नीमच। संसार के अधिकांश मनुष्य अपनी मृत्यु से डरते हैं ।अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य को केवल जीवित रहने की चिंता होती है। थोड़ा सा बीमार होने पर हताश हो जाता है। मनुष्य सबसे पहले मृत्यु के भय को दूर करें ।जब तक मृत्यु का भय दूर नहीं होगा। उसे शाश्वत सुख अनुभव नहीं होगा। जीवन में हमें मृत्यु की नहीं बल्कि हमें अपनेआत्म कल्याण की चिंता करना चाहिए।
मृत्यु से डरे नहीं जीव दया का पालन करते हुए आत्म कल्याण की चिंता करें।यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में मिडिल स्कूल मैदान के समीप पुस्तक स्थित जैनआराधना भवनघ् में आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मृत्यु तो सभी को आना ही है ।जिस प्राणी ने जन्म लिया है एक न एक दिन उसे मरना ही है तो मृत्यु से डर केसा ? क्या मृत्यु के डरने से मृत्यु नहीं आएगी ?संसार का हर प्राणी पशु पक्षी कीड़े मकोड़े कोई मरना नहीं चाहता है सभी जीना चाहते हैं लेकिन मृत्यु सभी की होती है। इसलिए मृत्यु की नहीं अपने आत्म कल्याण की चिंतन करना चाहिए।उत्तराध्ययन सूत्र के 21 से 25 तक के अध्ययन के अनुसार संसार में व्यक्ति के साथ कोई भी घटना घटती है तो घटनाओं को अपने मन से सोचेंगे तो राग द्वेष बढ़ेगा। लेकिन यदि हम परमात्मा के उपदेशों को आत्मसात कर सोचेंगे तो राग द्वेष दूर होगा और वैराग्य का कारण बनेगा। यदि हम प्रभु के धर्म वचन को चित भक्ति रखेंगे तो संसार के नियमित हमारे लिए दुख भक्ति का कारण नहीं बनेंगे इसलिए हमको हमारे मन को प्रभु के वचन सदा भक्ति तपस्या में लिन रहना चाहिए और शरीर में पांच इंद्रियां हमको मिली है वह तूफानी घोड़े की जैसे है।परमात्मा के ज्ञान से हमारे अभ्यास और आराधना तपस्या भक्ति की लगाम से अंकुश लगाना चाहिए।