नीमच। यदि हमें धर्म तत्व के संस्कार का ज्ञान होगा तो संसार में रहते हुए भी हमें सच्चा आनंद मिल सकता है।जो साधु संसार के व्यवहार से मुक्त रहता है वही सच्चा सुखी संत होता है। संतों की सेवा करने से पुण्य का फल मिलता है। संसार के लोगों के प्रति लगाव दुख का प्रमुख कारण है। साधु का संसार में लगाव नहीं रहता है। साधु आत्मा में रमन करता है ।धर्म तत्व का ज्ञान होता है। इसीलिए साधु का कल्याण जल्दी होता है। और संसारी व्यक्ति के कल्याण में आसक्ति और पाप कर्म से रुकावट आती है।
यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप जैन आराधना भवनघ् में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि साधु सदैव परमात्मा की आज्ञा में तथा राग द्वेष से सदैव दूर रहता है तभी उनके आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। परमात्मा के उपदेश की वाणी किसी अपराधी का भी हृदय परिवर्तित कर मोक्ष मार्ग की ओर ले जाती है। हमारे सामने उदाहरण है कि रोहिंग्या चोर के कान में परमात्मा के संदेश गलती से सुन लिए थे तो भी उसका कल्याण हो गया था। इसलिए परमात्मा की वाणी सदैव श्रवण कर अपना पुण्य बढ़ाना चाहिए और आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। कलयुग में श्रद्धा और विश्वास के साथ परमात्मा की वाणी को स्वीकार कर आत्मसात करना चाहिए तभी हमारा कल्याण हो सकता है। तकनीकी शिक्षा कॉलेज में मिल सकती है लेकिन संसार का व्यावहारिक ज्ञान किसी कॉलेज में नहीं जैन धार्मिक पाठशाला के प्रवचन में मिलता है।मनुष्य जीवन में यदि धर्म तत्व का ज्ञान कमजोर है तो धर्म भी कमजोर होगा उत्तराधययन सूत्र के सातवें अध्ययन में पूर्व प्रिय अध्ययन बताया गया है जिसमें संसार हमें हरा भरा लगता है।लेकिन सच्चा सुख नहीं मिलता है। साधु का संयम जीवन हमें कठिन दिखता है। लेकिन सच्चा सुख वही मिलता है।परमात्मा करुणा के सागर है वे सदैव सभी को दया का संस्कार आदर्श प्रेरणा के रूप में सीखाते हैं।जितना आत्मा संसार की ओर बढ़ती है उतना ही उसकी दुर्गति ज्यादा होती है। जितना आत्मा संसार को त्यागने की ओर आगे बढ़ती है उतना ही उसे सच्चा सुख का मार्ग मिलता है। संसार में सुख दिखता है लेकिन वास्तव में वह मिलता नहीं है।मनुष्य यदि संसार की हर घटना को परमात्मा की दृष्टि से देखे तो वह कभी विचलित नहीं होगा सदैव सुखी रहेगा।
श्री संघ अध्यक्ष अनिल नागौरी ने बताया कि धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला। समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया। उपवास, एकासना, बियासना, आयम्बिल, तेला, आदि तपस्या के ठाठ लग रहे है। धर्मसभा में विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु भक्त सहभागी बने।धर्मसभा का संचालन सचिव मनीष कोठारी ने किया।