नीमच। मौजूदा दौर में सोशल मीडिया हमारे लिए वरदान के साथ ही अभिशाप की तरह भी सामने आ रहा है।लेकिन कुछ लोगों की कारगुजारियों ने इसे सायबर पाइजन में तब्दील कर दिया। आज के दौर में देश में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि मौत की वजह बनते जा रहे हैं। दरअसल सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है। हालिया वक्त में हुए कुछ दंगे को ही देखें। कारण व जरिया कई होंगे। लेकिन विस्फोटक सांप्रदायिक सौहार्द पर सोशल मीडिया की तीली ने भी कम माचिस नहीं लगाई। सूत्रों के मुताबिक, दंगों से संबंधित गिरफ्तार आरोपियों से जब्त मोबाइल फोन इसकी तस्दीक करते हैं। जब्त फोन से कई वाट्सएप समूहों का पता चला है, जिसमें दंगा भड़काने के मकसद वाले वीडियो और अफवाह, झूठी खबरें, धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाले मैसेज बड़े पैमाने पर आदान-प्रदान किए जा रहे थे। इसी को ध्यान में रखते हुए राजस्थानी फिल्म एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष निर्माता निर्देशक हितेष सोलंकी ने अपने ग्रहनगर नीमच में ही बहुत ही सीमित साधनों के साथ एक शॉर्ट फिल्म का निर्माण किया है, जिसका पोस्टर विमोचन नीमच कलेक्टर मयंक अग्रवाल ने किया और स्पेशल प्रिमियर के दौरान फिल्म देखने के पश्चात कहा कि इस फिल्म मे राष्ट्रीय एकता को बेहतर तरीके से समझाया गया है, फिल्म कि कहानी व निर्देशन लाजवाब है, तथा इस फिल्म को प्रत्येक नागरिकों को देखना चाहिए ताकी लोगों के दिलों में आजकल के माहौल से जो नफरत पल रही है वो कम हो सके, हितेष सोलंकी फिल्म्स तथा आई क्लिक टेलीफिल्म्स के बैनर तले इस फिल्म का शीर्षक “साइबर पाइजन“ है, यह एक मोटीवेशनल फिल्म है, जो कि देश के सबसे बड़े ओटीटी प्लेटफार्म एम एक्स प्लेअर, एयरटेल एक्सट्रीम व हॉटस्टार प्ले पर रिलीज हुई है। इस फिल्म के माध्यम से निर्देशक हितेष सोलंकी ने बहुत ही बढ़िया तरीके जिसमे बताया गया है की किस तरह से नासमझ मासूम लोग कुछ लोगो के बहकावे में आकर सोशल मीडिया पर नफरती पोस्ट को शेयर कर देते है जिसकी वजह से दंगे और एक दुसरे के प्रति नफरत बदती है जिसके फलस्वरूप देश की एकता और अखंडता कमजोर हो रही है समझाता है की ये नफरती जहर की आग जो आपने सोशल मीडिया पर फैलाई है जो की एक साइबर पाइजन है इसकी वजह से कितने लोगो की जान जा सकती है और इसे पोस्ट करना आप दोनों के दिमाग की उपज नहीं बल्कि उन लोगो के बहकावे में आकर किया है जिनका मकसद इस देश में नफरत और दंगे करवाना है देश शांति नहीं अशांति चाहते है ताकि उन नफरती लोगो के मनसूबे कामयाब हो सके निर्देशक हितेश सोलंकी ने फिल्म के जरिये समझाया है की सबसे पहला धर्म इंसानियत है उसके बाद देशधर्म, देश की एकता की मिसालें जो कभी हुआ करती थी आज ख़त्म होती जा रही है और नफरतों का बाजार गर्म हो रहा है हम अलग अलग धर्मो के होने के बावजूद भी एक दुसरे से अलग नहीं है इस बात के कुछ उदाहण भी फिल्म में देखने को मिलेंगे और इस बात का अहसास होगा की देश में राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनी रहनी चाहिए, सोशल मीडिया का इस्तेमाल कुछ लोग गलत तरीके से कर रहे है जिनका उदेश्य देश में अशांति फेलाना है, हिंसा किसी भी सभ्य समाज के लिए सबसे बड़ा कलंक हैं, और जब यह दंगों के रूप में सामने आती है तो इसका रूप और भी भयंकर हो जाता है। दंगे सिर्फ जान और माल का ही नुक़सान नहीं करते, बल्कि इससे लोगों की भावनाएं भी आहत होती हैं और उनके सपने बिखर जाते हैं। दंगे अपने पीछे दुख-दर्द, तकलीफें और कड़वाहटें छोड़ जाते हैं।
’बाक्स ’-आपको बता दें कि फिल्म निर्देशक हितेष सोलंकी नीमच के रहवासी है व राजस्थानी फिल्म एसोसिएशन प्रदेश अध्यक्ष व इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन डायरेक्टर एसोसिएशन के सदस्य एवं अखिल भारतीय संगीत कलाकार संघ के राष्ट्रीय सचिव भी हैं, तथा पिछले 18 वर्षों से फिल्म क्षेत्र में अभिनेता अरविंद कुमार व फिल्म निर्माता निर्देशक के सी बोकाडिया के मार्गदर्शन मे कार्य कर नीमच का नाम रोशन कर रहे हैं
यंही पर निर्देशक हितेश सोलंकी का समस्त देशवासियों के नाम एक प्यारा सा सन्देश भी है..... फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले, डायलोग और निर्देशन हितेष सोलंकी ने किया है व मुख्य भूमिका हितेष सोलंकी, नाबिनूर मंसूरी, विशाल नाथावत, कोमल जॉन ने निभाई है,सह कलाकार संतोष बाबु कटारिया, भूपेन्द्र गोड,अंशुल पाटीदार हिमांश शर्मा और सिद्धु पटेल है, कैमरामैन अजय माली हैं। फिल्म निर्माता निर्देशक हितेष सोलंकी ने यह भी बताया कि यह नीमच में एक शुरुआत है शॉर्ट फिल्मों को लेकर यहां के कलाकारों को मौका देना, और यह प्रयास हमारा आगे जारी रहेगा, जिसके तहत हमारी और भी कई मोटिवेशनल फिल्में निर्माणाधीन है, तो जल्दी आप सभी के बीच पहुंचेगी । धीरे-धीरे सोशल मीडिया में सही सूचना और अफवाह में अंतर मिटता जा रहा है। देश भर में अराजकता सोशल मीडिया की पहचान बनती जा रही है। दंगे भड़काने के पहले और अब के खुराफातों में अंतर भी स्पष्ट देखा जाने लगा है। अब सोशल मीडिया पर भड़काऊ बातें लिखकर दंगा भड़काया जाता है। इतना ही नहीं, दंगा भड़काने के बाद उसकी आग में घी भी सोशल मीडिया द्वारा ही डाला जाता है। दरअसल सोशल मीडिया पानी की तरह है, जिसमें हम जैसा रंग डालेंगे, उसका वैसा ही रंग दिखेगा। समझदारी पैदा करेंगे, तो समझदारी दिखेगी और विभाजनकारी तत्व डालेंगे, तो वैसा ही दिखेगा। सही मायनों में अच्छे और बुरे दोनों का ही आईना है सोशल मीडिया। अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में आम जनता के बीच गलत जानकारी और नफरत फैलाने वाले मुद्दे भी फलफूल रहे हैं। वर्ष 2018 में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की थी जो भारत में सक्रिय सोशल मीडिया में पोस्ट पर नफरत और उस पर जवाबी हमलों के आंकड़ों पर आधारित है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि न सिर्फ धर्म, बल्कि पहनावा और खान-पान से जुड़ी हुई ‘धार्मिक-सांस्कृतिक’ प्रथाएं भारतीय सोशल मीडिया में मौजूद नफरत फैलाने के लिए सबसे स्पष्ट आधार थीं।