबर

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भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 3 मार्च को एक बार फिर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के दौरे पर रहेंगे। लखनऊ में आयोजित यादव महाकुंभ में डॉ.मोहन यादव मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे। वह राज्य के कई जिलों से लखनऊ आए यादव समाज के लोगों को संबोधित भी करेंगे। 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर उनके यूपी के दौरों को चुनाव के लिहाज से बड़ा अहम माना जा रहा है। जानिए क्या है, मुख्यमंत्री डॉ. यादव के यूपी के दौरों का राज ?


दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश और बिहार से होकर गुजरता है। उत्तर प्रदेश की 80 और बिहार की 40 लोकसभा सीटों को आगामी लोकसभा चुनावों की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इन दोनों राज्यों में अधिक से अधिक सीटें अपनी झोली में लाने के लिए भाजपा इस साल की शुरूआत से ही खासी सक्रिय है। भाजपा उत्तर प्रदेश में अपने “मोहन कार्ड” के जरिए यादव वोट बैंक पर सेंधमारी की बड़ी तैयारी में दिखाई दे रही है। भाजपा इस बात को बखूबी समझ रही है अगर दिल्ली फतह करना है तो बिहार और यूपी में अपनी जड़ें मजबूत करनी होगी, जहां की सियासत में यादव समाज का सबसे बड़ा प्रभाव रहा है।


अखिलेश के किले में सेंधमारी, मोहन के कंधों पर आई बड़ी जिम्मेदारी
उत्तर प्रदेश में एक दौर में मुलायम सिंह यादव को पिछड़ा वर्ग का सबसे बड़ा नेता माना जाता था जिनका “मुस्लिम और यादव” (माई) समीकरण मजबूत हुआ करता था और पूरे प्रदेश में उनका प्रभाव था। 2022 में उनके निधन के बाद सपा में अखिलेश यादव के सामने उनके परंपरागत वोट बैंक को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है।


युवा तुर्क अखिलेश यादव भाजपा की बड़ी जीत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा भी हैं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी नई राजनीतिक जमावट शुरू कर दी है, जिसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव अखिलेश के यादव वोट बैंक के सामने बड़ी चुनौती पेश करने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव यूपी की सियासत में भाजपा के लिए बड़ा ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं, जिसकी दूसरी झलक यूपी की राजधानी लखनऊ में आयोजित होने जा रहे पहले यादव महाकुंभ में देखने को मिल सकती है।


यूपी में मोहन यादव के दौरे से विपक्ष चिंता में
सीएम डॉ. मोहन यादव 13 फरवरी को आजमगढ़ क्लस्टर के अंतर्गत आने वाले 5 लोकसभा क्षेत्रों आजमगढ़-लालगंज-घोसी-बलिया और सलेमपुर लोकसभा क्षेत्रों के पार्टी पदाधिकारियों की बैठकों में शामिल हुए। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव रविवार यानी 3 मार्च को उत्तर प्रदेश में प्रदेश के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में पहुंचने वाले यादव समाज से जुड़े लोगों को संबोधित करेंगे।


राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा डॉ. मोहन यादव के जरिए उत्तर प्रदेश में सपा के यादव वोट बैंक को कमजोर करना चाहती है। क्योंकि मोहन यादव के बिहार दौरे के बाद यादव वोट बैंक बीजेपी की तरफ उत्साहित नजर आया था। अब यूपी में यादव महाकुंभ में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का जाना विपक्ष को चिंता में डाल सकता है।


यूपी में यादव वोटर्स निर्णायक, भाजपा का बड़ा प्लान
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। ऐसा कहा जाता है कि यूपी में जिस पार्टी की जीत होती है केंद्र में उसकी सरकार बनती है। राज्य की कई लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां यादव वोटर्स निर्णायक भूमिका में रहते हैं। यादव वोटर्स को साधने के लिए भाजपा डॉ मोहन यादव को आगे कर रही है। उत्तर प्रदेश की ओबीसी आबादी में तकरीबन 20 प्रतिशत यादव हैं वहीं उत्तर प्रदेश में 9 फीसदी यादव वोट है जो इटावा , एटा, संत कबीर नगर , बदायूं, फिरोजाबाद, , बलिया , फैजाबाद , जौनपुर, मैनपुरी में निर्णायक है।


यादव वोट बैंक पर बड़ी सेंधमारी की तैयारी
उत्तर प्रदेश में यादव वोट बैंक पर समाजवादी पार्टी का एकछत्र राज रहा है लेकिन 2014 के बाद केंद्र में मोदी सरकार और 2017 में योगी सरकार आने के बाद बड़े पैमाने पर यादव समाज अखिलेश यादव के इस पुराने वोट बैंक से टूटा है। समाजवादी पार्टी अपनी मुस्लिम और यादवों के बीच मजबूत किलेबंदी से मुलायम सिंह यादव के दौर से अपनी सरकार चलाती रही लेकिन यह पहला मौका है जब बिना मुलायम सिंह के समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ेगी।


मोहन यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद दूसरी बार उत्तर प्रदेश आ रहे हैं तो इसके कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। उनके इस दौरे को उत्तर प्रदेश में यादव वोट बैंक से जोड़कर देखा जा रहा है। डॉ.मोहन यादव के लगातार उत्तर प्रदेश के दौरों के माध्यम से भाजपा यादव वोटर्स का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश करने में जुटी है जिससे मोदी सरकार लगातार तीसरी बार हैट्रिक लगा सके और देश के सबसे बड़े सूबे से अधिक से अधिक सीटें अपने पाले में ला सके।


डॉ. मोहन यादव साबित होंगे भाजपा का तुरूप का इक्का
साल 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद 2025 में बिहार में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार में भाजपा कभी अपने बूते प्रचंड बहुमत की सरकार नहीं बना सकी। भाजपा उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी मोहन यादव के इस दांव के जरिए ये भी साबित करना चाहती है कि पार्टी ने ज्यादा ओबीसी जनसंख्या वाले राज्य में ओबीसी चेहरा को मौका दिया है। ऐसे में बिहार में भी अगर जनता भाजपा को मौका देती है तो यादव समाज को सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। 18 जनवरी को डॉ. मोहन यादव पटना पहुंचे थे जहां भाजपा प्रदेश कार्यालय में प्रदेश पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी और यादव समाज द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में शिरकत की थी ।


अब यादव चला मोहन के साथ के पोस्टरों से पटा यूपी
एक महीने पहले डॉ. मोहन यादव ने अखिलेश के गढ़ आजमगढ़ से हुंकार भरी थी जहां उनके स्वागत में बड़ी भीड़ उमड़ी। अब उत्तर प्रदेश के दूसरे दौरे से ठीक पहले ही यादव महाकुंभ के बड़े पोस्टरों से उत्तर प्रदेश पट गया है जहां यादव चला मोहन के साथ के बैनर लहरा रहे हैं।


इस बार आयोजित होने जा रहे यादव महाकुंभ को लेकर भी भाजपा कार्यकर्ताओं ने खास तैयारी की है। इसका कारण लोकसभा चुनावों के लिए हाल के समय में राज्य में सपा और कांग्रेस के बीच सीटों का गठबंधन है। कहा जा रहा है कि इन दोनों पार्टियों के साथ आने से यादव समाज की नई गोलबंदी यूपी की सियासत में शुरू हो सकती है जिसके लिए भाजपा ने अब नए सिरे से रणनीति बना रही है, जिसकी बिसात के नए केंद्र में डॉ मोहन यादव है जो यादव समाज के जातीय गोलबंदी को तोड़कर सपा और कॉंग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर सकते हैं।


उत्तर प्रदेश में भाजपा का सीधा मुकाबला यहां पर समाजवादी पार्टी से है जिसका यादव समाज मजबूत किला रहा है। इस किलेबंदी को तोड़ने के लिए डॉ. मोहन यादव को एक सोची समझी रणनीति के तहत आगे किया जा रहा है ताकि भाजपा यादव समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत कर समाजवादी पार्टी को देश के सबसे बड़े सूबे में कमजोर कर सके।


डॉ. मोहन यादव ने अपने बेहद कम समय में अपने कामकाज के माडल से पूरे देश और प्रदेश में एक नई पहचान बनाई है। समाज के ओबीसी तबके में उनकी सर्वस्वीकार्यता और लोकप्रियता हाल के दिनों में तेजी से बढ़ी है। भाजपा उनकी इस लोकप्रियता को उन राज्यों में भुनाने की तैयारी में है, जहां यादव वोट निर्णायक है। इसके जरिए भाजपा सपा और कॉंग्रेस के जातीय जनगणना के दांव को चित करना चाहती है।

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