नीमच। धन का सदुपयोग धर्म-कर्म के लिए करते हैं तो वह पुण्य फल बन जाता है। यदि धन का उपयोग संसार के लिए करें तो वह सुधर्म बन जाएगा। जो उपदेश और ज्ञान परमात्मा ने बताया है वह धर्म है और जो उपदेश नहीं बताया है वह अधर्म है परमात्मा ने जो कहा वह सच है।
यह बात श्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन भवन में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि श्रद्धा बिना ज्ञान विनाशकारी बन जाता है गुरु निंदा की सजा का फल अवश्य मिलता है।मनुष्य जीवन में प्रतिपल पाप कर्म का बंधन बढ़ता रहता है इससे बचना चाहिए।कभी-कभी हम जिस पाप कर्म को करना ही नहीं चाहते हैं वह भूल वस पाप कर्म का बंधन बढ़ जाता है इसलिए सदैव पुण्य कर्म करते रहना चाहिए और पाप से बचना चाहिए। श्रावक के त्याग की तपस्या की अनुमोदना करनी चाहिए ।राजा और राज्य शासन का सम्मान परंपरागत तरीकों से करना चाहिए यह लोक व्यवहार में महत्वपूर्ण है लेकिन उन्हें श्रावक का सम्मान नहीं दे सकते हैं।
श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला।पूज्य आचार्य भगवंत का आचार्य पदवी के बाद प्रथम चातुर्मास नीमच में हो रहा है। उपवास, एकासना, बियासना, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में जावद ,जीरन, मनासा, नयागांव, जमुनिया,जावी, आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने। धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।