नीमच। अन्नदाता, नाम ऐसा की लगता है जो पेट पाल रहा है वो कितना खुशहाल होगा। उसके घरों में तो अन्न के भंडार भरे होंगे। परिवार भी आनंद का जीवन व्यतीत कर रहा होगा। घर में सभी ऐशोआराम के सामन होंगे। लेकिन ये सच नहीं है। हमेशा से होता ही इसका उल्टा है। किसान के साथ हमेशा प्रकृति बुरा ही करते आई हैं।
मालवा में किसानों के लिए एक प्रचलित कहावत है कि किसान तो खरो कमावे और खोटो खावे। ये बात सो टका सच हैं। भयंकर गर्मी, कड़ाके की ठण्ड और बरसते पानी में किसान खेतों में मेहनत करता हैं। कैसा भी मौसम हो सुनहरे भविष्य के सपनो में रातदिन खेतो पर फसलों को बड़ी करने में लगा रहता हैं। लेकिन प्रकृति इसके साथ न्याय नहीं करती हैं। कभी अतिवृष्टि, कभी अनावृष्टि, कभी पाला गिरना जैसे वज्रपात से किसानों की कमर तोड़ने में प्रकृति जरा भी नहीं सोचती हैं।
इस बार भी किसानों के साथ ऐसा ही हो रहा हैं। सही समय पर बोवनी होने के बाद किसानों ने खरीफ की फसल की बुवाई कर दी थी। निंदाई, गुड़ाई सभी के लिए उचित समय मिला। लेकिन जैसे ही फसलों को पानी की आवश्यकता लगी तो इंद्र देव रूत गए। लगभग 20 दिनों से अधिक समय बीत चूका हैं लेकिन आसमान से अमृत नहीं बरसा। ऐसे हालत में फसलों का यौवन एकदम से बुढ़ापे में बदल गया। किसानों की मेहनत पर आशंका के बादल छाने लगे हैं। फसले लगभग नष्ट होने की कगार पर हैं।
किसान अब आसमान के साथ-साथ सरकार की तरफ भू मुँह उठाकर खड़ा हैं। अगर अभी भी अच्छी बरसात हो जाती हैं तो आगे की फसल सही हो जाएगी। ऐसे ही हालात रहे तो अगली फसल की बुआई करना भी किसान के लिए दुर्भर हो जाएगा। वहीं अन्नदाता सरकार से भी आशा लगा रहा हैं कि जल्द ही क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित करें। वहीं ख़राब हुई फसल का भी जल्द से जल्द मुआवजा दे।