चित्तौड़गढ़। रामस्नेही संत रमताराम महाराज के परम शिष्य संत दिग्विजयराम महाराज के रामद्वारा में चल रहे चातुर्मास सत्संग के अन्तर्गत भक्तमाल ग्रंथ का वर्णन लगातार जारी रहा।
दिग्विजय राम जी ने कहा कि रामचरण महाराज ने कहा है चार युग में एक बार मनुष्य जीवन मिलता है लेकिन व्यक्ति अपने जीवन में लोभ, माया के चक्कर में भक्ति भूल जाता है। मूर्ख लोग ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं। इसलिए जब काल सामने होता है तो व्यक्ति भगवान नाम के बिना हाय हाय कर रोता है। जन्म और मृत्यु तो भगवान ने अपने हाथ में रखी है।
सिकन्दर ने मरते समय तीन इच्छाएँ बताई कि मेरा जनाजा अच्छे वैद्यों से उठाना, सारी दौलत जनाजे के आगे बिछा देना और मेरे दोनों हाथ बाहर निकाल कर रखना। वो बताना चाहता था कि बहुत कमाकर भी मुझे खाली हाथ ही जाना पड़ा है।
उन्होंने कहा रामचरण महाराज फरमाते हैं कि पाप और पुण्य ही साथ जाता है, कोई और नहीं। रामनाम का सुमिरन करते रहना चाहिये, क्योंकि सांसो का कोई भरोसा नहीं। एक स्वस्थ व्यक्ति 21600 श्वांस 24 घंटे में लेता है। परमात्मा ने काया में श्वांस गिन कर भेजी है, वो उतनी ही लेता है। मौत और रामनाम को कभी नहीं भूलना चाहिये। इस कारण अजामिल को लेने भगवान के पार्षद आये और उन्होंने यमदूतों को बताया कि अंत समय में भगवन नाम लेने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवत धाम का अधिकारी हो जाता है।
रामचरण महाराज ने अनुभव वाणी में उदाहरण सहित बताया कि आग में जाने अनजाने में भी पाव लगेगा तो जलेगा ही। पारस से जाने-अनजाने भी छुई लोहे की वस्तु सोना बनेगी ही। जाने अनजाने भी अगर अमृत पीये तो अमर होगा ही। जाने या अनजाने में राम नाम भजने से वो इस भवसागर से तरेगा ही।
अजामिल ने जब काल और भगवान के पार्षदों का संवाद सुना तो वो पुत्रों को, वेश्या को, सभी को छोड़कर हरिद्वार चला गया। वहाँ पर तपस्या की। अंत समय में भगवान के पार्षद आकर वैकुण्ठ लेकर गये। अजामिल चरित्र से दो शिक्षा मिलती है कि बच्चों के नाम के बहाने भगवान का नाम मुंह से निकल जाता है और भगवान का नाम पापी से पापी को भी तार देता है।