बड़वानी। नर्मदा का जल पीने लायक नहीं पानी से कैंसर का खतरा मेधा पाटकर बोलीं-नाइट्रेट की मात्रा 46 मिग्रा तक पहुची। यह बात धार जिले के ग्राम बोधवाडा और कुकरा-राजघाट के पानी के सैंपल की जांच रिपोर्ट में सामने आई है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा का पानी पीने के लिए तब तक लायक नहीं होगा, जब तक उसका पूर्ण शुद्धिकरण नहीं किया जाता। नर्मदा के पानी में विविध जीवजंतु (पैथोजेन्स) होते हैं। उनमें फिकल (मलमूत्रधारित) कोलीफॉर्म और उसमें भी सबसे अधिक खतरनाक ई-कोलीफॉर्म होते हैं, जो नर्मदा के पानी में पाए गए हैं। इनसे जल से होने वाली कई बीमारियां होती हैं।
मेधा पाटकर ने कहा कि दोनों स्थानों के पानी की जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि पानी में नाइट्रेट की मात्रा 45 मिग्रा प्रति लीटर से बढ़कर 46 तक पहुंच चुकी है। जबकि ये 10 से 45 मिलीग्राम के बीच में होनी चाहिए। नाइट्रेट की मात्रा बढ़ने से ये नाइट्राइट में परिवर्तित होता है। इसके परिवर्तन का मुख्य स्त्रोत मनुष्य और पशुओं का मलमूत्र होता है। इससे कैंसर तक की बीमारी होने की अशंका होती है। हालांकि, 2022 में सरदार सरोवर जलाशय के पानी का भी परीक्षण हुआ था। उसकी रिपोर्ट भी ऐसी ही थी। इस बार धार जिले में ऐसी रिपोर्ट आने से खतरा और बढ़ गया है।
नर्मदा के पानी में आयरन यानी लोहे की मात्रा भी सीमा पार कर रही है। इससे भी डायबिटीज से लेकर चमड़ी, यकृत और हृदय पर असर की आशंका बढ़ जाती है। सिलिका यानी रेत भी इस पानी में होती है, नदी किनारे चल रहा अवैध रेत खनन के कारण रेत भी कम हो रही है। रेत के कम होने से पानी पीने की इच्छा कम हो जाती है। जिससे शरीर का निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) की बीमारी संभव है। इसी तरह इसकी कमी से सांस और फेफड़े संबंधित बीमारी भी हो सकती है। उन्होंने कहा कि जबलपुर से बड़वानी तक के शहरों से रोज लाखों लिटर गंदा पानी, शहर का ड्रेनेज, मवेशियों का मलमूत्र नर्मदा नदी में बहता है। इसे शुद्धिकरण प्लांट से निकलकर ही नदी तक पहुंचने देना चाहिए। खेतों से बहने वाले कृत्रिम, अजैविक खाद, कीटनाशक भी कुछ हद तक इसके जिम्मेदार है। पीथमपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्र से निकालकर नदी में फेंके जाने वाले अवशिष्ट पदार्थ भी नर्मदा को नुकसान पहुंचाते है।