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January 2, 2024, 12:02 pm
KHABAR : मनो-शांति पर अमृत प्रवचन श्रृंखला का समापन, साध्वी श्री अमिदर्शा श्रीजी महाराज साहब ने कहा- अतिथि देवो भव की परम्परा भारतीय संस्कृति का परिचायक, पढ़े खबर 

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नीमच। अतिथि देवो भव की परंपरा भारतीय संस्कृति का परिचायक है, अतिथि को देवताओं की तरह सम्मान देना चाहिए । अतिथि देवी -देवता का ही स्वरूप होता है । अंग्रेजी नववर्ष का स्वागत करना पश्चिमी संस्कृति का परिचायक है । पश्चिमी संस्कृति परिवार को तोड़ने का षड्यंत्र है, जबकि भारतीय संस्कृति का हिंदी नववर्ष विक्रम संवत परिवार को जोड़ने और स्वस्थ रहने का प्रतिक है, जिन शासन का वर्ष वीर संवत 2550 से चलता है, चरम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के निर्वाण से वीर संवत् प्रारम्भ होता है । नववर्ष का स्वागत परमात्मा की भक्ति से किया जाता है, जबकि इंग्लिश नववर्ष का स्वागत होटल में डांस, मस्ती और पाप कर्म के साथ ज्यादातर होता है । पश्चिमी अंग्रेजी नव वर्ष की होटल संस्कृति परिवार के विनाश का मार्ग दिखाती है, जबकि भारतीय संस्कृति कुमकुम तिलक लगाकर सम्मान करने का संदेश देती है, यह बात साध्वी श्री अमिपूर्णा श्रीजी महाराजसा की सुशिष्या श्री  अमिदर्शा श्रीजी महाराज साहब ने कहीं । वे श्री जैन श्वेताम्बर महावीर जिनालय विकास नगर ट्रस्ट, नीमच के तत्वावधान में विकास नगर स्थित मनोहरसिंह लोढ़ा के  मनो-शांति भवन  में आयोजित प्रवचन सभा में बोल रही थी ।

उन्होंने कहा कि आधुनिक युग की संस्कृति परिवार में विकृति पैदा कर रही है । जबकि भारतीय संस्कृति परिवार में सामाजिक एकता का संदेश देती है । भारतीय संस्कृति पूरे विश्व को अपना परिवार मानती है । विदेशी संस्कृति में ऐसा नहीं होता है । पश्चिमी विदेशी संस्कृति में विकृति ज्यादा आ रही है लोग संस्कार भूल रहे हैं । भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रवेश द्वार पर आए भिखारी को भी खाली हाथ नहीं लौटाया जाता, कुछ ना कुछ दान देना ही चाहिए । आज व्यक्ति घर में मुस्कुराता नहीं है ।  सभी डॉक्टर कहते हैं स्वस्थ रहने के लिए सदैव मुस्कुराए, आधुनिक युग में   रुपए देकर लोग हंसने के लिए लाफिंग क्लब जाकर हंसते हैं, यह चिंतन का विषय है । जिसके पास माता-पिता का धन होता है, उसके घर में रोज धनतेरस होती है । जिस घर में पत्नी प्रसन्न रहती है, उस घर में रोज रूप चवदस होती है, जिसके परिवार में सभी खुश हो उस परिवार में रोज दिवाली होती है । 
आज स्थिति यह है कि पत्नी पियर जाए तो 10 दिन नहीं आए तो कोई बात नहीं, लेकिन नौकर यदि अपने घर चला जाए और 10 दिन नहीं आए तो चिंता का विषय उत्पन्न हो जाता है । हमारे घर में हमारी पूजा और सम्मान क्यों नहीं हो रहा है, चिंता का विषय है । घर में परिवारजन प्रतीक्षा करें वह घर स्वर्ग होता है । जिस घर में क्रोध रहता है उस घर में शांति नहीं रहती है, इसलिए क्रोध को घर परिवार से विदा कर दे । हम जब परमात्मा की शरण में जाएंगे तो परिवार में सुख शांति अपने आप ही स्थापित रहेगी । आजकल स्कूलों में रोजगार के लिए शिक्षा दी जा रही है, जबकि पहला  संस्कार तो माता-पिता को ही देना चाहिए, सबसे पहले धार्मिक ज्ञान अति आवश्यक है । माता-पिता  के संस्कारों से ही बच्चों का परिचय होता है ।स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि बच्चा जन्म से लेकर 12 वर्ष तक माता-पिता के संस्कारों को ग्रहण करता है, यही उसके जीवन को सफल बनाने का मुख्य माध्यम होते है । माता-पिता के अलावा संसार में पहला विश्वविद्यालय नहीं होता है । मां के संस्कारों से ही बच्चा अपने जीवन की सही दिशा को प्राप्त कर सकता है । हम यदि परमात्मा को मेरा माने तो हमारे जीवन का कल्याण हो सकता है । अंग्रेजी नववर्ष का सेलिब्रेट करना विदेशी पश्चिमी संस्कृति का प्रतीक है, यह हमारा कार्य नहीं है । अंग्रेजी नववर्ष को रात्रि में होटल और मसाला आहार ग्रहण करने की संस्कृति से शरीर भी रोगी बनता है और मदिरा के नशे से दुर्घटनाएं मौत का कारण भी बनती है । साध्वीजी ने कहां कि कोहरे साधु-साध्वी उपाश्रय से बाहर नहीं निकलते है, और 12 व्रतधारी जैन श्रावक-श्राविकाओं को भी कोहरे में घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए । कोहरे में अनजाने में अनंत जीव हत्या का पाप लगता है, वह कर्म उदय में आता है तो पुण्य फलदाई नहीं होता है ।

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