नीमच। परमपूज्य भारत गौरव आचार्यरत्न श्री 108 देशभूषणजी महाराज की सुशिष्या परम पूज्य गणिनी आर्यिका श्री 105 सरस्वती माताजी, परम पूज्य आर्यिका श्री 105 अनंतमती माताजी एवं परमपूज्य आर्यिकाश्री 105 महोत्सवमति माताजी ससंघ का नीमच की पावन धरा पर मंगल प्रवेश हुआ।
दिगम्बर जैन मंदिर में प्रातः प्रवचन देते हुए आर्यिका सरस्वती माताजी ने अपनी मंगल वाणी में उपस्थित श्रद्धालुओं को धर्म के मर्म को समझाते हुए कहा कि जैसी दृष्टि होगी वैसी ही हमें सृष्टि दिखाई देगी। अपनी दृष्टि और स्वयं को सुधारें।
परमपूज्य आर्यिका अनन्तमती माताजी ने प्रवचन देते हुए बताया कि चार पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनमें वर्तमान में सर्वश्रेष्ठ पुरूषार्थ हमारे लिए धर्म हैं। केवल एक मानव जीवन ही है जिसमें धर्म करके मनुष्य पर्याय को सफल बना सकते हैं। अनेक प्रकार से धर्म को परिभाषित किया गया कि कर्तव्यपालन धर्म है, अहिंसा धर्म, जीव रक्षा धर्म है, दया धर्म है, इन सबमें अहिंसा परमोधर्म सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि प्रत्येक जीव सुख चाहता है, दुःख कोई नहीं चाहता है। हम जैसे सुख की अभिलाषा करते हैं वैसे अन्य प्राणी भी सुख की अभिलाषा करते हैं और वह अहिंसा परमो धर्म से ही संभव है।
धर्मसभा में उपस्थित दि जैन समाज के अध्यक्ष विजय विनायका जैन ब्रोकर्स एवं सचिव मुकेश विनायका ने बताया कि आर्यिका संघ के आगमन से समाज में धर्म की प्रभावना होगी। सभी समाजजन पूर्ण भक्तिभाव से आर्यिका संघ से प्रवचन पूजन अभिषेक तत्वचर्चा, गुरूवंदना कर धर्म लाभ ले रहे हैं।
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