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November 18, 2023, 11:17 am
KHABAR : विनम्रता शिखर की ऊंचाई की और तथा अहंकार धरातल की ओर ले जाता है, चातुर्मासिक धर्मसभा में प्रवर्तक श्री विजयमुनिजी मसा ने कहा, पढ़े खबर   

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नीमच। संसार में व्यक्ति को आगे बढ़ाने के लिए धर्म शाश्वत सत्य सहायक है।आत्मा ही कर्ता है ,आत्मा ही भोक्ता है, आत्मा को संयम तप के द्वारा नियंत्रित करें तो दुनिया की कोई ताकत आपको गिरा नहीं सकती है।जो विनम्रता रखता है वह ऊंचाई की ओर जाता है अहंकार करने वाले व्यक्ति सदैव नीचे गिरते हैं।
यह बात जैन दिवाकरीय श्रमण संघीय, पूज्य प्रवर्तक, कविरत्न श्री विजयमुनिजी म. सा. ने कही। वे श्री वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के तत्वावधान में गांधी वाटिका के सामने जैन दिवाकर भवन में आयोजित चातुर्मास  धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म के सहयोग के बिना जीव एक कदम भी कहीं भी  नहीं चल सकता है।आत्मा जीव प्रमुख सर्वाेपरि है । जैन धर्म अनेकांतवादी है। निग्रंथ धर्म में जैन धर्म की धारा ,बौद्ध धारा, महात्मा बुद्ध भी जैन धारा से ही निकला बाद में उन्होंने अपना अलग मार्ग विचार बना लिया था।दूसरों के कल्याण का मार्ग बताएं वही सच्चा संत होता है। श्री कृष्ण ने गीता में कहा कि है अर्जुन तू कर्म कल की इच्छा मत कर इस वाक्य में कर्म भक्ति ज्ञान योग का संदेश दिया।
इसी प्रकार निग्रंथ धर्मशास्त्र में भी आगम धर्म शास्त्रों का सार व इसमें भगवान की वाणी को भी संकलित कर 18 अध्याय तैयार किए गए हैं।आत्मा को धर्म कर्म से जोड़कर अपने जीवन का सुरक्षा चक्र बनाना चाहिए। धर्म आत्मा  का सुरक्षा चक्र होता है। इंद्रियों पर नियंत्रण का उपयोग करने वाले का मन चेतन होता है। सामायिक प्रतिक्रमणऔर प्रायश्चित कर इन्द्रियो पर नियंत्रण करना चाहिए ।इंद्रियों का उपयोग सद्गति के लिए ही होना चाहिए।इंद्रियों को जीतना कठिन है। आत्मा को लक्ष्य तय करना चाहिए तभी आत्मा का नियंत्रण होगा ।अपनी आत्मा के पाप कर्मों को कम कर पुण्य कर्म बढ़ाने पर ध्यान लगाना चाहिए। आत्मा सहज नहीं है।आत्मा का दमन बहुत मुश्किल होता है। महापुरुष भी आत्मा का दमन कर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे।अतिथि देवो भव की परंपरा का निर्वहन करते हुए घर परिवार में पधारे अतिथि का प्रथम सत्कार करना चाहिए तभी हमारा सम्मान हो सकता है।तपस्या के साथ दूसरों के कल्याण की आराधना करनी चाहिए तभी जीवन सफल हो सकता है ज्ञान पंचमी के लिए तपस्या से आराधना कर प्रार्थना करना चाहिए।साध्वी डॉक्टर विजया सुमन श्री जी महाराज साहब ने कहा कि हम जीवन के हर क्षण में आनंद ले लालच में पाप कर्म नहीं कर इस बात का पूरा ध्यान रखें तभी ज्ञान हमारे लिए कल्याण का कारण बन सकता है।संत की वाणी इंसान पर गहरा प्रभाव छोड़ती है सभी के प्रति अच्छी भावना स्नेहा भावना रखने चाहिए हम जैसा बीज बोएंगे वैसा ही फल पाएंगे इसलिए सदैव दूसरों का भला करने में ही अपनी भलाई समझना चाहिए तभी हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है।यदि हम दूसरों के प्रति भी अच्छे भाव से सोचेंगे तो हमेशा सबके लिए भला ही होगा।किसी के प्रति गलत सोचेंगे तो पहले अपना गलत भी होगा इस बात को सदैव ध्यान रखना चाहिए। साध्वी जी महाराज साहब ने धर्म सभा में सत्संग में आत्मा को सच्चा सुख मिलता है जीवन का पल-पल उपवन खिलता है.. गीत प्रस्तुत किया।मैं ही सब कुछ हूं इसमें अहंकार झलकता है और यह  विनाश का मार्ग बनता है। इस अवसर पर जोधपुर श्री संघ के हुकुमचंद सांखला, दीपक जैन सांखला ने जोधपुर में चातुर्मास के लिए विनती की।
तपस्या उपवास के साथ नवकार महामंत्र भक्तामर पाठ वाचन ,शांति जाप  एवं तप की आराधना भी हुई।इस अवसर पर  विभिन्न धार्मिक तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने सामूहिक अनुमोदना की।
धर्म सभा में उपप्रवर्तक श्री चन्द्रेशमुनिजी म. सा, अभिजीतमुनिजी म. सा.,  अरिहंतमुनिजी म. सा., ठाणा 4 व अरिहंत आराधिका तपस्विनी श्री विजया श्रीजी म. सा. आदि ठाणा का सानिध्य मिला। चातुर्मासिक मंगल धर्मसभा  में सैकड़ों समाज जनों ने बड़ी संख्या में उत्साह के साथ भाग लिया और संत दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया।

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