चौमेला। झालावाड़ जिले में नेत्रदान के प्रति जागरूकता इतनी अधिक बढ़ी है कि नेत्रदान का संकल्प अब किसी शुभ प्रसंग का हिस्सा भी बनने लगा है। नेत्रदान संकल्प का ऐसा ही अनूठा उदाहरण चौमेला नगर में देखने को मिला, जब विवाह की 46वीं वर्षगांठ समारोह को जैन परिवार ने नेत्रदान का संकल्प लेकर सेलिब्रेट किया।
चौमेला निवासी होटल व्यापार संघ के अध्यक्ष राजेश जैन ने बताया कि उनका पूरा परिवार काफी समय से जिले में चल रहे नेत्रदान के कार्यों से प्रभावित था। स्वयं उनके माता-पिता की भी काफी दिनों से नेत्रदान संकल्प लेने की इच्छा थी एवं ऐसे में अपने माता-पिता के विवाह की 46वीं वर्षगांठ समारोह कार्यक्रम को पूरे परिवार ने भवानीमंडी निवासी शाइन इंडिया फाउंडेशन के ज्योति मित्र एवं भारत विकास परिषद के नेत्रदान प्रभारी कमलेश दलाल के माध्यम से नेत्रदान का संकल्प लेकर मनाया। विवाह वर्षगांठ को सेलिब्रेट करते हुए पूरे परिवार के 10 सदस्यों ने नेत्रदान का संकल्प लिया।
अपने माता-पिता की वर्षगांठ को नेत्रदान संकल्प समारोह के रूप में सेलिब्रेट करते हुए राजेश जैन के पिता सुरेश जैन, माता लीला जैन, स्वयं राजेश जैन, धर्मपत्नी अंकिता जैन, भाई नीलेश जैन, रीना जैन, अरिहा, भव्य, पर्व आदि ने नेत्रदान संकल्प लिया। जैन सोशल ग्रुप के हंसराज जैन, गौतम जैन एवं भवानीमंडी के नेत्रदान प्रभारी कमलेश दलाल भी नेत्रदान संकल्प के इस अवसर पर उपस्थित थे।
वहीं नेत्रदान का संकल्प लेते हुए सुरेश जैन एवं परिवार ने कहा कि जैन धर्म हमेशा परोपकार की शिक्षा देता है एवं लगातार भवानीमंडी एवं झालावाड़ जिले के नेत्रदान के समाचारों ने उन्हें प्रभावित किया है और किसी को नई दृष्टि देने का आशय नया जीवन प्रदान करना है, इसी महत्वता को देखते हुए उन्होंने अपने शुभ विवाह की 46वीं वर्षगांठ पर नेत्रदान का संकल्प लिया जिससे और अधिक लोग भी इसके लिए प्रेरित हो सकें।
वहीं भारत विकास परिषद के नेत्रदान प्रभारी कमलेश दलाल ने बताया कि नेत्रदान सबसे बड़ा दान है जिसमें मृत्यु के बाद हमारी आंखें दो दृष्टिहीन लोगों को नया जीवन दे सकती है। नैत्रदान पूर्णतया रक्तविहीन प्रक्रिया है, इसमें पूरी आंख की जगह केवल कॉर्निया ही लिया जाता है, इसमें चेहरे पर कोई विकृति या विपरीत प्रभाव नहीं होता है, सामान्य किसी भी मृत्यु पर परिजन इच्छा प्रकट करके नेत्र उत्सर्जक को बुला सकते हैं। इसके लिए कोई विशेष वैधानिक औपचारिकता नहीं है एवं पूर्व में संकल्प किया हुआ होना भी अनिवार्य नहीं है। सूचना के बाद नेत्र उत्तसरण टीम मृतक के घर पहुंच जाती है एवं 10 मिनट की आसान प्रक्रिया में कोर्निया उत्तसरण कर लिया जाता है, इसमें पार्थिव शरीर को कहीं भी नहीं ले जाना होता है। नेत्रदान अस्पताल, घर या मुक्तिधाम में भी जहां भी पार्थिव शरीर है वहीं पर नेत्रदान लिया जाना संभव है। प्रत्येक वह व्यक्ति जो 2 वर्ष से 90 वर्ष की उम्र का है, का मृत्यु पश्चात नैत्रदान हो सकता है। चश्मा लगा हुआ व्यक्ति, मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया हुआ हो, बीपी, शुगर, थाइरोइड, हृदय सम्बंधित बीमारी वाले मृतक भी नैत्रदान कर सकते है। गर्मी में नेत्र उत्तसरण मृत्यु पश्चात लगभग 5-6 घंटे एवं सर्दी में लगभग 7-8 घंटे तक उपयुक्त है। नेत्रदान के प्रति सकारात्मकता प्रदर्शित करने के लिए जीवित अवस्था में नेत्रदान संकल्प भी किया जा सकता है एवं इसके लिए कोई विशेष औपचारिकता नहीं है।