चित्तौड़गढ़। सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान राजस्थान द्वारा इंदिरा प्रियदर्शनी ऑडिटोरियम में दो दिवसीय अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन का शुभारंभ शनिवार को प्रातः 10 बजे पूर्व उद्योग मंत्री एवं जयपुर विधाधर नगर विधायक नरपत सिंह राजवी, विधायक चंद्रभान सिंह आक्या, ललित ओस्तवाल, अर्जुन लाल जीनगर, जिला प्रमुख सुरेश धाकड़, आयोजन समिति के अध्यक्ष अनिल सिसोदिया, संरक्षक राजेश भट्ट, गोपाल चरण सिसोदिया बनेड़ा, सावरकर प्रतिष्ठान मुंबई अध्यक्ष भिकू दादा ईदातें, संस्थान के सचिव रविंद्र माधव साठे, प्रदेश संयोजक विजय पारीक, संभाग संयोजक लोकेश त्रिपाठी, उपाध्यक्ष हरीश ईनानी, रमेश बोरीवाल, संभाग महिला प्रभारी रश्मि सक्सैना, सुशील शर्मा, रघु शर्मा, श्रवण सिंह राव, हर्षवर्धन सिंह, गौरव त्यागी, विनोद चपलोत, शेखर शर्मा, परमजीत सिंह, राघव गर्ग, राजन माली, मनोज पारीक आदि ने भारत माता एवं सावरकर की तस्वीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर किया। संस्थान के मीडिया प्रभारी मनोज पारीक ने बताया कि उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय चिंतक एवं लेखक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने राष्ट्रवाद, सनातन धर्म, आजादी से पूर्व और बाद की राजनैतिक परिपेक्ष्य और वर्तमान में बदलती देश की तस्वीर के सम्बन्ध में विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि भारत वर्षाे से अंग्रेजो का गुलाम रहा है, जिसे 15 अगस्त 1947 पर भारत आजाद होने की संज्ञा दी गई लेकिन वास्तविकता में भारत उसके बाद भी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय गुलाम ही बन कर रहा। उन्होंने 70 वर्षाे की राजनैतिक कारणों से देश के हालात पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्ष 2014 से देश में तस्वीर में बदलाव आया है, जिसे बरकरार रखने के लिये सच का साथ देने और समाज को एकजुट होने की आवश्यकता है। कुलश्रेष्ठ के औजस्वी विचारों की समाप्ति पर ऑडिटोयिम में मौजूद सैकड़ों श्रोताओं ने खड़े होकर खूब तालिया बजाते हुए उनका अभिवादन किया। संचालन सागर सोनी ने किया स्वागत उद्बोधन आयोजन समिति के अध्यक्ष अनिल सिसोदिया ने दिया आभार सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान के उदयपुर संभाग प्रभारी लोकेश त्रिपाठी एवं उपाध्यक्ष हरीश ईनानी ने व्यक्त किया।
द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता दामोदर अग्रवाल ने सावरकर जी के विचारों पर प्रकाश डाला। तृतीय सत्र को संबोधित करते हुए सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर ने कहां की हिंदुत्व का आयोजन समस्त हिंदुओं को एकजुट करना था 1921 में जो खिलाफत आंदोलन हुआ वह तुर्किस्तान के खलीफा के समर्थन में ब्रिटिश विरोधी था परंतु उसमें हिंदुओं को मारा गया क्योंकि हिंदू जात पात एवं भाषा में बैठा हुआ था आज भी हमें एक समग्र राष्ट्र बनना है तो जात पात पंत भाषा इत्यादि छोड़कर जाति विहीन समाज बनाना आवश्यक है हिंदुत्व ग्रंथ के 100 वर्ष के बाद भी आज भी वही स्थिति कायम है। इसके इसके बाद सत्र को मीना बुड़के, डॉ अशोक मोडक, डा संजीव तिवारी, मेजर जनरल अनुज माथुर,संजय पाटिल, चन्द्र कांत जोगलेकर ने विचार व्यक्त किये। इससे पूर्व संस्थान के पदाधिकारियों द्वारा अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन किया गया । इस दौरान उधोगपति रवि वाधवानी, विश्वनाथ टॉक, गोवर्धन जाट, रामप्रसाद बगेरवाल, राजन माली, चेतन गौड, सुरेश झंवर, अनिल ईनाणी, कैलाश गुर्जर, भरत जागेटिया, नवीन पटवारी, बद्री लाल जाट, सुरेश बांगड़, विनित तिवारी आदि उपस्थित रहे एवं सहयोग किया।