नीमच। सकल हिंदू समाज की महिला संगठन की सदस्याओं ने जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन समलैंगिक विवाह के एक प्रकरण में दायर याचिका की सुनवाई में दिखाई जा रही तत्परता व आतुरता से विचलित होकर ज्ञापन देकर विरोध प्रदर्शन किया। बड़ी संख्या में लामबंद होकर पहुंची महिलाओं ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्याधिपति के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा।
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की जाए, ऐसी याचिका की सुनवाई शीघ्रता पूर्वक कर रही है। जिसका विरोध संपूर्ण भारत में विभिन्न संगठनों के द्वारा किया जा रहा है।
आज सकल हिंदू समाज की महिलाओं द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया कि विवाह को मान्यता देना एक विधायी कार्य है, जिसे संसद द्वारा किया जाना चाहिए। समलैंगिक विवाह न्यायपालिका द्वारा वैध घोषित नहीं किया जाए, क्योंकि यह विषय पूरी तरह विधायिका के क्षेत्र में आता है। समलैंगिकों के विवाह को मान्यता दिए जाने की मांग उनका मौलिक अधिकार नहीं है, वैधानिक हो सकता है। समलैंगिकों द्वारा विशेष अधिनियम 1954 के अंतर्गत अधिकार बनाने की जो मांग की जा रही है, यह अधिनियम मात्र जैविक पुरुष और महिलाओं पर लागू होता है। इसलिए किसी भी प्रावधान को हटाने या बढ़ाने का प्रयास अथवा प्रावधान को नए तरीके से परिभाषित करना, उसे नए स्वरूप में लिखना, विधायिका से कानून बनाने की शक्ति ले लेना माना जाएगा। भारत में विवाह का एक सभ्यतागत महत्व है। वैवाहिक संस्था को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का समाज द्वारा मुखर विरोध किया जाना चाहिए। ज्ञापन का वाचन रानू अटल ने किया।
इस अवसर पर स्वाति चौपड़ा, मीना जायसवाल, पूजा यादव, पारुल सक्सेना, दीपमाला गोयल, रश्मि शर्मा, शारदा पाटनी, कमलेश मांदलिया, कुसुम जोशी, लक्ष्मी प्रेमानी, वैशाली, विद्या त्रिवेदी, प्रियंका नागदा, ललिता नागदा, रितू पाटीदार, सरोज गांधी, राधा बैरागी, अनुष्का नरेला, संतोष चोपड़ा, गजेंद्र कोकू, अजय सिंह कछावा, योगेश कवीश्वर, शशि कल्याणी, अरुण प्रजापत, डॉ राजेंद्र ऐरन और बड़ी संख्या में हिंदू सकल समाज की महिला और पुरुष मौजूद रहे।