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May 10, 2024, 7:33 pm
NEWS : सुपात्र दान की महिमा अपरम्पार है- आचार्य श्री रामेश, अक्षय तृतीय पारणा महोत्सव प्रवचन, पढ़े रेखा खाबिया की खबर

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चित्तौड़गढ़। स्थानीय किला रोड़ स्थित आचार्य श्री नानेश रामेश समता भवन में विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुए आध्यात्मिक योगी आचार्य श्री रामेश ने कहा कि ऋषभदेव भगवान को वेदन नमस्कार करते हुए भक्त भावना करता है कि मेहरबानी हो जाए। मेहरबानी कैसे होगी? भगवान की वीतरागता सभी के लिए समान रूप से प्रवाहित हो रही है। उनकी वाणी के अनुसार जीवन जीने के क्षमता पैदा करनी होगी पात्रता पैदा करनी होगी। गौपालक व गौतम स्वामी भगवान महावीर के समक्ष पहुँचे, गौपालक मेहरबानी को प्राप्त नहीं कर पाया। गौतम स्वामी ने मेहरबानी प्राप्त की। समर्थ बन गए।
सुपात्र दान का महत्व बताते हुए आचार्य श्री रमेश ने कहा कि सुपात्रदान की महिला तीनों लोकों में प्रशंसनीय है। देवलोक में भी प्रशंसा होती है। 
भगवान ऋषभदेव ने जीवन जीने की कलाएं सिखाई। जब जनता को जीवन जीने का तरीका समझ आ गया तो फिर संग्रह बुद्धि नहीं रखने का बताया। जहां संग्रह बुद्धि होती है वहां विग्रह होता है। जब तक संग्रह बुद्धि का समाधान नहीं होता शांति व्याप्त नहीं होती है। संग्रह बुद्धि से भाई भाई का प्रेम रिश्तेदारों मित्रों का प्रेम का बलिदान हो जाता है। राम व भरत के भाई प्रेम का मार्मिक उदाहरण दिया उनमें संग्रह बुद्धि नहीं त्याग था। परोपकार की भावना त्याग की भावना बढ़ने से संग्रह बुद्धि कम हो जाती है या खत्म हो जाती है। 
जनता को संयम का पाठ पढ़ाने के लिए ऋषभ ने माता मरूदेवी से सब कुछ त्याग कर दीक्षा की आज्ञा ली। त्याग मार्ग पर चले। अपने जीवंत आचरण से जनता को पाठ पढ़ाया। ग्रामानुग्राम विचरण के बीच 1 वर्ष तपस्या के बाद पारणा हुआ। श्रेयांस कुमार ने दक्षुरस का पाठ कराया। एक बूंद भी नीचे नहीं गिरी इसीलिए अक्षय तृतीय का महत्व माना जाता है। अक्षय साधना के लिए अक्षय तृतीया महान है। आत्म विधि स्वयं की विधि है। जिस पर टेक्स नहीं लगता। चोर चुरा नहीं सकता। धर्म की पूंजी बढ़ती जाती है। भव भव में साथ जाती है। आचायर्य श्री नानेश का भजन धर्म की पूंजी कमलो जीवा... गाकर धर्म सभा को भाव विभोर किया। संयम सीमा में रहते हुए त्याग मय जीवन जीऐं। जीवन धन्य बनेगा। नैतिक व आध्यातत्मिक संस्कार निर्माण हेतु बालक बालिकाओं का शिविर अभिमोक्षम शिविर प्रारंभ हो गया है। बालक बालिकायें धर्म संस्कृति को बनाए रखने में पूरा योगदान करेगी।
प्रवचन को सभा के पूर्व में उपाध्याय प्रवर श्री राजेश मुनि जी म.सा. ने संबोधित करते हुए कहा कि भगवान ऋषभदेव से थोड़ा पहले प्रारंभ हुए युग राजा प्रजा की व्यवस्था किसी ने किसी रूप में शुरू हुई थी लेकिन गुरू शिष्य परम्परा नहीं थी मनुष्यों का जीवन चल रहा था जरूरत से ज्यादा संसाधन थे। दुःख से मुक्ति कैसे हो इसलिए स्वयं को स्वनियोजित करन जनता जर्नादन को भी वह मार्ग बताया। आचरण में शब्दों से ज्यादा ताकत प्रेरणा के लिए होती है। कठिन अवस्थाओं को पार किया। भगवान ऋषभदेव ने जीवन के प्रारम्भ में ही समाज की बहुत सेवा की थी मदद की थी। जहां जहां लोग अटक जाते उन्होंने उन बाधाओं को दूर किया। 
खाने पीने रहन सहन पढ़ाई लिखाई सभी बाते बताई लेकिन जब अलग ही ज्ञान उनको भीतर जाग गया। उनकी आत्मा समग्र जन समुदाय को ऐसा मार्ग दिखाने में तत्पर हुई। वह कला सिखाखने में तत्पर हुई जिसका प्रभाव जन मानस में युग युगान्तरों तक एवं भविष्य के अनंतकाल तक टिका रहे। उनके भावों में वह शक्ति थी उनका ज्ञान इतना एक्सपर्ट था कि जीव अजीव का होता जड़ पदार्थों की व्यर्थता, चेतनता का अंतर उनकी आत्मा में प्रकट हो गया था। बिना शब्दों के आचरण से उपदेय होता था मरू देवी माता उनका चेहरा सौम्य विरक्त देखकर अपनी सोच बदलती थी। जो माता अपने बालक को सब कुछ समझती थी लेकिन भगवान का वैराग्य मूर्ति अनासक्त भावों की छवि देखकर स्नेहबंधन टूट गए। अनासक्त त्याग की भावना हो गयी। 
प्रभु का जीवन त्याग का जीवन बन गया, पहला बड़ा बदलाव था भौतिक एश्वर्य की पीठ दिखाकर आध्यात्मिक के पथ पर चलने का भाव आ गया। शुभ भव धारा प्रवाहित हुई। सत्य ज्ञान समझा प्रभु द्वारा बताए मार्ग पर जनता बढ़ चली, आज का दिवस मोक्ष के अभिमुख जाने का दिवस है। संसार की असारता जड़ पदार्थों की तुच्छता को समझने का दिवस है। भौतिक एश्वर्य के कचरे को छोड़कर पावन बनने का दिवस है। आचार्य श्री रामेश के उपदेश तीर्थंकर भगवान के बताए मार्ग अनुसार है। उसी अनुरूप अपने पुरूषार्थ को जगाएं।
पूर्व में अटल मुनिजी म.सा. ने कहा कि श्रद्धा भक्ति का जीवन में बहुत महत्व है। संयम शतक में जीवन को संयममय बनाएं।
शासन जीवीका महासती श्री समता श्री जी म.सा. आदि साध्वी जी ने गुरू भक्ति गीत प्रस्तुत किया। श्री आदित्य मुनि जी म.सा ने उपस्थित सभी से प्रार्थना करायी कि हे गुरूदेव वह दिन मेरा भी जाए जब मैं वर्षीतप की आराधना करूं। आचार्य श्री नानेश एवं आचार्य श्री रामेश की कृपा से चित्तौड़गढ़ में अनेक धार्मिक आयोजन हो चुके हैं।
सभा का संयोजन करते हुए महेश नाहटा एवं आदित्येन्द्र सेठिया ने चारित्रिक आत्माओं व वर्षीतप आराधना वाले भाई बहिनों की तपस्या का विस्तार से विवरण प्रस्तुत किया। साधुमार्गी जैन श्रावक संघ एकता युवा संघ महिला मंडल, समता बहुत मंडल, अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ एवं सकल जैन समाज एवं मेवाड़ एवं देश के अनेक संघों, संस्थानों ने तपस्वियों का स्वागत अभिनंददन बहुमान किया।
भदेसर की संस्थाए साधिका श्रीराम भक्त जी म.सा. जी म.सा. के 63वां दिन के उपलक्ष्य में अनेक त्याग प्रत्याख्यान हुआ। नवकार मंत्र जाप के प्रत्याख्यान हुए। साधुमार्गी जैन संघ चित्तौड़गढ़ एवं अखिल भारतीय वर्ष साधुमार्गी जैन संघ द्वारा अभिनन्दन पत्र प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेन्द्र गांधी द्वारा सभी का आभार व्यक्त किया गया। सभी 105 तपस्वी भाई बहिनों ने इस माध्यम से परिजनों एवं श्री संघ ने पारणा कराया। शीलव्रत प्रत्याख्यान हुए। भोजन में झूंठा नहीं डालने का संकल्प हजारों भाई बहिनों ने धर्मसभा में लिया। कई भाई बहिनों ने आगामी पुनः वर्षीतप आगे बढ़ाने हेतु संकल्प लिया। मेवाड़ सहित पूरे देश कौने कौने से हजारों की संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थी।

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