चित्तौड़गढ़। रामद्वारा चित्तौड़गढ़ में चल रहे रमताराम महाराज के शिष्य संत दिग्विजयराम महाराज द्वारा चातुर्मास सत्संग के अन्तर्गत नाभाजी महाराज द्वारा लिखे गये भक्तमाल में भगवान के अवतारों के वर्णन के अन्तर्गत बुधवार को वामन अवतार की कथा का वर्णन किया गया। जब राजा बली देवताओं के राज को हड़प लेते हैं तब कश्यप मुनि की पत्नी अदिती ने बारह दिन का प्रयोवद व्रत किया। भगवान वामन रूप में अदिती के गर्भ से भाद्रपक्ष की द्वादशी को जन्म लेते हैं। वामन भगवान के वचन मांगने पर राजा बलि संकल्प लेते हैं और भगवान राजा बलि से तीन पग जमीन मांगते हैं। राजा बलि को हंसी आती है किन्तु जब भगवान अपने पहले चरण से पृथ्वी, दूसरे चरण से आसमान नाप लेते है तब राजा बलि से कहते हैं कि तीसरा पैर कहा रखूं। राजा बलि अपना समर्पण कर देते हैं तब भगवान अपना तीसरा पैर राजा बलि के सिर पर रखते हैं। इस प्रकार बलि को सुरताल लोक देते और स्वर्ग वापस देवताओं को।
परशुराम अवतार कथा में सत्यवती और माता जब ऋषि ऋतिक के पास गये और पुत्र की कामना की तो उन्हें दो चरू दिये। सत्यवती और माता दोनों ने आपस में चरू बदल लिया। राजा दाधी के पुत्र विश्वामित्र हुए और ऋतिक ऋषि के प्रभाव से जमदगनी ऋषि के परशुराम जी ने अवतार लिया। जमदगनी ने जब परशुराम जी को आज्ञा दी कि माता को मार दो तो पिता की आज्ञा से माता और सातों भाईयों को मार दिया। तब पिता प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने वापस माता और भाईयों को जीवित करने को कहा। परशुराम जी ने सहस्त्रार्जुन को मारा। इक्कीस बार पृथ्वी से क्षत्रिय वंश को खत्म किया और राज ब्राह्माणों को सौंपा। अश्व मेघ यज्ञ किया और पृथ्वी को कश्यप ऋषि को दी। परशुराम जी अंशावतार है जिनका वैशाख शुक्ल तृतीय को जन्म हुआ था।
रामावतार कथा में माता कौशल्या के राम, कैकयी के भरत और सुमित्रा के लक्ष्मण और शत्रुघ्न पुत्र रूप में अवतार का वर्णन किया वहीं कृष्णावतार में भादवा अष्टमी को कृष्ण अवतार के बारे में बताया।
बुद्ध अवतार के वर्णन में कहा कि एक बार दैत्यों ने देवराज इन्द्र से पूछा कि हमारा राज कैसे सुरक्षित रहेगा तो उन्होंने कहा कि गया में राजा सुद्रोधन, माता माया के यहाँ भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। बाल्यकाल में इनका नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ ने एक बीमार व्यक्ति, एक वृद्ध को एवं एक मृत आदमी को देखा तो वो उदास हुए और उनको बहुत दुःख हुआ और घर छोड़ कर जंगल में तपस्या की, जब स्त्रियों के झुंड द्वारा गीत सुना जिसमें पंक्ति सुनी की सितार के तारों को ज्यादा नहीं खींचे और ज्यादा ढीला भी नहीं छोड़ना चाहिये। तब उन्होंने तपस्या छोड़कर सारनाथ में उन्होंने उपदेश दिया। धर्मम शरणम् गच्छामी, बुद्धम शरणम् गच्छामी मंत्र दिया। एक बार गौतमी अपने मरे हुए बच्चे को लेकर भगवान बुद्ध के सामने जाती है तो भगवान बुद्ध ने कहा कि तुम्हारा पुत्र मैं जिंदा तो कर दूंगा पर ऐसे घर से कुछ सरसों के दाने लाना जिसके घर में कभी कोई नहीं मरा हो। तब उसे पता लगा कि ऐसा कोई घर नहीं है जिसमें कोई मरा न हो। तब उसे ज्ञान हुआ कि जिसका जन्म हुआ उसका मरना निश्चित है।