नीमच। उत्तराध्ययन सूत्र का अध्ययन सबसे प्राचीन है। ऋषि मुनियों ने भारतीय संस्कृति के इस अध्ययन को पूरे विश्व में सबसे महत्वपूर्ण बताया है। आधुनिक युग में युवा वर्ग धर्म ग्रंथो से दूर हो रहा है पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में अपने धर्म संस्कृति से विमुख हो रहा है जीवन में कहीं भी रहे लेकिन तपस्या धर्म और संस्कृति पर गर्व जरूर करें। धर्म स्वाध्याय को प्रतिदिन अपने जीवन की दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाएं ।इससे कभी दूर नहीं हो तो जीवन शांत रहेगा तनाव जीवन में कभी नहीं आएगा।यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही।
वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि लोग अपने शरीर को सुंदर बनाने के लिए लाखों रुपए खर्च करते हैं लेकिन अंतरात्मा को पवित्र बनाने के लिए हमारा ध्यान नहीं है चिंतन का विषय है। अंतरात्मा पवित्र नहीं होगी तो मुक्ति का मार्ग नहीं मिल सकता ।उतराध्ययन सूत्र के अध्ययन से मन पवित्र हो सकता है। उत्तराध्ययन सूत्र वैज्ञानिक है। उत्तराध्ययन सूत्र के अनुसार शरीर में आहार का तपस्या से लंगन करना भी आवश्यक है,7 दिन में एक बार या 15 दिन में दो बार उपवास करना चाहिए।पाप कर्मों से निर्जरा करनी है तो तपस्या करनी होगी। छोटे-छोटे तप जैसे उनोदरी(कम खाना) समता से कम आहार ग्रहण करने का संकल्प लेकर वृत नियम का पालन करें तो भी तपस्या हो जाती है और आत्मा का कल्याण हो जाता है।एकाग्रतापूर्वक तपस्या करेंगे तो संसार में नहीं भटकेंगे।हमें मनुष्य जन्म में स्वस्थ शरीर मिला है तो परमात्मा को बार-बार धन्यवाद देना चाहिए। वनस्पतियों में प्रत्येक पौधे को औषधि माना गया है। यह औषधीय अनेक रोगों का विनाश करती है। उतराध्ययन सूत्र के अनुसार सम्यक तत्व की प्राप्ति के लिए गुण होना चाहिए। संवेग गति कैसी हो सीमित नियमित होनी चाहिए तो परेशानी नहीं होगी।संसार में वाहन की गति अनियंत्रित होती है तो दुर्घटना हो जाती है उसी प्रकार धर्म अध्यात्म में भी संवेग की गति नियंत्रित होनी चाहिए।तभी धर्म तपस्या के माध्यम से जीवन में सफलता मिल सकती है। संत की वाणी कभी खाली नहीं जाती है संत के प्रभाव से सफलता मिलती है। देवेंद्र मुनि महाराज का जन्म मेवाड़ के लिए गौरव की बात है उन्होंने 400 धार्मिक साहित्य की रचना करअनेक धार्मिक उत्थान के कार्य की प्रेरणा दी थी। बहुत सी औषधीय जहर जैसी प्रतीत होती है लेकिन वेदों के अनुसार वह औषधि भी अनेक रोगों को ठीक करने वाली होती है।
साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि महावीर स्वामी के निर्वाण पर उस समय के तत्तकालीन सभी राजाओं ने तप आराधना के साथ दीपक जलाए गए थे और दिवाली मनाई गई थी।
तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन ,शांति जाप एवं तप की आराधना भी हुई।इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा., अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया। धर्म सभा का संचालन भंवरलाल देशलहरा ने किया।